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रक्तदान जिंदगी देने की एक पहल

भारत में 90 प्रतिशत लोगों से यदि रक्तदान नहीं करने की वजह पूछी जाये, तो वे कहते हैं- कभी ख्याल नहीं आया या फिर सूई चुभने से डर लगता है. पर शायद वे नहीं जानते कि यदि 18 वर्ष से 60 वर्ष तक नियमित अंतराल पर रक्तदान करें, तो करीब 500 लोगों की जिंदगी वे […]

भारत में 90 प्रतिशत लोगों से यदि रक्तदान नहीं करने की वजह पूछी जाये, तो वे कहते हैं- कभी ख्याल नहीं आया या फिर सूई चुभने से डर लगता है. पर शायद वे नहीं जानते कि यदि 18 वर्ष से 60 वर्ष तक नियमित अंतराल पर रक्तदान करें, तो करीब 500 लोगों की जिंदगी वे बचा सकते हैं. इस छोटी-सी पहल से वे पुण्य का काम तो करते ही हैं, रक्तदान से उनके शरीर को भी कई फायदे होते हैं. रक्तदान, उसके फायदे और उससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर विशेषज्ञों की मदद से तैयार विशेष प्रस्तुति.
विश्व रक्तदाता दिवस कार्ल लैंडस्टेनर (जिन्हें ABO रक्त समूह तंत्र की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार मिला) के जन्मदिवस (14 जून, 1868) के अवसर पर विश्व में रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है. हम में से ज्यादातर लोग रक्तदान के लिए इसलिए आगे नहीं आते कि रक्तदान से हम कमजोर हो जायेंगे या फिर रक्तदान से हमें गंभीर रोग हो सकता है या फिर रक्तदान में काफी दर्द होगा. आपको हैरानी होगी कि यदि हम थोड़ा सजग रहें, तो रक्तदान के सिर्फ फायदे ही हैं, नुकसान कुछ भी नहीं. रक्तदान के कई फायदे हैं जैसे- नियमित अंतराल पर रक्तदान करने से शरीर में आयरन की मात्रा संतुलित रहती है और रक्तदाता हार्ट अटैक से दूर रहता है.
रक्तदान से कैंसर का रिस्क भी कम होता है.

यह कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, रक्तचाप को नियंत्रित करता है.
इससे ज्यादा कैलोरी व वसा बर्न होता है और शरीर फिट रहता है.
रक्तदान से न केवल किसी व्यक्ति का जीवन बचता है, बल्कि रक्तदाता में नयी कोश‍िकओं का भी निर्माण होता है.

रक्तदान के लिए बरतें ये सावधानी
रक्तदान के समय घबराएं नहीं. बस निडिल के अंदर जाते समय हल्का दर्द होगा, जो कई बार पता भी नहीं चलता. इसके बाद लंबी सांस लें और खुदको शिथिल छोड़ दें. रक्तदान के प्रोसेस पर ध्यान न दें और किसी और चीज के बारे में सोचें. आप च्यूइंगम का उपयोग कर सकते हैं. इसके अलावा जो बातें ध्यान देनेवाली हैं, वो ये हैं कि रक्तदान खाली पेट न करें, रक्तदान से करीब तीन घंटे पहले कुछ खा लें. फलों का रस और पानी जरूर प्रचुर मात्रा में लें. सबसे अहम बात रक्तदान के समय ये जरूर देख लें कि सीरींज और निडिल डिस्पोजेबल और नया हो. साथ ही रक्तदान से पूर्व आपके खून की पूरी तरह से जांच की जाती है, जिससे ये भी पता चल जाता है कि आप किसी और बीमारी से ग्रसित तो नहीं है. वायरल फीवर, एचआइवी पोजेटिव, हेपीटाइटिस बी और सी से इन्फेक्टेड लोगों को रक्तदान नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनका इन्फेक्टेड खून अन्य लोगों को ठीक करने के बजाय और बीमार कर देगा.
घबराएं नहीं रक्तदान के हैं कई फायदे
डॉ अविनाश सिंह
डीएम क्लीनिकल हिमेटोलॉजिस्ट, एम्स,नयी दिल्ली
भारत में सालाना करीब चार करोड़ यूनिट खून की जरूरत होती है, जिसमें से केवल 40 लाख यूनिट खून ही मिल पाता है. इसकी मुख्य वजह है रक्तदान को लेकर लोगों में, खास कर ग्रामीण इलाकों में फैली भ्रांतियां. लोगों को यह लगता है कि खून देने से वे कमजोर हो सकते हैं और उनको कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं. असल में एक स्वस्थ मनुष्य के शरीर में आवश्यक खून रक्तदान के 48 घंटे में ही बन जाता है. यही नहीं, रक्तदान से उसके शरीर में फिर से नये खून का निर्माण होता है, जो कई बीमारियों को दूर रखने में सहायक है.
वायरल फीवर भी वायरस के संक्रमण से होता है, इसलिए ऐसे लोगों को भी ब्लड डोनेट नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनके वायरस से ब्लड लेनेवाला भी संक्रमित हो सकता है.
क्यों जरूरी है वालेंट्री ब्लड डोनेशन
भारत में सालाना करीब चार करोड़ ब्लड यूनिट की जरूरत होती है, हालांकि 40 लाख ब्लड यूनिट ही उपलब्ध हो पाता है. भारत में करीब 40,000 लोगों को प्रतिदिन ब्लड डोनेशन की आवश्यकता होती है हालांकि, 20 प्रतिशत लोग भी यहां ब्लड डोनेट करते हैं. अपने देश में एक्सीडेंटल केस की बात की जाये, तो यहां हर चार मिनट में एक मौत रोड एक्सीडेंट के कारण होती है. 2013 में 1.37 लाख लोग सिर्फ रोड एक्सीडेंट में मारे गये थे. एक्सीडेंटल केस में 50 प्रतिशत से अधिक मौतें समय पर जरूरी खून नहीं मिल पाने के कारण होती है. इसके अलावा एप्लास्टिक एनीमिया (aplastic anaemia), ब्लड कैंसर, थैलेसीमिया और मेजर ऑपरेशन के दौरान खून की जरूरत अधिक मात्रा में होती है.
रक्तदान से जुड़ी अहम जानकारियां
 एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में उसके बॉडी वेट का सात प्रतिशत भाग खून यानी रक्त का होता है, जोकि करीब 4.7 से 5.5 लीटर तक होता है. यह बोन मैरो में बनता है.
 रक्तदान के दौरान मात्र 450 मिलीलीटर रक्त लिया जाता है. शरीर इस रक्त की आपूर्ति 48 घंटों में कर लेता है. हालांकि, उस रक्त के सभी कंपोनेंट को बनने में करीब तीन माह का समय लग जाता है. इसलिए डॉक्टर तीन माह से पूर्व दोबारा रक्तदान की सलाह नहीं देते.
 एक यूनिट रक्त से तीन लोगों की जान बचायी जा सकती है.
 सबसे ज्यादा पाया जानेवाला ब्लड ग्रुप ‘ओ’ है तथा सबसे कम पाये जानेवाला ब्लड ग्रुप ‘एबी-निगेटिव’ है.
 वर्ष 2007 में वैज्ञानिकों ने एंजाइम्स के प्रयोग से ब्लड ग्रुप ए, बी, एबी को ‘ओ’ में बदलने में सफलता प्राप्त कर ली थी, परंतु अभी इसका मनुष्यों पर प्रयोग होना बाकी है.
 विकासशील व गरीब देशों में रक्तदान के पश्चात भी दान किये हुए रक्त का 45 प्रतिशत हिस्सा ही सहेजा जा रहा है.
 अगर किसी देश की तीन प्रतिशत जनता भी रक्तदान करती है, तो उस देश की खून की जरूरत पूरी हो सकती है, पर विश्व के 73 देशों में एक प्रतिशत से भी कम लोग रक्तदान करते हैं.
 विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वैच्छिक रक्तदाताओं के मुकाबले खरीदा हुआ रक्त नहीं लेना चाहिए.
 आंकड़े बताते हैं कि स्वैच्छिक रक्तदाताओं द्वारा दिया गया रक्त न केवल मरीजों के लिए अच्छा है, बल्कि इसमें एचआइवी तथा हेपेटाइटिस बी और सी वायरस के होने की आशंका भी कम रहती है.
 ब्लड डोनेशन से पहले रक्तदाता की खून की जांच की जाती है, जिससे मुफ्त में यह भी पता चल जाता है कि उसे कोई बीमारी तो नहीं, क्योंकि ज्यादातर बीमारियों की जांच के लिए ब्लड की ही जांच की जाती है.
 रक्तदाता तीन महीने बाद फिर से रक्तदान कर सकता है.
डॉ रागिनी ज्योति से बातचीत
रक्तदान कीजिए, अभी कीजिए, बार-बार कीजिए
क्या आप रक्त दान के योग्य हैं : रक्तदान के लिए व्यक्ति की उम्र 18 साल से अधिक और 60 साल से कम होनी चाहिए. वैसे लोग जिनका वजन उनकी हाइट के हिसाब से संतुलित हो और जिन्हें किसी भी तरह की को एलर्जिक बीमारी न हो, वे रक्तदान कर सकते हैं. डोनर का न्यूनतम वजन 50 किलोग्राम होना चाहिए. माहवारी के दौर से गुजर रहीं महिलाएं या बच्चे को स्तनपान करानेवाली महिलाएं रक्तदान नहीं कर सकतीं, क्योंकि इस दौरान उन्हें अतिरिक्त आहार और पोषण की जरूरत होती है. रक्तदान से 48 घंटे पहले तक अल्कोहल का सेवन नहीं किया होना चाहिए, क्योंकि इसका असर खून में बरकरार रहता है. रक्तदान करनेवाले व्यक्ति के हीग्लोबीन का स्तर 12.5 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए. इसके अलावा डोनर का पल्स रेट 50 से 100 एमएम बिना किसी अवरोध के होना चाहिए. बॉडी टेंपरेचर और बीपी नॉर्मल होना चाहिए.

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