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Durga Maa: मां दुर्गा की सवारी: शेर का महत्व और पौराणिक कथा

Durga Maa: इस लेख में जानिए मां दुर्गा की सवारी शेर के पीछे की पौराणिक कथा और उसके महत्व के बारे में। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के स्वरूप और उनकी शक्तियों के प्रतीक के रूप में शेर का चयन क्यों किया गया है, यह समझें.

Durga Maa: नवरात्रि का समय आते ही मां दुर्गा की भक्ति और उनके नौ स्वरूपों की पूजा का उल्लास हर ओर दिखाई देने लगता है. इन नौ दिनों में मां के भक्त उनके विभिन्न रूपों की आराधना करते हैं, लेकिन एक बात जो हमेशा सामान्य रहती है, वह है मां दुर्गा की सवारी—सिंह, यानी शेर. यह सवाल हमेशा उठता है कि आखिर मां दुर्गा ने अपने लिए शेर को ही सवारी के रूप में क्यों चुना? मां के अन्य रूपों में अलग-अलग वाहन दिखाए जाते हैं, लेकिन शेर उनका प्रमुख और प्रिय वाहन है. इस लेख में हम जानेंगे कि इसके पीछे की पौराणिक कथा और इसका विशेष महत्व क्या है.

सिंह शक्ति और साहस का प्रतीक

मां दुर्गा की सवारी के रूप में शेर को दिखाया जाना केवल एक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह उनके अद्वितीय गुणों का भी प्रतीक है। शेर को जंगल का राजा माना जाता है, और वह अपनी असीम शक्ति, साहस, और आत्मविश्वास के लिए प्रसिद्ध है. शेर का सामना करने की हिम्मत बहुत कम प्राणी कर पाते हैं, और यही कारण है कि मां दुर्गा ने उसे अपनी सवारी के रूप में चुना. यह दर्शाता है कि मां दुर्गा की शक्ति और सामर्थ्य अद्वितीय है, और वह हर बुराई से निडर होकर सामना करने वाली हैं.

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मां दुर्गा का शेर चुनने की पौराणिक कथा

कथा के अनुसार, एक समय देवी पार्वती घोर तपस्या कर रही थीं. तपस्या के दौरान एक सिंह यानी शेर ने उन्हें देखा और सोचा कि जैसे ही देवी की तपस्या समाप्त होगी, वह उन्हें अपना आहार बना लेगा. लेकिन देवी पार्वती की तपस्या वर्षों तक चलती रही, और इतने समय तक शेर भी वहीं बैठा रहा—भूखा-प्यासा, बिना हिले-डुले. शेर ने लगातार अपनी भूख और प्यास को दबाकर देवी की तपस्या में विघ्न नहीं डाला और न ही तपस्या को छोड़कर वहां से गया. जब देवी पार्वती की तपस्या पूर्ण हुई, तो भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने देवी को गौरवर्ण यानी उज्जवल रंग का वरदान दिया. देवी का शरीर उज्जवल हो गया, और उन्हें ‘महागौरी’ के नाम से पुकारा जाने लगा. इसी समय, देवी पार्वती ने देखा कि शेर भी उनके साथ भूखा-प्यासा बैठा रहा और तपस्या के दौरान उनकी प्रतीक्षा करता रहा.

शेर बना मां दुर्गा का प्रिय वाहन

शेर की निष्ठा और तपस्या से प्रभावित होकर, मां दुर्गा ने उसे अपना वाहन बना लिया. यह शेर की सेवा, त्याग और तपस्या का प्रतीक बन गया. जिस प्रकार शेर ने देवी पार्वती की तपस्या के दौरान संयम रखा, उसी प्रकार वह आज भी देवी के साथ उनकी सवारी के रूप में रहता है. मां दुर्गा की शक्ति और साहस का प्रतीक शेर, उन्हें हर बुराई से मुकाबला करने की ताकत और धैर्य का प्रतीक बनाता है.

मां के अन्य रूप और वाहन

मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा नवरात्रि के दौरान की जाती है, और हर स्वरूप का अपना अलग वाहन होता है. जैसे कि मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, और मां कात्यायनी के अलग-अलग वाहन हैं, लेकिन जब बात मां दुर्गा के प्रमुख रूप की आती है, तो उनका वाहन हमेशा शेर ही होता है. यह इस बात का प्रतीक है कि चाहे कितने भी रूप क्यों न हों, मां दुर्गा का साहस और शक्ति हमेशा उनके साथ रहते हैं, जिसे शेर के रूप में दर्शाया गया है.

शेर का आध्यात्मिक महत्व

शेर न केवल शक्ति का प्रतीक है, बल्कि वह आत्म-नियंत्रण और संयम का भी प्रतीक है। जिस प्रकार शेर ने अपनी भूख को नियंत्रित किया और देवी के तप में खलल नहीं डाला, यह हमें जीवन में संयम और आत्म-नियंत्रण का महत्व सिखाता है. शेर के साथ मां दुर्गा का जुड़ाव यह दर्शाता है कि जीवन में शक्ति का सही उपयोग तभी संभव है जब हम अपने भीतर के क्रोध, लालच और अन्य नकारात्मक भावनाओं पर नियंत्रण रख सकें.

मां दुर्गा और शेर का अटूट संबंध

मां दुर्गा का शेर पर सवार होना यह दर्शाता है कि वह अपराजेय हैं और निडर होकर संसार की हर बुराई का सामना करने वाली देवी हैं. वह न केवल बाहरी दुश्मनों को हराने की क्षमता रखती हैं, बल्कि हमारे भीतर के डर, नकारात्मकता और असंतुलन को भी दूर करने में समर्थ हैं. शेर उनका प्रिय वाहन है क्योंकि वह शक्ति, साहस, और अपराजेयता का प्रतीक है.

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