चूंकि, टायफायड बैक्टीरिया जनित रोग है और वायरल फीवर वायरस से होता है. इसलिए दोनों का इलाज अलग-अलग होता है. टायफायड, मलेरिया और वायरल फीवर के लक्षण करीब-करीब एक जैसे होते हैं. सभी में बुखार, सर्दी-जुकाम आैर सिर दर्द पाया जाता है. हालांकि, टायफायड में शरीर में दर्द अधिक होता है. रोगी सर्दी-जुकाम की जगह सिर दर्द की शिकायत ही करते हैं. टायफायड तीन साल से ऊपर के बच्चों को ही होता है, जबकि इंफ्लूएंजा या फ्लू नवजात से लेकर बुजुर्ग तक को हो सकता है. इंफ्लूएंजा यदि नवजात को हो, तो उसे सांस लेने में तकलीफ होती है. वह हांफने लगता है. इसका समय पर इलाज न होने से दमा रोग होने का खतरा होता है. टायफायड और मलेरिया के कीड़े का पता चार-पांच दिन के बाद ही चलता है, जबकि डेंगू की बात की जाये, तो उसके वायरस का पता पहले दिन से ही चल जाता है.
Advertisement
मॉनसून में रखें सेहत का ख्याल
भीषण गरमी के बाद मॉनसून के आने से मौसम सुहावना हो चला है, मगर यही वह मौसम है जब थोड़ी भी लापरवाही सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है. बरसात में जलजमाव होने से गंदगी हर तरफ फैल जाती है. ऐसे में मच्छर, बैक्टीरिया और वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. इस मौसम […]
भीषण गरमी के बाद मॉनसून के आने से मौसम सुहावना हो चला है, मगर यही वह मौसम है जब थोड़ी भी लापरवाही सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है. बरसात में जलजमाव होने से गंदगी हर तरफ फैल जाती है. ऐसे में मच्छर, बैक्टीरिया और वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. इस मौसम में मलेरिया, टायफायड, वायरल फ्लू, जॉन्डिस, सर्दी-जुकाम आदि हो सकते हैं, वहीं कुछ लोग पेट से संबंधी समस्या से भी परेशान रहते हैं. इस मौसम में बच्चों का खास ख्याल रखना भी जरूरी है, क्योंकि बड़ों के मुकाबले उनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है. इस मौसम में अपना ख्याल कैसे रखें, बता रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
शहरों में बरसात ज्यादा तबाही लेकर आती है, क्योंकि पॉलीथीन से नाले जाम हो जाते हैं. इससे गंदा पानी सड़कों पर आ जाता है. नाले के पानी में पैर ज्यादा देर भीगे रहने से कई तरह के फंगल डिजीज हो जाते हैं. बरसाती मौसम में मच्छरों का प्रकोप भी बढ़ जाता है. ये मच्छर मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और जैपनीज इन्सेफ्लाइटिस के प्रमुख कारक हैं. बरसात के मौसम में ह्यूमिडिटी ज्यादा होने के कारण कपड़े नहीं सूखते और उनमें बैक्टीरिया पनपने लगता है, जो वायरल बुखार, सिर दर्द, फंगल रोग का कारण है. दूषित जल और खाने के सेवन से टायफॉयड का भी खतरा होता है, जो Salmonella typhi बैक्टीरिया के शरीर में प्रवेश करने से होता है. इससे डायरिया, हैजा, फंगल इन्फेक्शन जैसे जलजनित रोग भी होते हैं.
चूंकि, टायफायड बैक्टीरिया जनित रोग है और वायरल फीवर वायरस से होता है. इसलिए दोनों का इलाज अलग-अलग होता है. टायफायड, मलेरिया और वायरल फीवर के लक्षण करीब-करीब एक जैसे होते हैं. सभी में बुखार, सर्दी-जुकाम आैर सिर दर्द पाया जाता है. हालांकि, टायफायड में शरीर में दर्द अधिक होता है. रोगी सर्दी-जुकाम की जगह सिर दर्द की शिकायत ही करते हैं. टायफायड तीन साल से ऊपर के बच्चों को ही होता है, जबकि इंफ्लूएंजा या फ्लू नवजात से लेकर बुजुर्ग तक को हो सकता है. इंफ्लूएंजा यदि नवजात को हो, तो उसे सांस लेने में तकलीफ होती है. वह हांफने लगता है. इसका समय पर इलाज न होने से दमा रोग होने का खतरा होता है. टायफायड और मलेरिया के कीड़े का पता चार-पांच दिन के बाद ही चलता है, जबकि डेंगू की बात की जाये, तो उसके वायरस का पता पहले दिन से ही चल जाता है.
बरसात में जरूरी संक्रमण से बचाव
बरसात में वायरल बुखार आम बात है. इसके लक्षण अन्य बुखार की तरह ही हैं. अचानक तेज बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द, सूखी तेज खांसी, जुकाम, गले में खराश, नाक से पानी आना, छींक आदि होने लगता है. शरीर का तापमान 101 से 103 डिग्री या और ज्यादा हो सकता है. कुछ वायरल बुखार तीन दिन में, कुछ पांच दिन में और कुछ सात दिन में उतरते हैं. सात दिनों से अधिक वायरल बुखार नहीं रहता. यदि ऐसा हो, तो इलाज बुखार को कम रखने के लिए ठंडे पानी की पट्टी का इस्तेमाल करें और डॉक्टर से मिलें. पैरासिटामोल ले सकते हैं, लेकिन डॉक्टर को दिखा जरूर लें.
डेंगू होने पर घबराएं नहीं
बरसात में मच्छरों का प्रकोप बढ़ जाता है. इसलिए इस मौसम में वायरल फीवर होने पर भी लोग उसे डेंगू समझ कर घबरा जाते हैं. हालांकि, डेंगू की जांच और उसका इलाज आसानी से हो जाता है. इसके लिए एंटीजेन की जांच की जाती है. आम तौर पर जब डेंगू होता है, तो प्लेटलेट्स एक लाख के ऊपर रहता है और धीरे-धीरे घटता है. जब प्लेटलेट्स 20 हजार के नीचे चले जायें, तो सतर्क हो जाएं. पपीता का पत्ता चबाने या पपीता का फल खाने से लाभ मिलता है. रोगी की हालत यदि नाजुक हो, तो प्लेटलेट्स चढ़ाया जाता है और कुछ दवाइयां दी जाती हैं, जिससे वह पूरी तरह ठीक हो जाता है. सभी बरसाती और मच्छर जनित रोगों से बचने के लिए साफ-सफाई के साथ खान-पान पर भी विशेष ध्यान देना जरूरी है.
प्रस्तुति : सौरभ चौबे
स्किन इन्फेक्शन
बरसात में भीगने, गीले कपड़े पहनने या गंदे पानी के संपर्क से स्किन इन्फेक्शन हो जाते हैं.
रैशेज : बरसात में स्किन में ज्यादा मॉश्चर से घमौरियां चेस्ट व गरदन पर होती हैं. इनमें इंचिग होती है. ये घमौरियां आमतौर पर मेडिसिनल पाउडर लगाने से ठीक हो जाती हैं. स्किन में मॉश्चर बढ़ जाने से माइक्रोब्स पनपने लगते हैं, जिनसे लाल रैशेज हो जाते हैं. ये रैशेज उन जगह पर होते हैं, जहां स्किन फोल्ड होती है, जैसे- जांघ, बगल, पेट, कमर और चेस्ट के निचले हिस्से में. कोशिश करें कि शरीर को सूखा रखें. बर्फ से प्रभावित जगह की सिंकाई कर सकती हैं. कैलेमाइन लोशन लगाएं.
फोड़े-फुंसियां : बरसात में इम्यून सिस्टम कमजोर होने की वजह से बैक्टीरिया स्किन को प्रभावित करते हैं. स्किन पर फोड़े-फुंसी, बालतोड़, पसवाले लाल दाने हो जाते हैं. इनमें दर्द भी होता है. दानों पर फ्यूसिडिक एसिड और म्यूपिरोसिन एंटीबाॅयोटिक क्रीम, क्लाइंडेमाइसिन लोशन लगाएं.
फंगल इन्फेक्शन : बारिश में रिंगवार्म यानी दाद-खाज होते हैं. पसीना ज्यादा आने, माॅश्चर रहने, गीले कपड़े पहनने, कपड़ों में साबुन रहने से ऐसा होता है. रिंग की तरह रैशेज होते हैं, जिनमें खुजली होती है. यह एक से दूसरे व्यक्ति को फैल सकता है. इसलिए रूमाल व अन्य कपड़े शेयर न करें. महिलाओं में वजाइनल फंगल इन्फेक्शन ज्यादा होेते हैं. प्रभावित स्किन को स्वच्छ और सूखा रखें. डाॅक्टर की सलाह लें. सड़कों पर जमा पानी से पैर की ऊंगलियों के बीच भी फंगल इन्फेक्शन होते हैं. बरसात के दिनों में सैंडल या चप्पल पहनें और घर में आते ही पैर धोएं.
डाॅ अंशु जिंदल
क्लीनिकल डायरेक्टर, जिंदल अस्पताल,
मेरठ, यूपी
कंजंक्टिवाइटिस
आइ फ्लू एक वायरस है, जो एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है. इस के कारण आंखें लाल हो जाती है, आंखों में सूजन आ जाता है, अंदरूनी अंगों में इचिंग शुरू हो जाती है. यदि गंदे हाथ से उसे छू दिया जाये, तो इन्फेक्शन तेजी से फैलता है. आमतौर पर यह एक हफ्ते में अपने आप ठीक हो जाता है. साफ-सफाई बरतें, आंखों को ताजे पानी या बोरिक एसिड मिले पानी से धोएं. आंखों को बार-बार हाथ न लगाएं और न मलें. एलर्जिक आइफ्लू होने पर नॉन स्टेरॉयडल एंटीइन्फ्लेमेट्री मेडिसिन की जरूरत होती है. एंटी बैक्टीरियल आइ ड्रॉप डाला जाता है. हाइजीन मेंटेन करे. तौलिया, रूमाल और चश्मा शेयर न करें. आसपास किसी को यह इन्फेक्शन हो, तो दूरी बनाये रखें.
डायरिया
बरसात के मौसम में खाने-पीने की चीजों में बैक्टीरिया पनपते हैं. ऐसा खाद्य और पेय पेट में इन्फेक्शन यानी डायरिया का कारण है. डायरिया के मरीज को दिन में 4-5 बार पतला दस्त आता है. डिहाइड्रेशन से उल्टियां हो सकती हैं. पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द, दस्त, तेज बुखार, टॉयलेट में खून आना आदि समस्याएं आती हैं. पीड़ित व्यक्ति केा ओआरएस का घोल या नमक-चीनी की शिकंजी और प्रोबायोटिक्स दही दिया जा सकता है. साथ में नारियल पानी, नीबू पानी, छाछ, दाल का पानी, खिचड़ी, दलिया आदि ले सकते हैं. बाहर का खाना न खाएं.
हैजा
मॉनसून में पीने का पानी सीवेज से मिल जाने पर दूषित हो जाता है, जिससे हैजा हो सकता है. इसमें शरीर पर चकत्ते पड़ जाते हैं, इचिंग होती है, उल्टियां आती हैं. साथ में लंबे समय तक सर्दी-जुकाम और बुखार होता है. ऐसे में पानी उबालकर पीएं. वातावरण ठंडा होने के बावजूद अधिक पानी पीएं. इससे शरीर में उत्पन्न हुए विषाक्त पदार्थ बाहर निकलने में मदद मिलेगी और डिहाइड्रेशन का खतरा नहीं रहता.
हेपेटाइटिस
खुले भोजन और संक्रमित पानी पीने से हेपेटाइटिस ए और इ का इन्फेक्शन हो सकता है. आम भाषा में इसे जॉन्डिस या पीलिया कहते हैं. हाइजीन का ध्यान न रखने और खाना खाने से पहले हाथ न धोने से यह इन्फेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. इस मौसम में इम्यून सिस्टम कमजोर होने की वजह से यह लिवर को भी प्रभावित करता है. इसमें थकान, 3-4 दिन तक हल्का बुखार, सिर दर्द, उल्टियां, कमजोरी, त्वचा और आंखों में पीलापन, पेशाब में पीलापन देखने को मिलता है. बचाव के लिए क्लोरीन युक्त फिल्टर किया पानी उबाल कर पीएं. 20 लीटर पानी में 500 मिलीग्राम क्लोरीन की गोली मिलाकर पानी साफ करें. डॉक्टर की सलाह से हेपेटाइटिस ए वैक्सीन लगवाएं. बातचीत : रजनी अरोड़ा
बरसाती रोगों का होमियोपैथिक उपचार
बरसाती मौसम आते ही बीमारियां भी आती हैं. बच्चे और बुजुर्गों को यह ज्यादा परेशान करती हैं. हम होमियोपैथिक दवाओं की मदद से इन परेशानियों से निजात पा सकते हैं.
इन्फ्लूएंजा या फ्लू
Rhus Tox 200 : बरसात के पानी में भीगने के बाद छींक, नाक से पानी, शरीर में दर्द, ठंडी हवा बिल्कुल बर्दाश्त न होना, बेचैनी, करवट बदलने से आराम, बुखार रहने पर 4 बूंद 4–4 घंटे पर लें.
Eupatorum Perf : छींक के साथ नाक व आंख से पानी, पूरे शरीर की मांसपेशियों में असहनीय दर्द. ऐसा लगे जैसे हड्डियां टूट जायेंगी, तब 200 शक्ति की दवा 4 बूंद 4-4 घंटे पर लें.
Dulcumara : बरसाती हवा चलने से नाक बंद लगे और प्यास लगे तो 4 बूंद 4-4 घंटे पर लें.
पेट रोग
Nat Sulph : बरसात शुरू होते ही अगर किसी को सुबह पीले रंग का पतला शौच होता है और गैस नीचे से निकलते ही साथ-साथ शौच हो जाता है, तब यह दवा 200 शक्ति में 4 बूंद सुबह-रात दो बार रोजाना लें.
Rhododendron : बरसात में अगर बिजली कड़कने से भय, सिरदर्द के साथ, पतला शौच होने लग जाये, तब यह दवा 200 शक्ति की 4 बूंद सुबह-रात लें.
चर्म रोग
SEPIA : दाद या रिंग वॉर्म्स शरीर के किसी भी हिस्से में हो, तब 200 शक्ति की दवा सप्ताह में एक बार 4 बूंद लें.
NAT SULPH : दाद जब बरसात के मौसम से शुरू हो, तब 200 शक्ति की दवा 4 बूंद सप्ताह में एक बार लें.
HERPES ZOSTER : यह रोग आमतौर पर शरीर के एक ही हिस्से में दायें या बायें होता है, जिसमें दर्दवाले पानी भरे फफोले हो जाते हैं और काफी जलन होती है. कपड़ा छूना भी कष्टदायक होता है. यह वायरस जनित रोग है.
Rhus Tox 200 शक्ति की दवा एवं Ranunculus Bulb 200 शक्ति की दवा 3-3 घंटों के अंतराल पर दें. इस दवा से कभी भी Post Herpetic Neuralgia नहीं होता है. रोग हमेशा के लिए ठीक हो जाता है. Post Herpetic Neuralgia एक दर्दनाक स्थिति होती है, जब दर्द एवं जलन जन्म भर रह जाती है.
डॉ एस चंद्रा, पटना
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement