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Theatre News : असगर वजाहत की चर्चित कृति ‘जिस लाहौर नई देख्या ओ जम्याइ नई’ का एक ही महीने में तीसरी बार मंचन होगा, जानिए कब और कहां

यदि आप नाटकों के शौकीन हैं, तो आपके लिए अवसर है असगर वजाहत लिखित प्रसिद्ध नाटक 'जिस लाहौर नई देख्या ओ जम्याइ नई' का मंचन देखने का. देश के बंटवारे की पृष्ठभूमि पर आधारित यह नाटक रंग प्रेमियों के लिए किसी खजाने से कम नहीं.

Theatre News : सुप्रसिद्ध साहित्यकार असगर वजाहत लिखित चर्चित और प्रासंगिक नाटक ‘जिस लाहौर नई देख्या ओ जम्याइ नई’ का एक ही महीने में तीसरा शो 15 सितंबर को सायं सात बजे खेला जायेगा. अस्मिता थियेटर द्वारा प्रस्तुत इस नाटक का मंचन मंडी हाउस के श्रीराम सेंटर आडिटोरियम में होगा. इस नाटक के निर्देशक हैं सुप्रसिद्ध रंगकर्मी अरविंद गौड़ और संगीत निर्देशक हैं डॉ संगीता गौड़.

यहां से बुक कर सकते हैं शो के टिकट

नाटक के टिकट BookMyShow पर उपलब्ध हैं. निम्न लिंक के जरिये आप नाटक के टिकट बुक कर सकते हैं.

https://in.bookmyshow.com/plays/jis-lahore-nai-dekhya-woh-jamyai-nai/ET00334302

ये कलाकार मंच पर जीवंत करेंगे कहानी को

असगर वजाहत की कृति को मंच पर उतारने का काम जिन अभिनेताओं द्वारा किया जायेगा उनमें काकोली गौड़ नागपाल, बजरंग बली सिंह, सावेरी श्री गौड़, प्रभाकर पांडे, करण खन्ना, सुप्रिया जाना, प्रिंस नागपाल, साहिल मुखी, करण खन्ना, रावल सिंह मंधाता, आशुतोष कुमार सिंह, अंकुर रुद्र शर्मा, विपिन चौहान, अमृता रांगध, मनोज के प्रसाद, सोमप्रकाश, संजीव सिसौदिया, अनुराज आर्य, आशुतोष यादव, अमित विश्वकर्मा, शशांक पांडे, सत्यार्थ प्रकाश पांडे, जीतेंद्र कुमार, रितेश ओझा, हेमलता यानचिन, दविंदर कौर, शनाया ठाकुर सिंह और टीम शामिल हैं.

बंटवारे की पृष्ठभूमि पर आधारित है कहानी

‘जिस लाहौर नई देख्या वो जम्याइ नई’ एक प्रसिद्ध Classic भारतीय नाटक है, जिसकी पृष्ठभूमि में 1947 में देश का हुआ बंटवारा है. बंटवारे के बाद भारत से पाकिस्तान चले गये एक मुस्लिम परिवार की कहानी है जिसे संरक्षक द्वारा रहने के लिए एक हवेली दी जाती है. सिकंदर मिर्जा और उसका परिवार पाकिस्तान पहुंचने पर जब अपने लिए आवंटित हवेली में रहने जाता है, तब वह और उसका परिवार यह देखकर हैरान हो जाता है कि उस हवेली की बूढ़ी हिंदू मकान मालकिन रतन की मां अभी भी वहां रह रही है. वह दूसरों की तरह बंटवारे के बाद भारत नहीं गयी. बंटवारे के बाद रतन की मां ने घृणा, हिंसा त्रासदी सब कुछ झेला, अपना सब कुछ खो दिया, पर नहीं खोया तो अपने प्यार और स्नेह देने की क्षमता.

यह कहानी जहां एक ओर रतन की मां और मिर्जा परिवार के रिश्ते को दर्शाती है, वहीं दूसरी ओर दिखाती है कि कैसे गुंडे अपने छुपे हुए उद्देश्य के लिए रतन की मां के विरुद्ध धर्म का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं. एक दिन रतन की मां की मृत्यु हो जाती है, और तब कहानी अपने चरम पर पहुंचती है, जहां लालच और कट्टरवाद बनाम विवेक और मनुष्य के प्रति प्यार के बीच टकराव देखने को मिलता है.

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