नशे से होनेवाली दुर्गति के बारे में आंकड़े तो बहुत कुछ कहते हैं, मगर इसका असल दर्द समझना हो, तो उस औरत से पूछिए, जिसका पति-बेटा या उसके परिवार का अन्य कोई पुरुष सदस्य इसकी चपेट में आकर पूरे परिवार को तबाही के रास्ते पर ला देता है. तब एक अकेली पत्नी, मां को जहां पैसे-पैसे के लिए मोहताज होना पड़ता है, वहीं समाज भी उसे हिकारत भरी नजरों से देखता है. उस औरत की सिसकियां गुहार लगा रही हैं –
केवल शौक से की गयी शुरुआत कब नशे की लत बन जाती है, यह इनसान को पता ही नहीं चलता और फिर शुरुआत होती है परिवार और समाज के पतन की. नशे में व्यक्ति का स्वयं तो पतन निश्चित है ही, साथ ही परिवार और प्रियजनों की क्या दुर्गति होती है, इसका अनुमान केवल वही व्यक्ति लगा सकता है, जिसने किसे अपने को नशे में बरबाद होते देखा है.
नशे के कारण इतना आर्थिक नुकसान होता है कि माता-पिता या पत्नी और बच्चों को दो वक़्त की रोटी के लिए भी दूसरों का मोहताज होना पड़ता है. क्यूंकि जो पैसा घर चलाता है, वह तो नशे में व्यर्थ हो जाता है.
नशा करनेवालों का समाज से एक प्रकार का अलगाव-सा हो जाता है. ऐसे परिवारों में बच्चे बहुत ही अनुपयुक्त वातावरण मिलने की वजह से अपने चरित्र का विकास नहीं कर पाते. हर समय भय और अपराधबोध के साये में घिरे रहते हैं और यह वह नुकसान है, जो आर्थिक नुकसान से भी ज्यादा खतरनाक है. इसकी भरपाई जीवनभर नहीं हो सकती. बच्चे अभिभावकों की इज्जत करना छोड़ देते हैं. हो सकता है कल को बच्चे भी इसी राह पर चलें और अपने नशे की लत के लिए अपने अभिभावकों को ही जिम्मेवार ठहराएं.
क्या कहते हैं आंकड़े
आंकड़ों के अनुसार करीब 16 करोड़ लोगों की मौत सालाना पूरे विश्व में नशे के कारण हो जाती है. केवल भारत में ही हर 96वें मिनट में नशे से ग्रस्त एक व्यक्ति की मौत हो जाती है.
- एचआइवी सहित तकरीबन 60 किस्म की बीमारियां केवल नशे की वजह से होती हैं.
- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड के सर्वेक्षणों के अनुसार 10 लोग प्रति दिन ड्रग एब्यूज की वजह से आत्मघाती हो जाते हैं.
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में नशे का कारोबार 2011-2013 तक तीन वर्षों में ही पांच गुना तक बढ़ गया.
- माना जा रहा है कि नशे के व्यापार के लिए भारत एशिया का सबसे बड़ा बाजार बन गया है.
- आंकड़े बताते हैं कि नशा करनेवाले कुल लोगों में से 76% की आयु 18 से 35 वर्ष के बीच है और नशा करनेवाले हर 5 में से 1 नाबालिग है.
- पूरे विश्व में होनेवाली मौतों में 5% केवल नशे की वजह से होती है.
नशे का शिकार एक व्यक्ति होता है, मगर उसका दुष्प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है. बच्चों की मासूमियत छिन जाती है और उनका भविष्य बिखर जाता है.
टूट जाते हैं संबंधों के डोर
नशे के कारण पति-पत्नी में तनाव की स्थितियां पैदा हो जाती हैं. नशे का आदि व्यक्ति अपने को समाज से अलग कर लेता है और वह सबके प्रति भावशून्य हो जाता है. इससे जीवनसाथी की मन:स्थिति बेहद चिंताजनक एवं दुखदायी हो जाती है. नशे से ग्रस्त व्यक्ति हर रिश्ते से ऊपर नशे को रखता है, अपने बच्चों के लिए भी उसकी संवेदनाएं नष्ट हो जाती हैं और जीवनसाथी के लिए यह स्थिति बरदाश्त से बाहर हो जाती है.
एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स के पीछे भी एक बहुत बड़ा कारण नशा ही है. इन वजहों से शादीशुदा जिंदगी टूटने के कगार पर आ जाती है, जिसका असर न केवल दांपत्य जीवन पर, बल्कि सबसे अधिक बच्चों के भविष्य पर पड़ता है. यदि दोनों में से पति नशे की लत से पीड़ित है, तो एक औरत के लिए समाज में इज्जत से रहना एक कड़ी चुनौती बन जाता है. वह अंदर-ही-अंदर घुटती रहती है. खुद की इज्जत और बच्चों का पालन-पोषण जैसी गंभीर समस्याओं से उसे अकेले जूझना पड़ता है.
बच्चों-युवाओं को जकड़ रहा नशा : हम रोज सुन रहे हैं कि युवाओं में नशे की प्रवृत्तियां तेजी से बढ़ रही हैं. ध्यान दें, तो देखेंगे कि 10-11 वर्ष की उम्र से ही मादक पदार्थों का सेवन करना शुरू कर देते हैं. प्रमुख है कि अब तो लड़कियां भी काफी संख्या में नशीले पदार्थों की आदि हो गयी हैं. नशे का मायाजाल समाज में एक फैशन के रूप में भी फैलाया जा रहा है. इनसान नशे से वशीभूत होकर समाज और प्रियजनों के लिए घातक बनता जा रहा है. वह अच्छे-बुरे में फर्क को समझना बंद कर देता है. एक अजीब-सा उन्माद और वहशीपन उसे घेरे रहता है. नशे को दूर करने का दायित्व एक व्यक्ति से लेकर पूरे समाज व सरकार का है. इस दिशा में बिहार में शराबबंदी का कदम सराहनीय है, मगर अन्य सरकारों को भी राजनीति से ऊपर उठ कर कड़े निर्णय लेने होंगे. उन्हें अधिक राजस्व का निजी स्वार्थ त्यागना होगा. नशा व्यापारियों पर कड़े जुर्माने-सजा का प्रावधान रखना होगा, तभी पूर्ण रूप से इस पर लगाम लग सकेगी और लोगों के घर उजड़ने से बच सकेंगे.