21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झूठ के फेर में फंसने से अच्छा है कि पहली बार में सच बोल दें

बच्चे छोटे जरूर होते हैं, लेकिन ऑब्जर्वेशन में वे हमसे कई गुना तेज होते हैं. एक बार आप चूक सकते हैं, लेकिन वे नहीं. इसीलिए वे जो कुछ देखते हैं, तो कहीं भी ऑड प्रश्न कर देते हैं और आपको शर्मिंदा होना पड़ता है, क्योंकि वे मैन्यूपुलेशन नहीं जानते. जैसा देखते हैं, वैसा बोल देते […]

बच्चे छोटे जरूर होते हैं, लेकिन ऑब्जर्वेशन में वे हमसे
कई गुना तेज होते हैं. एक बार आप चूक सकते हैं, लेकिन वे नहीं. इसीलिए वे जो कुछ देखते हैं, तो कहीं भी ऑड प्रश्न कर देते हैं और आपको शर्मिंदा होना पड़ता है, क्योंकि वे मैन्यूपुलेशन नहीं जानते. जैसा देखते हैं,
वैसा बोल देते हैं. डांट से वह भी बचना चाहते हैं और इसीलिए झूठ बोलना, बहाने बनाना तुरंत सीख जाते हैं. मगर बड़े भी अक्सर भूल जाते हैं कि झूठ बोल कर वह किस मुसीबत में फंसने जा रहे हैं.
वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting. ट्विटर : @14veena
कहते हैं कि अच्छाई समझाने पर भी नहीं आती और बुराई बिना सिखाये हम सीख जाते हैं. अच्छाइयों को आत्मसात करने में समय लगता है जबकि बुराइयां कब हमारे अंदर प्रवेश कर जाती हैं, हम जान नहीं पाते. आप छोटे बच्चों को ही देखिए. आपके बार-बार बताने, समझाने पर भी वे अच्छी आदतों में मुश्किल से ढलते हैं, लेकिन बदमाशियां, शरारतें, झूठ, बहाने बनाना बिना सिखाये सीखते हैं.
कोई भी अभिभावक झूठ बोलना नहीं सिखाता. वह नहीं कहते कि झूठ बोलना चाहिए. यह अच्छी आदत है, मगर अक्सर घर में बच्चे माता- पिता को किसी-न-किसी तरह झूठ बोलते सुनते- देखते हैं और वह भी ‘बस यूं ही’ झूठ बोलने लगते हैं और ये ‘यूं ही’ झूठ बोलना कब आदत बन जाती है, बच्चों को पता ही नहीं चलता. आप सोच कर देखिए कि झूठ हम कब बोलते हैं ? झूठ हम तब बोलते हैं- जब हमारी गलती हो, हमसे कुछ गलत हुआ हो और वह पकड़े जाने का भय हो, हम कुछ छुपाना चाहते हैं, कोई नियम तोड़ा हो, अनावश्यक डांट और झगड़ों से बचना चाहते हैं, किसी एक को या कई लोगों को एक साथ खुश करना चाहते हैं.
बच्चों को भी जब लगता है कि हमसे भूल हुई है और अब डांट पड़ेगी या समय पर घर नहीं आये, दोस्तों के साथ घूमने चले गये और कह दिया कि स्टडीज में व्यस्त थे या कुछ भी बहाना बना दिया. यानी कुछ भी गलत होने का अंदेशा हो, तभी हम झूठ बोलते हैं. एक- दो बार तो यूं ही झूठ बोला जाता है और माता- पिता यकीन कर लेते हैं. लेकिन बच्चों को एक ऐसा विकल्प मिल जाता है, जिसे वह अपना हथियार समझ लेते हैं.
यह भी शुरुआत घर से होती है. बच्चा अक्सर सुनता है कि जब पापा ऑफिस में लेट होते हैं और वहां से फोन आता है या किसी मीटिंग के लिए कॉल आती है, तो वह कहते हैं कि बस रास्ते में हूं, जाम में फंस गया हूं, वाइफ को, बच्चे को दिखाने डॉक्टर के यहां आया हूं, जबकि वे घर में होते हैं या कहीं किसी काम में फंसे होते हैं.
बच्चे छोटे जरूर होते हैं, लेकिन ऑब्जर्वेशन में वे हमसे कई गुना तेज होते हैं. एक बार आप चूक सकते हैं, लेकिन वे नहीं. इसीलिए वह जो कुछ देखते हैं, तो कहीं भी ऑड प्रश्न कर देते हैं और आपको शर्मिंदा होना पड़ता है, क्योंकि वे मैन्यूपुलेशन नहीं जानते. जैसा देखते हैं, वैसा बोल देते हैं.
डांट से वह भी बचना चाहते हैं और इसीलिए झूठ बोलना, बहाने बनाना तुरंत सीख जाते हैं. वैसे भी अपनी बातें मनवाना, घर में किसको कैसे टैकल करना है, ये वह बचपन से ही जानते हैं और बड़े होकर तो वह अपने रास्ते बखूबी निकाल लेते हैं.
अपने झूठ को प्रूव करना भी सीख जाते हैं. मगर बड़े भी अक्सर भूल जाते हैं कि झूठ बोलकर वह किस मुसीबत में फंसने जा रहे हैं, क्योंकि जब हम गलत बात पर परदा डालने, कड़वे सच को छुपाने के लिए एक बार जो झूठ बोलते हैं, फिर उसको सही साबित करने के लिए बार-बार झूठ बोलते हैं. एक झूठ के चक्कर में न जाने कितने और झूठ बोलते रहते हैं, तो बेहतर तो यही कि हम पहली बार ही सच बोल दें.
एक बार सच बोल दिया, तो हमारा तनाव खत्म. हमें यह याद रखने की जरूरत नहीं कि हमने क्यों, किसलिए और क्या झूठ बोला था? कभी-कभी किसी की भलाई, जान बचाने, रिश्ते बचाने के लिए झूठ बोलना पड़ता है.
झूठ तो आखिर झूठ ही है, मगर किसी की भलाई के लिए अगर झूठ बोलना पड़े, तो काफी हद तक लोग उसे माफ कर देते है, क्योंकि उसके पीछे इनटेंशन गलत नहीं है. किसी की भलाई, उसकी जिंदगी बचाना उद्देश्य होता है. जैसे जहर तो जहर है, मगर बहुत से जहर दवाई में प्रयोग होते हैं और जब वह जहरवाली टेबलेट हम दवाई के रूप में खाते हैं, तो वह जहर नहीं, बल्कि जीवन बचानेवाली, रोग-दर्द ठीक करनेवाली जीवनदायिनी दवाई बन जाती है.
मरीज के स्वास्थ्य लाभ के लिए हमें उसे वह दवा देनी पड़ती है. इसलिए जीवन में व्यक्ति की नीयत देखी जाती है. हम दो तरह से कर्म करते हैं.
एक में तो हमारी नीयत ही खराब होती है. हम सामनेवाले का अहित करने के उद्देश्य से ही कार्य करते हैं. योजना बना कर दूसरे को नुकसान पहुंचाते हैं और दूसरा, हमारी नीयत में कमी नहीं होती. हमारा मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं होता, मगर दुर्भाग्यवश ऐसा होता है कि हम किसी के साथ अच्छा करने की सोचते हैं और बुरा हो जाता है. इस झीने-से फर्क को अभिभावकों को बच्चों को समझाना होगा.
हमें यह भी विश्वास रखना होगा कि सच कभी नहीं हारता. झूठ थोड़ी राहत तो दे सकता है, मगर सुकून नहीं. झूठ की उम्र फूल की तरह होती है, जो कुछ समय के लिए खिलता, महकता, खुशी देता है, आंखों को, दिल को भाता है, मगर जल्द ही मुरझा जाता है.
यानी उसकी उम्र छोटी होती है. सच वह कांटा है, जो चुभता जरूर है, मगर वह टूटता- झुकता नहीं है. उस डाली पर तमाम झूठ खिलते- बिखरते रहते हैं, मगर वह अपनी जगह कायम रहता है. प्रेरणा के लिए फूल का एक रूप और है, जो हमें याद रखना होगा. हमारा जीवन फूल की तरह महके. हमारा व्यक्तित्व इतना खूबसूरत हो कि लोग उससे प्रेरणा लें.
फूल का जीवन जरूर कुछ पल का होता है, मगर उसकी महक, उसका सौंदर्य हमारी आंखों को भाता है. उस प्राकृतिक सौंदर्य में हम अपने दुख कुछ समय के लिए भूल जाते हैं. यह हम पर निर्भर है कि उस फूल को हम झूठ जैसा महकाना चाहते हैं या फिर हम खुद उसके जीवन-सा महकना, खिलना चाहते हैं.
क्रमश:

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें