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पुरुषार्थ जिस व्यक्ति के जीवन में नहीं, उसका जीवन बेकार है : जीयर स्वामी

प्रवचन में लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा, राजा प्रियव्रत ने किया था सात समुद्र और सात दीपों का अविष्कार

आरा.

परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि पुरुषार्थ जिस व्यक्ति के जीवन में नहीं है, उसका जीवन बेकार है. क्योंकि व्यक्ति की पहचान उसके पुरुषार्थ से होती है. धरती पर जन्म लेने के बाद समाज, संस्कृति के लिए जिसने पुरुषार्थ नहीं किया, उसका जीवन मुर्दा के समान बताया गया है.

जिस व्यक्ति ने अपना जीवन पुरुषार्थ में बिताया है, उसकी चर्चा धरती पर रहने पर भी होती है तथा जब वह धरती से विदा हो जाता है, तब भी उसके पुरुषार्थ को याद किया जाता है. इसीलिए जीवन में पुरुषार्थ बनाना बहुत जरूरी है. मनु महाराज के सबसे बड़े पुत्र प्रियव्रत जब जंगल में जाकर के तपस्या साधना करने लगे, तब भगवान श्रीमन नारायण साधना से प्रसन्न होकर प्रकट हुए. उन्होंने प्रियव्रत को गृहस्थ आश्रम में जाने का मार्गदर्शन दिया. भगवान ने कहा प्रियव्रत तुम अपने घर जाओ, वहां पर शादी-विवाह करके अपने जीवन में गृहस्थ मर्यादा को स्वीकार करो. प्रियव्रत कहते हैं कि नहीं भगवान हम आपकी शरणागति प्राप्त करना चाहते हैं. वहीं, भगवान प्रियव्रत को समझाते हुए कहते हैं, प्रियव्रत व्यक्ति को पुरुषार्थ होना चाहिए. इसीलिए तुम जाकर के गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करो. शादी-विवाह करके राजकाज की व्यवस्था करो. वहीं भगवान के उपदेशों को सुनकर के प्रियव्रत जंगल से अपने घर वापस लौटते हैं. इसके बाद प्रियव्रत विश्वकर्मा की पुत्री बरिस्मति से विवाह करते हैं. प्रियव्रत के विवाह के बाद उनके 10 पुत्र होते हैं. जिनका नाम अग्निध्र, इध्मजिह्व, यज्ञबाहू, महावीर, हिरण्यरेता, घृतपृष्ठ, सावन, मेधातिथि, वीतिहोत्र एवं कवि. इनमें से तीन पुत्र कवि, महावीर और सावन नैष्ठिक ब्रह्मचारी बन गये. वहीं प्रियव्रत के सात पुत्रों के द्वारा राज्य कार्य की व्यवस्था संभाली गयी. आगे चलकर प्रियव्रत ने दूसरा विवाह किया, जिससे तीन पुत्र हुए. जिनका नाम उत्तम, तामस और रेवत बताया गया है. प्रियव्रत एवं बरिस्मति से एक पुत्री भी हुई, जिनका विवाह दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से हुआ. जिससे एक देवयानी नाम की पुत्री भी हुई. प्रियव्रत गृहस्थ आश्रम में आने के बाद एक दिन मन में विचार किये कि हम रात को होने ही नहीं देंगे. वहीं, सूर्य भगवान का पीछा करने लगे. अपने रथ पर बैठकर के सूर्य भगवान के पीछे-पीछे पृथ्वी के सात चक्कर लगा दिये. उनके रथ के पहियों के चक्कर लगाने से सात समुद्र प्रकट हुआ, जिनका नाम लवण समुद्र, इक्षुरस समुद्र, सुरा समुद्र, घृत समुद्र, क्षीर समुद्र, दधि समुद्र एवं मधु समुद्र बताया गया है. वहीं, प्रियव्रत के रथ के चक्कों से साथ द्वीप का भी निर्माण हुआ, जिनका नाम जंबू द्वीप, प्लक्ष द्वीप, शाल्मली द्वीप, कुश, क्रौंच द्वीप, शाक द्वीप, पुष्कर द्वीप आदि बताया गया है.

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