फेफड़े के कैंसर (लंग कैंसर) के इलाज के क्रम में कई मरीजों को सांस लेने में परेशानी होती है या सांस ही नहीं ले पाते हैं. इसमें सांस की नली जो फेफड़े को ऑक्सीजन पहुंचाती है, वो ही जाम हो जाती है. ऐसी स्थति में मरीजों को अलग से ऑक्सीजन दिया जाता है और इससे मरीज काफी आराम महसूस करते हैं. लेकिन यह उपाय हमेशा के लिए नहीं है.
लंग्स के कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. धूम्रपान और नशे के अत्यधिक सेवन से जब फेफड़ों में टार की मात्रा काफी बढ़ जाती है तो फेफड़े का कैंसर होता है. अगर टीबी का इलाज सही से नहीं हो या टीबी की दवाई का कोर्स मरीज आधे में ही छोड़ दे, तो फेफड़े के कैंसर की आशंका बढ़ जाती है. लंग्स के कैंसर का इलाज कीमोथेरेपी या फिर सर्जरी ही है, मगर इस कैंसर की चपेट में आने के बाद भी अगर मरीज अपने खान-पान में बदलाव लाये और नशे की लत छोड़ दे तो वह काफी हद तक एक बेहतर जिंदगी जी सकता है.
हर दिन आनेवाले 50 मरीजों में से करीब 10 में लंग कैंसर के अलग-अलग लक्षण नजर आते हैं. धूम्रपान को लेकर बार-बार चेतावनी दिये जाने के बाद भी लोग इसके आदी हो रहे हैं, जो उनमें लंग्स के कैंसर को दावत देता है. यूं तो अन्य कारण भी हैं जिनसे यह बीमारी हो सकती है.
डॉ एसके कुंडू
कैंसर विशेषज्ञ