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Film Review: चेहरे पर मुस्कान लाने के साथ साथ दिल को भी छू जाती है Gullak 2

Gullak 2 Film Review:गुल्लक के पहले सीजन की तरह इस सीजन भी उत्तर भारत के मध्यम वर्गीय मिश्रा परिवार के इर्द गिर्द किस्सों का ताना बाना बुना गया है. इस बार भी कहानी में सबकुछ देखते सबकुछ समझते मिश्रा परिवार के गुल्लक ने उनकी हसरतों, सपनों,दर्द, रिश्तों की नोंकझोंक को बखूबी पेश किया है.

गुल्लक के पहले सीजन की तरह इस सीजन भी उत्तर भारत के मध्यम वर्गीय मिश्रा परिवार के इर्द गिर्द किस्सों का ताना बाना बुना गया है. इस बार भी कहानी में सबकुछ देखते सबकुछ समझते मिश्रा परिवार के गुल्लक ने उनकी हसरतों, सपनों,दर्द, रिश्तों की नोंकझोंक को बखूबी पेश किया है.

इस सीरीज में पांच एपिसोड्स हैं. इसमें मध्यमवर्गीय परिवार के लाजवाब किस्सों को बहुत रोचकता के साथ पेश किया गया है. संतोष मिश्रा (जमील)इस बार भी अपनी आर्थिक स्थिति से परेशान है इस बार वह सुविधा शुल्क यानी रिश्वत लेने की भी पूरी तैयारी में है लेकिन फिर रिश्वत के बजाय सीख मिल जाती है. मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है तो फूफा वाला मामला भी इस बार है. जो शादी के कार्ड में सपरिवार ना लिखा देख बात ईगो पर ले लेता है. किटी पार्टी औरतों के लिए क्या होती है. यह सीरीज अपने एक किस्से से बहुत खूबी से बयान करती है.

दो भाइयों को एक दूसरे से ढेरों शिकायत है लेकिन वक़्त पड़ने पर वह एक दूसरे का सपोर्ट सिस्टम बन जाते हैं. एक किस्सा ऐसा भी है. सीरीज में पुराने जीवन मूल्य हैं तो एचडी टीवी और एडवांस स्मार्टफोन की चाहत भी है. हर किस्से में रूठना मनाना,चीखना चिल्लाना भी लेकिन परिवार का प्यार और अपनापन भी है. कुछ भी बनावटी और अति नाटकीय नहीं है. यह बात इस सीरीज को उम्दा बना जाती है.

वेब सीरीज देखते हुए यह हमारे घर की और आसपास की कहानी लगती है. हर एपिसोड में किस्सों को कुछ इस तरह से बुना गया है. चेहरे पर वह मुस्कान लाने के साथ साथ कुछ पल दिल में भी उतर जाते हैं. इसके लिए लेखक दुर्गेश सिंह और निर्देशक पलास वासवानी की तारीफ करनी होगी.

वन लाइनर्स यादगार हैं. जिनमें सामाजिक और राजनीतिक दोनों परिपेक्ष्य में बातें कही गयी हैं. बिजली का बिल बढ़ने पर दिल्ली शिफ्ट होना हो. बेटे को पढ़ाने की ज़रूरत हो या फिर शादी पर रिश्तेदारों से मिलने वाले पैसों के हिसाब किताब वाले दृश्य के संवाद.

अभिनय की बात करें तो जमील खान संतोष मिश्रा के किरदार में पूरी तरह से रच बस गए हैं तो गीतांजलि कुलकर्णी ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है. वैभव राज ने इस सीरीज में कॉमेडी के साथ साथ इमोशन को भी बखूबी जिया है. हर्ष अपने सपाट चेहरे के जरिए अपने किरदार को और दिलचस्प बनाते हैं. भाइयों के बीच की नोंक झोंक और आत्मीयता वाले दृश्यों को हर्ष और वैभव की ऑन स्क्रीन केमिस्ट्री खास बनाती है. सुनीता राजवर ने भी कमाल का अभिनय किया है. वे जब भी स्क्रीन पर आयी हैं मुस्कुराहट बिखेर गयी हैं. बाकी के दूसरे किरदारों ने भी अपनी अपनी भूमिका को बखूबी जिया है.सीरीज की सिनेमेटोग्राफी उम्दा हैं. कुलमिलाकर यह सीरीज पिछले सीजन की तरह ही शानदार है.

Posted By: Shaurya Punj

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