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पति-पत्नी में अटूट होनी चाहिए भरोसे की डोर
वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting. ट्विटर : @14veena पति-पत्नी के बीच विश्वास एक ऐसी मजबूत डोर है, जो एहसासों से रेशमी जरूर है, मगर लोहे की कड़ियों से भी ज्यादा मजबूत है. केवल पति-पत्नी ही क्यूं ? सभी रिश्तों की डोर एहसास में रेशमी ही होती […]
वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting. ट्विटर : @14veena
पति-पत्नी के बीच विश्वास एक ऐसी मजबूत डोर है, जो एहसासों से रेशमी जरूर है, मगर लोहे की कड़ियों से भी ज्यादा
मजबूत है. केवल पति-पत्नी ही क्यूं ? सभी रिश्तों की डोर एहसास में रेशमी ही होती है, संबंध विश्वास पर टिकते हैं, लेकिन यह विश्वास चट्टान-सा अटल होना चाहिए. जैसे हमारा रक्षा सूत (कलावा) होता तो सूती धागा ही है, मगर उसका बंधन इतना पवित्र है कि हम सब पूजा के बाद ईश्वर द्वारा प्रदान किया हुआ रक्षा सूत समझ कर अपनी कलाई पर बांधते हैं. यह कलावा विश्वास का ही प्रतिरूप है. जब धागों पर इतना विश्वास है, तो आपसी रिश्ते पर क्यूं नहीं?
सभी को आजादी की सालगिरह मुबारक हो. आजादी तभी सार्थक होगी जब हम अपने विचारों को कुंठा, घटिया, दकियानूसी, भेदभाव और पक्षपाती सोच से आजाद करेंगे.
एक युवक ने लिखा है कि वह एक लड़की को चाहता था. इसलिए उन्होंने घरवालों के विरुद्ध जाकर शादी की. चूंकि लड़के के घरवाले ज्यादा कट्टर थे, इसलिए विवाह के बाद लड़की के बार- बार कहने पर वह ससुरालवालों से मिला और वे मान गये.
उन दोनों ने गलती यह की कि वे ससुराल में ही रहने लगे. इस दौरान लड़की के घरवालों ने हर संभव प्रयास किया कि दोनों में लड़ाई- झगड़ा हो, और वे अलग हो जाएं. हालांकि घरवालों ने उन्हें माफ करने और उनके विवाह को मंजूरी देने का दिखावा किया. मगर लड़के के लिए उनका विरोध खत्म नहीं हुआ.
उसने लिखा है कि यह बात वे दोनों समझते थे और उनका एक-दूसरे पर भरोसा कायम रहा. उनका एक बेटा भी हुआ. कुछ वर्षों बाद लड़के की बदली दूसरे शहर में हो गयी. वह चला गया. हर हफ्ते और छुट्टियों में उसका आना होता था. इस बीच घरवालों ने अपनी साजिशें तेज कर दीं. दोनों में कुछ दूरियां बढ़ीं. आपस की बातचीत कम हुई तो तकरारें बढ़ीं.
नौकरी का तनाव बढ़ा, तो लड़का परेशान रहने लगा, जब तक वह घर की परिस्थिति और पत्नी को समझ पाता, उसे लगा कि उसकी पत्नी का किसी से अफेयर है. कॉल रिकार्ड भी किया. यह वह बर्दाश्त नहीं कर पाया.
उसे ब्रेन स्ट्रोक हुआ. फिर काफी समय इलाज चला. लड़की ने पूरी देखभाल की. उसे संभाला भी, मगर लड़का फोन कॉल भूल नहीं पाया और झगड़े बढ़ते गये. वह मार-पिटाई करने लगा जबकि लड़की मना करती रही कि वास्तव में वैसा नहीं था. फिर भी अपने शक पर उसका यकीन बना रहा कि वह किसी और को चाहती है.
घर में अशांति रहने लगी. उसने लिखा है कि उसने अपनी पत्नी पर इतने अत्याचार किये कि वह उससे अलग हो गयी. बेटा छह साल का है. अब वह लड़का अपनी पत्नी और बच्चे को वापस लाना चाहता है. बच्चे को पिता का प्यार देना चाहता है. पत्नी को उसकी खुशियां लौटाना चाहता है, मगर उसकी पत्नी वापस नहीं आ रही. लड़का डिप्रेशन में है.
बीमार है. वह किसी भी तरीके से दोनों को अपनी जिंदगी में वापस लाना चाहता है, मगर लड़की तैयार नहीं. वह उससे बात भी नहीं करती. लड़के को खुद डर लगता है कि डिप्रेशन में कोई गलत कदम न उठा ले. अब उसे गलती का भी एहसास है. मगर अब उस गलती के एहसास क्या फायदा, जिससे सब कुछ बिखर गया. जिस पत्नी ने हर वक्त साथ दिया, जो बार- बार कहती रही कि वह बेगुनाह है, मगर तब लड़के ने उसकी बात नहीं सुनी. आज वह अवसाद में है, मगर गलती किसकी है ?
किसी भी व्यक्ति की सहने की, बर्दाश्त करने की एक सीमा होती है. जब वह सीमा खत्म हो जाती है तब कोई विकल्प नहीं बचता. आपके पास सीमा समाप्ति से पहले ही विकल्प होते हैं. जहां आप अपने अधिकारों, बल, अत्याचारों, मनमानी की सीमा लांघते हैं, वहीं विद्रोह होता है, उसे दबाना मुश्किल होता है. जब पानी सिर के ऊपर निकलेगा, तो हर कोई अपनी जान बचायेगा. हालांकि यह विद्रोह इस हद तक नहीं सहना चाहिए.
विरोध के स्वर पहले ही उठाने चाहिए. मगर कई लोग सोचते हैं कि शायद सामनेवाला अब समझ जाये और संबंध खराब न हों, मगर इसे कभी भी उस व्यक्ति की कमजोरी नहीं समझनी चाहिए. दरअसल, यह उस व्यक्ति की ताकत और आत्मानुशासन है. हम सब को याद रखना चाहिए कि हम सभी इनसान हैं. अत्याचार और शोषण एक हद तक ही बर्दाश्त कर सकते हैं.
अगर ऐसा न होता, तो सदियों से चली आ रही गुलामी आज भी कायम होती. पति-पत्नियों के बीच विश्वास एक ऐसी मजबूत डोर है, जो एहसासों से रेशमी जरूर है, मगर लोहे की कड़ियों से भी ज्यादा मजबूत है. केवल पति-पत्नी ही क्यूं ? सभी रिश्तों की डोर एहसास में रेशमी ही होती है, संबंध विश्वास पर टिकते हैं, लेकिन यह विश्वास चट्टान-सा अटल होना चाहिए. जैसे हमारा रक्षा सूत (कलावा) होता तो सूती धागा ही है, मगर उसका बंधन इतना पवित्र है कि हम सब पूजा के बाद ईश्वर द्वारा प्रदान किया हुआ रक्षा सूत समझ कर अपनी कलाई पर बांधते हैं और बहुत लोग तो तब तक बांधे रहते हैं जब तक दूसरा कलावा न मिल जाये. यह कलावा विश्वास का ही प्रतिरूप ही है.
जब धागों पर इतना विश्वास है तो आपसी रिश्ते पर क्यूं नहीं? इसी तरह संबंधों की भी पवित्रता समझनी चाहिए. अगर आपको सामनेवाले पर वाकई भरोसा है, तो दुनिया चाहे कुछ भी कहे, कोई आपका विश्वास नहीं डिगा सकता. कई बार आंखों देखी और कानों सुना भी सच नहीं होता, क्योंकि हम पूरी बात नहीं, बल्कि कुछ हिस्सा ही जान पाते हैं. पूरे दृश्य सामने नहीं होते, फिर हम कैसे निष्कर्ष निकाल सकते हैं?
जब चाहे संबंधों को तोड़ने का अंतिम विकल्प तो आपके हाथों में है ही, तो क्यूं नहीं ठंडे दिमाग से काम लेते?
अगर आप वाकई पत्नी को चाहते हैं और उसकी कोई कमी या गलती देखते भी हैं, तो भी क्लेष से पहले विचार करिए कि क्या उसके बगैर आप रह सकते हैं? क्या उसका ख्याल, उसका प्यार आपको याद नहीं आयेगा? आपके बच्चों पर क्या असर होगा? कब तक कोई झगड़ों को सहेगा? झगड़ों के बाद ऊंट किस करवट बैठेगा, यह कोई नहीं जानता. जीवन भर दुख सहने से अच्छा है, समझदारी से काम लिया जाये.
क्रमश:
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