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बच्चों की गलतियों पर परदा न डालें, उन्हें सही राह दिखाएं
वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting. ट्विटर : @14veena हम जो कुछ भी गलत रास्ते पर चल कर हासिल करते हैं, वह लंबे समय के लिए नहीं होता. उससे आंतरिक खुशी नहीं मिलती. अगर आप नकल करके क्लास में पोजीशन लाते हैं, तो सबके सामने तो आपका […]
वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting. ट्विटर : @14veena
हम जो कुछ भी गलत रास्ते पर चल कर हासिल करते हैं, वह लंबे समय के लिए नहीं होता. उससे आंतरिक खुशी नहीं मिलती. अगर आप नकल करके क्लास में पोजीशन लाते हैं, तो सबके सामने तो आपका सिर उठेगा, मगर जब आप अकेले होंगे, तो आपको वह खुशी नहीं मिलेगी जो खुद मेहनत करने के बाद अपनी क्लास में पोजीशन लाने पर होती.
इसी तरह गलत रास्ते पर चल कर सफलता प्राप्त करने से हमारा डंका जरूर बजेगा, मगर आंतरिक सुख नहीं मिलेगा और जो सफलता मिली है, वह कब तक टिकेगी, यह भी कहा नहीं जा सकता. गलत तरीके से रुपया कमा कर ऐश करने से कहीं बेहतर है कि स्वाभिमान की सूखी रोटी खायी जाये. गरीब वह नहीं, जिसके पास दौलत की कमी है, बल्कि गरीब वह है जिसके पास बहुत धन-दौलत है, मगर मान-स्वाभिमान की मुस्कुराहट उसके चेहरे पर नहीं. फरेब की चुपड़ी रोटी से बेहतर है, स्वाभिमान के साथ अपने हाथों से कमाई सूखी रोटी खाना. मेरी मां कहती थीं कि ‘रुपये-पैसे से कोई गरीब नहीं होता. हमारी सोच हमें गरीब बनाती है.
दूसरों के आगे हाथ फैलानेवाला गरीब होता है. स्वाभिमान के साथ जो खुद की मेहनत से रोटी कमा कर खाता है, चाहे मेहनत-मजदूरी करके ही सही, वही अमीर है. इसलिए मेहनत-मजदूरी करने वालों का भी सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वे भीख नहीं मांग रहे, बल्कि कमा कर खा रहे हैं. उन्होंने समझौते नहीं किये, गलत रास्ते नहीं अपनाये. इतना होने के बाद यदि हम उनका सम्मान नहीं करते, तो यह हमारे संस्कार, हमारी शिक्षा है.’ मुझे ये बातें हमेशा याद रहीं.
कोई भी गलत काम सम्मान को ताक पर रखे बिना नहीं किया जा सकता. हमारा मान-सम्मान, स्वाभिमान ही हमें सिर उठा कर चलना सिखाता है. जिसका मान-सम्मान नहीं, वह कैसे सिर ऊंचा कर सकेगा? हमें नाम मिलेगा, तो हमारे माता-पिता का सिर फख्र से हमसे भी ऊंचा हो जायेगा. हमारे बड़े हमसे कुछ नहीं चाहते. वे चाहते हैं कि बस उनके बच्चे अच्छे इनसान बनें और सम्मान की रोटी खाएं.
कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को गलत राह का राही नहीं बनाते, लेकिन अगर वे उन्हें गलत राह पर जाने से नहीं रोकते, तो भी बच्चों का अहित करते हैं. यह अहित कभी जान कर और कभी अनजाने में होता है. कभी-कभी हम रुपया कमाने में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि जिस परिवार के लिए कमाते हैं, उसे भी अनदेखा करते हैं और नतीजतन बच्चे हाथ से निकल जाते हैं. उनमें गलत आदतें घर कर जाती हैं.
बच्चों में अच्छी आदतें डालने में अभिभावक अपना पूरा जीवन लगा देते हैं, मगर उन पर ध्यान न देकर सारा किया-कराया मिट्टी में मिला देते हैं. गलत आदतें कब उनके जीवन का हिस्सा बन जाती हैं, यह खुद बच्चों को भी नहीं पता चल पाता. कोई अभिभावक नहीं चाहता कि उसके बच्चे अपराधी बनें, लेकिन गलतियों पर परदा डालना, उन्हें छुपाना, उनकी तरफदारी करना, ममता में अंधा होना अच्छा नहीं.
हर व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब उसे अपने पहले के सारे कर्म याद आते हैं. वह खुद अपने जीवन का मूल्यांकन करता है. जिस वक्त उसे अपने अच्छे- खराब दोनों व्यवहार, काम याद आते हैं, उस समय कोई खुद से झूठ नहीं बोल सकता.
आपको अपने गलत कार्यों का पश्चाताप जरूर होगा. उस वक्त खुद में सुधार करने का प्रयास करना चाहिए. स्वयं का मूल्यांकन हमें सही दिशा व सोच देगा. इसीलिए कहा जाता है कि हमें रोज सुबह अपने लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए. विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई को लेकर और बाकी लोगों को अपने काम को लेकर. जब हम सोच कर कोई काम करते हैं, तो गलत काम नहीं करेंगे.
फिर रात में सोने से पहले बच्चे यह देखें कि जितना हमने सोचा था, क्या उतनी पढ़ाई की ? अपने व्यवहार का भी मूल्यांकन जरूर करें कि मां या किसी अन्य व्यक्ति से जिस तरह बात की, क्या हमें इस तरह बात करनी चाहिए थी. सभी व्यक्ति जो नौकरी करते हैं, व्यापार करते हैं, उन्हें भी रात में जरूर अपने दिन भर के कार्यों का मूल्यांकन करना चाहिए. तब उन्हें एहसास होगा कि यह मैंने किस तरह का व्यवहार किया ? जिस गुस्से से अपने स्टाफ से बात की, किसी से झगड़ा किया, वह नहीं करना चाहिए था. उन्हें खुद लगेगा कि ऐसा करना उन्हें शोभा नहीं देता. इन बातों को तो नजरंदाज किया जा सकता था और हमने इस तरह रिएक्ट किया? आप अगली बार उस तरह के व्यवहार से बच सकेंगे.
यह तो था गलतियां करने पर उनको सुधारने का प्रयत्न, जो हमें खुद करना चाहिए और बच्चों को भी सिखाना चाहिए. अगर हम स्वयं का मूल्यांकन करते हैं, तो कभी अपने लिए गलत निर्णय नहीं लेंगे. जब तक हम खुद न चाहें, हमें कोई भी जबरन गलत रास्ते पर नहीं डाल सकता.
कभी-कभी हम किसी की बातों में आकर बहक जाते हैं. कभी-कभी परिस्थितियां विपरीत हो जाती हैं, लेकिन अगर हम अपना मूल्यांकन बार-बार करेंगे, तो हमारी अंतरात्मा हमें गलत राह पर जाने से रोकेगी. हम कब तक अपनी अंतरात्मा की आवाज नहीं सुनेंगे?
इसी तरह मानव स्वभाव की एक और कमी है कि हम जो सोचते हैं, जो समझते हैं, उसे ही सत्य समझते हैं. अपनी ‘मैं’ पर टिके रहते हैं. दूसरे के प्रति अपनी समझ, अपने एसेसमेंट को ही निर्णय मान लेते हैं. ऐसा करके आप किसी और का नहीं, खुद का नुकसान करते हैं. अपने संबंधों को बिगाड़ते हैं. एक युवक का इसी तरह का मेल है, जिसे अगली बार आपसे साझा करूंगी. हम किस तरह अपनी मैं, अपने अहंकार और अपनी बातों को ही अंतिम सत्य मान लेते हैं.
क्रमश:
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