31.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

हिंदी कहानी : जोया देसाई कॉटेज

लैपटॉप को सामने टेबल पर रख कर शिरीष ने सामने रखी डायरी उठा ली. 'पुरुष कभी प्रेम करना नहीं सीख पायेगा, पुरुष बस उपभोक्ता हो सकता है प्रेमी नहीं.' डायरी के खुले, कोरे पृष्ठ पर शिरीष लिख रहा है. इस डायरी में बहुत कुछ लिखता रहता है वह- कोई विचार, कोई विशेष बात, कभी-कभी कविताएं भी.

शिरीष चुपचाप बैठा हुआ दूर नजर आ रहे गुम्बदों को देख रहा है. पूरे चांद की रात में अमरूद और कदम्ब के पेड़ों के बीच दिख रहे आसमान में किसी प्रार्थना की तरह हाथ उठाये हुए गुम्बद. ये जहाज महल के गुम्बद हैं. माण्डवगढ़ में बाज बहादुर द्वारा बनवाये गये जहाज महल के गुम्बद. अट्ठाइस वर्षीय शिरीष एक प्रोफेशनल फोटाग्राफर है और अपनी कंपनी के लिए ‘माण्डवगढ़’ की तस्वीरें लेने आया है, जिसे ‘माण्डव’ भी कहते हैं और ‘माण्डू’ भी. पिछले दो दिन से शिरीष माण्डवगढ़ में ही है. शिरीष अपने कॉटेज के बाहर लॉन में रखी कुर्सी पर बैठा हुआ है. शिरीष जहां रुका हुआ है, वहां आगे एक रेस्टोरेंट है और उसके पीछे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर आठ कॉटेज बने हुए हैं. हर कॉटेज का अलग नाम है,’हिंडोला कॉटेज’, ‘नीलकंठ कॉटेज’, ‘चंपा बावड़ी कॉटेज’, ‘जहाज महल कॉटेज’. सबसे अलग नाम है उस कॉटेज का, जिसमें शिरीष रुका है-‘जोया देसाई कॉटेज’. ठहरते समय उसने मैनेजर से पूछा भी था इस विचित्र नाम बारे में, मगर मैनेजर से उसे इसका कोई उत्तर नहीं मिला था.

आज पूरा दिन शिरीष ने ‘रानी रूपमती महल’ की फोटोग्राफी की है. माण्डवगढ़ के अंतिम स्वतंत्र शासक बाज बहादुर की प्रेमिका और रानी रूपमती के उस महल की, जिसे बाज बहादुर ने अपनी प्रेमिका के लिए बनवाया था. रेस्टोरेंट में डिनर कर के आने के बाद से ही शिरीष यहां लॉन में अपना लैपटॉप और डायरी लेकर बैठा है. इंटरनेट पर रानी रूपमती और बाज बहादुर के बारे में पढ़ रहा है. रूपमती माण्डवगढ़ से करीब दो सौ किलामीटर दूर स्थित तिंगजपुर के एक चरवाहे की लड़की थी. उसकी गायकी पर मोहित होकर बाज बहादुर ने उससे शादी कर उसे अपनी रानी बना लिया. अकबर के सिपहसालार आदम खान ने जब माण्डवगढ़ पर कब्जा करने के लिए आक्रमण किया, तो बाज बहादुर पराजित होकर खानदेश भाग गया था. माण्डवगढ़ में रूपमती ने आदम खान से बचने के लिए जहर खाकर जान दे दी थी. पूरे विवरण को पढ़ कर शिरीष का मन कसैला हो गया. शिरीष को लग रहा है कि यह कैसा प्रेमी है, जो अपनी प्रेमिका, अपनी पत्नी को शत्रु के साये में छोड़ कर स्वयं भाग गया? और प्रेमिका के जहर खाकर मरने के छह साल बाद तक भी जिंदा रहा, इतना प्रेम था तो प्रेमिका की आत्महत्या की सूचना पर स्वयं भी क्यों नहीं मर गया.

लैपटॉप को सामने टेबल पर रख कर शिरीष ने सामने रखी डायरी उठा ली. ‘पुरुष कभी प्रेम करना नहीं सीख पायेगा, पुरुष बस उपभोक्ता हो सकता है प्रेमी नहीं.’ डायरी के खुले, कोरे पृष्ठ पर शिरीष लिख रहा है. इस डायरी में बहुत कुछ लिखता रहता है वह- कोई विचार, कोई विशेष बात, कभी-कभी कविताएं भी.

Also Read: हेमंत कुमार की मगही कविता – पर्यावरण बचाहो और बड़ी निमन मगही भाषा

किसी के कदमों की आहट से शिरीष ने मुड़ कर देखा, तो उसे एक युवक अपनी तरफ आता दिखा. ‘नमस्ते शिरीष जी!’ पास आकर उस युवक ने कुछ विनम्रता से कहा. शिरीष ने देखा आने वाला लगभग उसी की उम्र का सत्ताइस-अट्ठाइस साल का सुंदर-सा युवक है.

‘नमस्ते !’ शिरीष ने डायरी को सामने टेबल पर रख कर उठते हुए कहा.

‘मैं राहुल हूं, इस कॉटेज का ओनर.’ राहुल ने कहा.

‘ओ… अच्छा-अच्छा आप हैं ओनर. मैं तो पहले दिन से ही आपसे मिलना चाह रहा हूं, पता चला कि आप बाहर गये हुए हैं.’ शिरीष ने कुछ मुस्कुराते हुए कहा.

‘जी मैं बाहर गया हुआ था, आज ही वापस आया. क्यों मिलना चाह रहे थे आप ?’ राहुल ने पूछा.

‘किसी खास कारण से. मगर पहले आप बैठिए तो.’ शिरीष ने कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा और स्वयं भी कुर्सी पर बैठ गया.

‘क्या बात करनी है आपको मुझसे ?’ कुछ देर की चुप्पी के बाद राहुल ने कहा.

‘राहुल जी पहले आप प्रॉमिस कीजिए कि मेरे पूछने का आप बुरा नहीं मानेंगे.’ शिरीष ने कहा.

‘नहीं मानूंगा मगर एक शर्त है, आप ये राहुल जी कहना बंद कीजिए, बस राहुल कहिए.’ मुस्कुराते हुए कहा राहुल ने.

‘ठीक है, आप भी बस शिरीष ही कहिए.’ शिरीष ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, राहुल ने हाथ बढ़ा कर मिला लिया.

‘बताइये शिरीष, आपको क्या पूछना है मुझसे?’ राहुल ने पूछा.

‘राहुल, मुझे तुमसे एक बहुत विचित्र सवाल पूछना है…’ कहते हुए शिरीष रुका ‘आप की जगह तुम कहूंगा तो चलेगा न?’ शिरीष के प्रश्न पर राहुल ने मुस्कुरा कर अपना सिर स्वीकृति में हिला दिया.

‘राहुल, अगर नहीं बताना हो, तो मत बताना, मुझे बुरा नहीं लगेगा.’ शिरीष ने भूमिका बांधी.

‘शिरीष, मैंने अनुमान लगा लिया है, आपको क्या पूछना है.’ राहुल ने कहा.

‘आप नहीं तुम… हम दोनों हमउम्र ही हैं. वैसे अब मुझे इस बात की उत्सुकता हो रही है कि तुम क्या अनुमान लगा रहे हो.’ शिरीष ने कहा. शिरीष के कहते ही राहुल कुछ देर कॉटेज की तरफ देखता रहा.

‘इस कॉटेज का नाम जोया देसाई कॉटेज क्यों है ?’ कुछ देर की चुप्पी के बाद राहुल ने उदास स्वर में कहा.

‘गजब… कैसे अनुमान लगा लिया तुमने?’ शिरीष ने कुछ आश्चर्य के स्वर में कहा.

‘मुझे पता था कि कभी न कभी, कोई कलाकार इसमें रुकेगा, वही पूछेगा यह प्रश्न.’ राहुल ने सधे हुए स्वर में कहा.

‘कलाकार…?’ शिरीष ने पूछा.

‘ फोटोग्राफी भी तो एक कला ही है.’ राहुल ने शिरीष की आंखों में देखते हुए कहा.

‘हां, यह तो सही है. क्या इस कलाकार को बताना चाहोगे कॉटेज के नाम के पीछे का सच.’ शिरीष ने प्रश्न किया.

‘बिलकुल बताऊंगा, यह सच बताने के लिए मैं किसी कलाकार के ही इंतजार में था.’ राहुल का स्वर उदासी में डूबा है.

Also Read: यात्रा वृत्तांत : पहाड़ों के बीच गुमशुदा है गुरेज वैली

‘बात तब शुरू होती है, जब मैं बीस-इक्कीस वर्ष का था. मेरे पिता ने ही यह कॉटेजेस बनवाये थे. पहले उनका बस वह रेस्टोरेंट ही था. पीछे की यह जमीन खाली पड़ी थी. लोगों के कहने पर पिताजी ने कुछ बैंक से और कुछ मिलने-जुलने वालों से लोन लेकर पीछे की खाली जमीन पर चार कॉटेज बनवा लिये. बनवाने के बाद पता चला कि कॉटेज से होने वाली कमाई इतनी नहीं है कि उससे लोन की किश्तें निकल सकें. धीरे-धीरे पिताजी कर्ज के दलदल में डूबने लगे और एक दिन कर्ज की चिंता पिताजी की चिता बन गयी.’ राहुल की आवाज जैसे कहीं डूबती चली गयी.

‘ओह…!’ शिरीष ने अफसोस के स्वर में कहा.

‘पिताजी के बाद मुझे यहां सब कुछ संभालना पड़ा. घर में सबसे बड़ा मैं ही था. जब मैंने यहां सब कुछ संभाला, तो कुछ पता नहीं था कि मुझे क्या करना है. बहुत से कर्मचारी भी काम छोड़ कर जा चुके थे, उनका काम भी मुझे ही करना था. मैं मालिक भी था, मैनेजर भी था और रिसेप्शनिस्ट भी. कोई वेटर नहीं उपलब्ध होता था, तो मैं ही कॉटेजेस में सर्व करने जाता था. कभी-कभी रात ज्यादा हो जाती थी, तो घर न जाकर वहीं रेस्टोरेंट में ही रुक जाता था. कच्ची उम्र में ही जिम्मेदारियां सिर पर आने से मैं एकदम बड़ा हो गया था.’ राहुल कहते हुए रुक गया.

‘उसी समय जोया देसाई यहां आयी थी. जोया अमेरिका से भारत अपने पति के साथ आयी थी, जो किसी मल्टीनेशनल कंपनी की तरफ से इंदौर में सप्ताह भर की ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भाग लेने आया था. इंदौर पहुंच कर जोया टैक्सी कर के अकेली माण्डव आ गयी थी. माण्डव पहुंचते ही यहां मेरे रेस्टोरेंट में वह खाना खाने आयी थी. रेस्टोरेंट में बैठे हुए उसने कॉटेजेस के नाम का बोर्ड देखा, तो ‘रूपमती कॉटेज’ नाम पर निगाहें ठहर गयी थीं उसकी. यही कॉटेज, जिसमें आप ठहरे हैं, तब इसका नाम ‘रूपमती कॉटेज’ था. खाना खाने से पहले ही उसने कॉटेज देखना चाहा था, ऑफ सीजन था इसलिए सारे कॉटेज खाली पड़े थे उस समय. कॉटेज देखने के बाद तुरंत ही सात दिन के लिए यह कॉटेज बुक कर दिया था उसने.’ कह कर राहुल कुछ देर के लिए चुप हो गया.

Also Read: हिंदी कहानी : मेरे अंदर भी बहती है कोई नदी

‘अगले दिन जोया ने मुझसे एक गाइड और टैक्सी का इंतजाम करने को कहा. मेरा एक दोस्त दोनों काम करता था, मैंने उसे ही जोया के साथ भेज दिया. दिन भर घूम कर आने के बाद उस दिन रात का खाना जोया ने कॉटेज में ही ऑर्डर किया था. मैं खुद खाना लेकर गया था. जब मैं पहुंचा तो जोया ने कहा था- ‘आपके ओनर का नंबर और नाम दीजिए, मैं आप लोगों की सर्विस की तारीफ करना चाहती हूं।’ मैंने धीरे से कहा था- ‘मेरा नाम राहुल है और मैं ही ओनर हूं.’ जोया की आंखें फैल गयी थीं, उसने कहा था- ‘अरे, तो आप क्यों लेकर आये डिनर, किसी को भेज देते.’ मैं चुपचाप डिनर को टेबल पर लगाता रहा था. जोया की आंखें पूरे समय मुझे पर ही थीं.’ राहुल जैसे अतीत के किसी पल में ठहरा हुआ कहानी सुना रहा है.

‘जोया सुंदर थी, मगर उसकी सुंदरता उदासी में डूबी हुई सुंदरता थी. उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में माण्डव के खण्डहरों की तरह सूनापन था. अगले दिन जोया कहीं नहीं गयी, कॉटेज में ही रुकी रही. उस रात को जोया ने दो लोगों के लिए डिनर मंगवाया था कॉटेज में. मैं जब डिनर लेकर गया, तो जोया ने मुझे अपने साथ डिनर पर बिठा लिया था. डिनर के दौरान बातों ही बातों में मेरी पूरी कहानी जान ली थी उसने. डिनर के बाद जब मैं चलने लगा था तो बोली थी-‘राहुल चिंता मत करो यह समय भी बीत जायेगा.’ कहते हुए उसकी उदास आंखों में नमी तैर गयी थी.’ राहुल की आवाज में कम्पन-सा महसूस हुआ शिरीष को.

‘अगले दिन वह दिन भर घूम कर जब शाम को लौटी, तो सीधे मेरे पास आयी, बोली- ‘मैं तैयार होती हूं, आज तुम मुझे ‘लाइट एंड साउंड शो’ दिखाने ले जाओगे.’ उस रात हिंडोला महल की दीवार पर होने वाला लाइट एण्ड साउंड शो देखते समय जब शो में बाज बहादुर और रूपमती का जिक्र आया था, तो जोया ने कुर्सी के हत्थे पर रखे हुए मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया था. मैं स्तब्ध सा बैठा था. रूपमती और बाज बहादुर के पहली बार मिलने के बारे में जब बताया जा रहा था, तब मेरे हाथ पर जोया के हाथों का दबाव बढ़ता जा रहा था. जब हम कॉटेज पहुंचे, तो रात बहुत हो चुकी थी. मैं उसे छोड़ कर वापस जाने को हुआ, तो उसने रोक लिया, जाने किस सम्मोहन में बंधा हुआ मैं रुक गया. वह रात…’ कहते हुए बात को अधूरा छोड़ कर राहुल कुछ देर को चुप हो गया.

Also Read: हिंदी कहानी : हस्तक्षेप

‘मैं, जो जोया के आने के पहले भूल ही चुका था कि मैं प्रेम करने की उम्र में हूं. मैं किसी मशीन की तरह जिंदगी बिता रहा था, उस रात जोया ने मुझे मशीन से इंसान बना दिया था. रंग, गंध, स्पर्श, स्वर और रस की नदी में सारी रात बहते रहे हम. सारी रात…’ राहुल की आवाज बहुत गहरी उदासी में डूब गयी है.

‘उसके बाद के चार दिन मैंने ही जोया को माण्डव घुमाया. लेकिन वह बस बाज बहादुर के महल और रानी रूपमती के महल के आस-पास ही भटकती रही. उसके बाद की चार रातें भी उसी एक रात की तरह बीतीं.’ कह कर कुछ देर के लिए राहुल रुका, ‘जब उसके जाने का दिन आया, तो मुझे पता चला कि मैं अपने जीवन के पहले प्रेम में हूं. प्रेम, जिसका जाना पहले से तय था. चलते समय जोया ने कहा था- ‘अपने बैंक अकाउंट की डिटेल्स दे दो, मैं इंदौर पहुंच कर बिल का अमाउंट तुम्हारे अकाउंट में जमा करवा दूंगी.’ मैं बिल के लिए मना करना चाहता था, लेकिन परिस्थितियां इसकी इजाजत नहीं दे रही थीं मुझे. मैंने चुपचाप अपने अकाउंट की डिटेल्स दे दी थीं. जब जोया टैक्सी में बैठ गयी थी, तो मैंने धीरे से पूछा था- ‘अब कब मिलना होगा?’ जोया ने कहा था- ‘पता नहीं… कुछ नहीं कह सकती, हां मगर इतना तय है कि माण्डव से बहुत कुछ लेकर जा रही हूं. प्रेम को समय से नहीं मापा जाता, अहसास से मापा जाता है.’ मैं कुछ नहीं कह पाया था उसके बाद. बस जाती हुई टैक्सी को हाथ हिला कर विदा देता रहा.’ राहुल जैसे अपने आप से ही बात कर रहा है.

‘अच्छा, तो यह कारण है कॉटेज का नाम ‘जोया देसाई कॉटेज’ रखने का?’ कुछ देर की चुप्पी के बाद शिरीष ने कहा.

‘नहीं, कहानी अभी खत्म नहीं हुई है.’ राहुल ने तुरंत कहा ‘तीन-चार दिन बाद मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आया, जिसमें बैंक खाते में एक बड़ी राशि जमा होने की सूचना थी. जितना कर्ज मुझ पर था, उससे लगभग दोगुनी राशि. मैं हैरत में था कि अचानक कुछ देर में दूसरा मैसेज आया- ‘यह राशि मैंने जमा की है. इंडिया के मेरे पर्सनल एकाउंट में कई सालों से यूं ही पड़ी थी. मुझे अब समझ आया कि पैसे को पानी की तरह होना चाहिए, जहां अनावश्यक है, ज्यादा है, वहां से उस तरफ बह जाना चाहिए, जहां कम है, जहां उसकी आवश्यकता है. तुमसे उम्र में बड़ी हूं, इसलिए अधिकार से दे रही हूं. जितना भी कर्ज है, वो सब चुका देना और बचे पैसों से तीन-चार कॉटेज और बनवा लेना. आज रात मैं अमेरिका लौट रही हूं, यह इंडिया वाला मोबाइल नंबर आज रात बंद हो जायेगा. अमेरिका का नंबर मैंने जान-बूझ कर तुमको नहीं दिया है. अपनी जिंदगी को व्यवस्थित कर लेना और परिवार के मुखिया होने के सब दायित्व पूरे करना. अलविदा बाज बहादुर अलविदा.’ मैं हैरत में था कि उसने अंत में राहुल न लिख कर बाज बहादुर क्यों लिखा.’ राहुल के स्वर में अंतिम वाक्य कहते हुए उदासी घुल गयी. शिरीष ने देखा कि पूर्णिमा का चांद अब बिलकुल जहाज महल के गुम्बदों के ऊपर आ गया है. एक बहुत अच्छी फोटो के लिए परफेक्ट फ्रेम.

Also Read: एडिनबरा के भूमिगत भूत

‘मैंने वही किया, जो जोया ने लिखा था. सारा कर्ज चुका दिया, चार कॉटेज और बनवा लिये और जिंदगी को व्यवस्थित कर लिया.’ राहुल ने कुछ देर की चुप्पी के बाद कहा.

‘और फिर इस कॉटेज का नाम ‘जोया देसाई कॉटेज’ रख दिया.’ शिरीष ने कहा.

‘नहीं शिरीष, कहानी अभी भी ख्त्म नहीं हुई.’ राहुल ने एक उदास मुस्कुराहट के साथ कहा ‘इस कॉटेज का नाम पहले की तरह ‘रूपमती कॉटेज’ ही था. जोया के जाने के करीब साल भर बाद अमेरिका के नंबर से एक मैसेज मेरे मोबाइल पर आया…’ कहते हुए राहुल कुछ देर को रुका और अपने मोबाइल में कुछ करने लगा. कुछ देर बाद शिरीष की तरफ देखता हुआ बोला ‘मैं आपको वह मैसेज पढ़ कर ही सुनाता हूं- ‘नमस्कार, मैं जोया की दोस्त हूं, जोया दो दिन पहले नहीं रही. जोया ने मुझे यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि उसके नहीं रहने की खबर आप तक मैं पहुंचा दूं. जब जोया भारत आयी थी, उसके कुछ ही दिन पहले उसकी एनुअल मेडिकल रिपोर्ट्स ठीक नहीं आयी थी, डॉक्टर्स ने किसी गंभीर बीमारी के संकेत दिये थे. उसने बचपन में बाज बहादुर-रूपमती और माण्डव की कहानी कई बार पढ़ी थी, तब से वह माण्डव जाना चाहती थी. इसीलिए वह जिद कर के पति के साथ भारत आयी थी. रूपमती उसकी सबसे बड़ी फैंटेसी थी, वह रूपमती होना चाहती थी. जब वह भारत जा रही थी, तो मुझसे हंसते हुए कहा था उसने- ‘इस बार मैं बाज बहादुर की तलाश करने माण्डव जाने के लिए ही भारत जा रही हूं.’ मैंने भी हंसते हुए कहा था- ‘अगर बाज बहादुर नहीं मिला तो ?’ उसने जवाब दिया था- ‘बाज बहादुर आसमान से अनूठा नहीं उतरता, रूपमती का प्रेम उसे बाज बहादुर बना देता है.’ भारत से अमेरिका लौटते ही उसका इलाज शुरू हो गया था. मैं उससे मिलने अस्पताल जाती थी, तो उसे पहले की तरह कभी उदास या दुखी नहीं देखा मैंने, वह माण्डव में बिताये गये खूबसूरत समय के सुख में थी. उसी सुख में वह दुनिया से जाना चाहती थी और दो दिन पहले वह चली भी गयी. आपके लिए उसने मैसेज छोड़ा है- ‘अब मेरा इंतजार मत करना.’ शुक्रिया राहुल… आपने मेरी सहेली की मौत सुखमय कर दी… उसकी रूपमती होने की इच्छा पूरी कर दी… गॉड ब्लेस यू राहुल…’ इस संदेश को पढ़ कर मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं क्या करूं?’ राहुल की आवाज एक बार फिर गहरी उदासी में डूब गयी है.

‘उसने मेरा इंतजार समाप्त नहीं किया, बहुत लंबा कर दिया. वह मैसेज मिलने के बाद मैंने ‘रूपमती कॉटेज’ का नाम ‘जोया देसाई कॉटेज’ कर दिया. उसने तो कह दिया कि मेरा इंतजार मत करना, मगर मुझे तो जिंदगी भर उसका इंतजार करना है.’ कह कर राहुल चुप हो गया.

कुछ देर बाद राहुल उठ कर खड़ा हो गया और बोला ‘चलता हूं, रात बहुत हो गयी है, आपके भी सोने का समय हो रहा है.’ राहुल के उठते ही शिरीष भी उठ कर खड़ा हो गया. लेकिन शिरीष के पास अब भी शब्द नहीं हैं राहुल से कहने को. राहुल पलटा और उस कच्चे रास्ते की तरफ बढ़ गया, जो कॉटेज से रेस्टोरेंट की तरफ गया है.

कुछ दूर जाकर अचानक राहुल रुक कर पलटा और शिरीष की तरफ देखता हुआ बोला ‘शिरीष, रूपमतियों के मर जाने के बाद लोग सवाल उठाते हैं कि उसके बाद बाज बहादुर भी क्यों नहीं मर जाते. लेकिन कोई यह नहीं बताता कि बाज बहादुर अपने सिर पर रखी जिम्मेदारियों का बोझ किसको सौंप कर मरे? बाज बहादुरों के नसीब में एक बार की मौत नहीं लिखी होती, उनको रोज मर-मर कर जीना होता है. रूपमतियां चली जाती हैं, बाज बहादुर पीछे छूट जाते हैं सजा काटने के लिए.’ कह कर राहुल वापस पलटा और रास्ते पर बढ़ गया.

राहुल की बात सुन कर शिरीष शरीर को ढीला छोड़ता हुआ फिर से कुर्सी पर बैठ गया. उसके सामने फोटो के लिए एक और फ्रेम बन रहा है, जिसमें आसमान पर चांद है, कुछ नीचे जहाज महल के गुम्बद हैं, एक कच्चा रास्ता है, जिसके किनारे पर एक लकड़ी के बोर्ड पर लिखा है ‘जोया देसाई कॉटेज’, उस बोर्ड के ठीक पास से कैमरे की तरफ पीठ किये थके कदमों से एक आदमी जा रहा है. पत्रिका के कवर पेज के लिए एकदम परफेक्ट शॉट.

शिरीष ने टेबल पर रखी डायरी उठायी और उसे खोल कर कुछ देर पहले लिखे गये वाक्य ‘पुरुष कभी प्रेम करना नहीं सीख पायेगा, पुरुष बस उपभोक्ता हो सकता है प्रेमी नहीं’ को पेन से काटने लगा.

पंकज सुबीर, संपर्क : पी.सी. लैब, शॉप नं. 2-8, सम्राट कॉम्प्लेक्स बेसमेंट, बस स्टैंड के सामने, सीहोर, मध्य प्रदेश-466001, मो. – 9977855399, ई-मेल : subeerin@gmail.com

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें