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डुमरिया खुर्द गांव में 123 वर्षों से हो रही है मां भगवती की पूजा-अर्चना

डुमरिया खुर्द गांव में 123 वर्षों से हो रही है मां भगवती की पूजा-अर्चना

मां दुर्गा, काली के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की होती है पूजा परबत्ता. प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत कबेला पंचायत के सार्वजनिक दुर्गा मंदिर डुमरिया खुर्द की महिमा अगम अपार है. गंगा किनारे स्थित इस मंदिर की भव्यता व मन्नतों के पूरा होने का पौराणिक इतिहास इसे खास बनाती है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है. ऐसी मान्यता है कि यहां की मां भगवती की एक विशेषता यह है कि यहां फुलाईस के द्वारा भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. ग्रामीण विजय कुमार राय, शिव कुमार राय, रवीन्द्र झा , डॉ अविनाश कुमार राय आदि ने कहा कि दशहरा के अवसर 1908 से मैदान में रामलीला का आयोजन प्रारंभ हुआ. इस कार्यक्रम में दो दर्जन से अधिक सभी उम्र के दो दर्जन ग्रामीण कलाकार भाग लेते हैं. पहले सभी कलाकार फलहार उपवास के साथ अपनी कला का प्रदर्शन करते थे. श्रद्धा व भक्ति का ख्याल रखते थे, लेकिन आज उसमें बहुत कुछ कमी आयी है. 10 दिनों का कार्यक्रम अब पांच से छह दिनों में सम्पन्न हो जाती है. मां की महिमा है निराली यहां पूजा के दौरान बलि प्रथा का प्रचलन था, जिसे 67 वर्ष पहले स्थायी रूप से खत्म कर दिया गया. मंदिर के पुजारी के रूप में राजेंद्र राय उर्फ बजरंगी है. ग्रामीणों की मानें तो मंदिर की स्थापना 1902 में हुआ था तथा पहले यह मंदिर वर्तमान स्थल से दो किलोमीटर पश्चिम में स्थित था. गंगा के कटाव के कारण मंदिर गंगा में समा गया. कटाव से प्रभावित लोगों ने एक निश्चित स्थान पर आश्रय लिया. यहां नरसिंह लाला नामक व्यक्ति ने अस्थायी मंदिर बनाकर मां की पूजा अर्चना शुरु कर दिया. कालांतर में यह परिवार विस्थापित होकर भागलपुर तथा मुंगेर में बस गया. तब ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से मां दुर्गा को एक फूस के घर में स्थापित कर पूजा शुरु कर दिया. 1976 से इस मंदिर में मां की पूजा करते आ रहे हैं. एकादशी के दिन प्रतिमा विसर्जन की परंपरा ग्रामीण रविंद्र झा ने बताया कि आमतौर पर कई जगह विजयादशमी के दिन ही प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है, लेकिन डुमरिया खुर्द गांव में प्रतिमा का विसर्जन एकादशी के दिन होता है. उन्होंने बताया कि विजयादशमी के दिन रामलीला के अंतिम कड़ी में रावण वध कार्यक्रम में देर रात हो जाती है. जिसके कारण विजयादशमी के सुबह यानी एकादशी को प्रतिमा का विसर्जन धूमधाम से किया जाता है. जिसके लिए प्रशासनिक स्वीकृति भी प्रदान किया गया है.

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