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Spine Health : गलत पॉस्चर में गैजेट्स के लगातार इस्तेमाल से हो सकती हैं रीढ़ की हड्डी से जुड़ी ये समस्याएं

आज हम डिजिटल युग में जी रहे हैं. ऐसे में गैजेट्स से दूरी बनाना संभव नहीं है, लेकिन कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखकर स्पाइन से जुड़ी समस्याओं से बच सकते हैं.

Spine Health : आज गैजेट्स हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गये हैं, इनका इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है. लैपटॉप, स्मार्टफोन्स, टैबलेट्स, डेस्कटॉप जैसे गैजेट्स के साथ लोग घंटों बिताते हैं और इन्हें इस्तेमाल करते समय अपना पॉस्चर भी दुरूस्त नहीं रखते, ऐसे में स्पाइन से संबंधित समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं. एक अनुमान के अनुसार, हर पांचवें भारतीय को स्पाइन से संबंधित किसी-न-किसी प्रकार की समस्या है. पहले ये समस्याएं केवल उम्रदराज लोगों में ही होती थी, लेकिन पिछले एक दशक में युवाओं में इसके मामले 60 प्रतिशत तक बढ़े हैं. वर्क फ्रॉम होम कल्चर ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है. बच्चे भी अब घर के बाहर खेलने की जगह मोबाइल, टीवी या किसी गैजेट्स से चिपके रहते हैं.

स्पाइन से संबंधित समस्याएं

आज गैजेट्स का इस्तेमाल हर क्षेत्र में हो रहा है. पेशेवर काम, मीटिंग्स, पढ़ाई, मनोरंजन आदि सभी गेजेट्स पर ही हो रहे हैं. ब्रिटिश जनरल ऑफ स्‍पोर्ट्स मेडिसिन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, पिछले एक दशक में स्पाइन से संबंधित समस्याओं में 25-30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इसका सबसे प्रमुख कारण गैजेट्स का लगातार बढ़ता इस्तेमाल है.

सर्वाइकल पेन क्या होता है ?

आमतौर पर गर्दन में होने वाले दर्द को मेडिकल लैंग्वेज में सर्वाइकल पेन कहते हैं. गर्दन से होकर गुजरने वाले सर्वाइकल स्पाइन के जोड़ों और डिस्क में समस्या होने से सर्वाइकल पेन हो जाता है. कंप्यूटर पर लगातार कई घंटों तक काम करना, मोबाइल को सिर व कंधे के बीच में फंसा कर लंबी बातें करना आदि सर्वाइकल पेन के प्रमुख रिस्क फैक्टर बनकर उभर रहे हैं. यदि सही समय पर ध्यान न दिया जाये तो यह दर्द केवल गर्दन तक ही सीमित नहीं रहता है, बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल जाता है.

सर्वाइकल पेन का इलाज क्या है?

गैजेट्स पर काम करते समय अपना पॉस्चर अच्छा रखें. मोबाइल फोन के अत्यधिक इस्तेमाल से बचें, इन्हें अपने कान और कंधे के बीच में फंसाकर बात न करें. हड्डियों को स्वस्थ्य रखने के लिए कैल्शियम और विटामिन डी का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें.

लोअर बैक पेन क्या होता है?

लैपटॉप या डेस्‍कटॉप पर लगातार एक ही स्थिति में बैठ कर काम करना, एक के बाद एक कई वर्चुअल मीटिंग्स में शामिल होना, शारीरिक सक्रियता की कमी, नियमित दिनचर्या का पालन न करना कमरदर्द का कारण बन रहा है. कंप्यूटर पर झुक कर काम करने से स्‍लीप डिस्‍क की समस्‍या हो सकती है. इसके अलावा काफी देर तक लैपटॉप को गोद में रख कर काम करने से स्‍पाइन मुड़ जाती है. स्पाइन से संबंधित यही समस्याएं गंभीर कमरदर्द का कारण बन जाती हैं.

लोअर बैक पेन का इलाज क्या है?

कंप्यूटर के सामने बैठते समय अपनी पीठ यानी रीढ़ की हड्डी सीधी रखें. कोशिश करें कि लैपटॉप को हमेशा टेबुल या स्‍टैंड पर रखकर काम करें. झुककर काम करने की बजाय कुर्सी पर बैठें. सही ऊंचाई पर बैठें, इस बात का ध्‍यान रखें की आपके दोनों पंजे फर्श पर हों.

टेक नेक क्या होता है?

स्मार्टफोन और दूसरे गैजेट्स के अत्यधिक इस्तेमाल करते समय गर्दन को लगातार मोड़ने से गर्दन के पिछले भाग पर बहुत दबाव पड़ता है, इससे सर्वाइकल स्पाइन और मांसपेशियों कमजोर होने लगती हैं. इससे सिर को हिलाने-डुलाने में परेशानी होती है और अगर समय रहते इसे ठीक नहीं किया जाये, तो टेक नेक के कारण सर्वाइकल स्पाइन और गर्दन की मांसपेशियां स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती हैं.

टेक नेक का इलाज क्या है?

किसी भी गैजेट्स पर कभी भी झुककर काम न करें, हमेशा अपनी गर्दन सीधी रखें. नीचे देखने से बचें, और हमेशा गैजेट्स को अपने आंखों के स्तर पर रखें. अगर गैजेट्स पर लगातार काम करने से गर्दन को हिलाने-डुलाने में परेशानी हो रही हो तो गर्दन की एक्सरसाइज करें.

स्‍पॉन्डिलाइटिस क्या होता है?

स्पाइन और इसकी शॉक एब्जारबिंग इंटरवर्टिबरल डिस्क की विकृति को चिकित्सीय भाषा में स्‍पॉन्डिलाइटिस कहते हैं. आमतौर पर इसके शिकार बड़ी उम्र के वे लोग होते हैं, जिनकी बोन डेनसिटी कम हो जाती है. आजकल युवा भी खान-पान की गलत आदतों व गैजेट्स के बढ़ते चलन के कारण तेजी से स्‍पॉन्डिलाइटिस की चपेट में आ रहे हैं. पिछले एक दशक में युवा तेजी से इसके शिकार हुए हैं, एक दशक के पहले के आंकड़ों से तुलना करें तो यह संख्‍या तीन गुनी हुई है. यह समस्‍या उन युवाओं में अधिक देखी जा रही है, जो आइटी इंडस्‍ट्री या बीपीओ में काम करते हैं या जो लोग कंप्यूटर के सामने अधिक समय बिताते हैं.

सप्ताह में एक दिन गैजेट्स से रखें दूरी

डिजिटल डिटॉक्स यानी गैजेट्स का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर देना या बहुत ही कम करना. दी लैंसेट में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, जिस तरह से गैजेट्स पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है, उसे देखते हुए सप्ताह में एक बार डिजिटल डिटॉक्स करना बहुत जरूरी है.

इन बातों का भी रखें खास ध्यान

  • हमेशा बड़ी स्‍क्रीन का लैपटॉप इस्तेमाल करें, इससे पॉश्‍चर पर ज्‍यादा स्‍ट्रेस नहीं आता है.
  • अगर आपकी स्‍क्रीन छोटी है तो फॉन्‍ट साइज बड़ा रखें इससे आपकी आंखों पर दबाव नहीं पड़ेगा.
  • अपने ऑफिस के काम करने के बाद गैजेट्स के इस्तेमाल से बचें.
  • अगर वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं, तो पेशेवर काम का समय निर्धारित कर लें.
  • नियमित रूप से प्रतिदिन 30 मिनट योग और एक्सरसाइज करें.
  • पैदल चलने की कोशिश करें, पैदल चलना बोन मास को बढ़ाने में सहायक है.
  • चाय और कैफीन का सेवन कम करें, क्‍योंकि इनसे कैल्‍शियम का अवशोषण प्रभावित होता है.
  • हमेशा आरामदायक बिस्‍तर पर सोएं, न ही बिस्‍तर बहुत सख्‍त हो और न ही बहुत नर्म.
  • बच्चों को गैजेट्स देने की जगह उन्हें आउटडोर गतिविधियों के लिए प्रेरित करें.
  • घर में पूरा दिन टीवी न चलाएं.

बच्चों को बाहर खेलने को करें प्रेरित

आजकल गैजेट्स की वजह से बच्चों में भी कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं सामने आ रही हैं. इससे बच्चों को बचाने के लिए उनके साथ मिलकर मॉर्निंग वॉक करें, योग करें या दौड़ लगाएं. बच्चों को प्रतिदिन कम-से-कम एक घंटे के लिए पार्क या मैदान ले जाएं. वहां बच्चों को दौड़ने, फुटबॉल खेलने, बैडमिंटन खेलने आदि के लिए प्रेरित करें. आप खुद भी बच्चों के साथ खेलें. इसके अलावा, संभव हो तो बच्चे को उसकी पसंद के किसी खेल (क्रिकेट, फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन आदि) की कोचिंग दिलाएं. इससे वह फिजिकली ज्यादा एक्टिव होगा और मोबाइल से भी दूर रहेगा.

(दिल्ली के सीनियर आर्थोपेडिक सर्जन डॉ शेखर श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित)

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