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Film Review : फिल्‍म देखने से पहले जानें कैसी है ”द स्‍काई इज पिंक”

II उर्मिला कोरी II फ़िल्म: द स्काई इज पिंक निर्देशक: शोनाली बोस कलाकार: प्रियंका चोपड़ा जोनास ,फरहान अख्तर,जायरा वसीम,रोहित सराफ और अन्य रेटिंग: साढ़े तीन मौत की आगोश में भी ज़िन्दगी को पूरी जिंदादिली से जिया जा सकता है बल्कि जीना ही चाहिए. इसी फलसफे को फ़िल्म ‘द स्काई इज पिंक’ दर्शाती है. फ़िल्म 18 […]

II उर्मिला कोरी II

फ़िल्म: द स्काई इज पिंक

निर्देशक: शोनाली बोस

कलाकार: प्रियंका चोपड़ा जोनास ,फरहान अख्तर,जायरा वसीम,रोहित सराफ और अन्य

रेटिंग: साढ़े तीन

मौत की आगोश में भी ज़िन्दगी को पूरी जिंदादिली से जिया जा सकता है बल्कि जीना ही चाहिए. इसी फलसफे को फ़िल्म ‘द स्काई इज पिंक’ दर्शाती है. फ़िल्म 18 साल की कम उम्र में दुनिया को अलविदा कह गयी मोटिवेशनल स्पीकर और लेखिका आएशा और उनके परिवार की सच्ची कहानी का फिल्मी रूपांतरण है. कहानी की शुरुआत आएशा की आवाज़ से होती है जिसके अंदाज़ में मरना भी कूल लगता है. वह फ़िल्म में कहती भी है कि कोई सौ साल पहले मरेगा कोई सौ साल बाद फिर इतना मातम क्यों है.

इसी सोच को मानते हुए आएशा और उसका परिवार वे सारी ख्वाईशें पूरी करती हैं जो वो करना चाहते हैं. फ़िल्म की कहानी मूल रूप से आएशा से ज़्यादा उसके माता (प्रियंका चोपड़ा) पिता (फरहान अख्‍तर) की है जो दिल्ली में रहते हैं. उनका एक बेटा है.

एक बेटी का जन्म होता है आएशा (जायरा वसीम) जो दुर्भाग्य से एससीआईडी नामक बीमारी से ग्रषित है. इस बीमारी के बच्चों में प्रतिरोधक की क्षमता नहों होती है. छोटी सी छोटी बीमारी भी उनके लिए प्राण घातक साबित हो सकती है. इस बीमारी की वजह से वह अपनी एक बेटी को खो चुके होते हैं वो आएशा को नहीं खोना चाहते हैं.

अपनी बेटी को बचाने के लिए वह दिल्ली से लंदन शिफ्ट होते हैं. बॉन मेरो ट्रांसप्लांट करते हैं. यह सब इतना आसान नहीं है क्यों कि इसके लिए पैसे भी चाहिए. वे किस तरह से पैसों का इंतज़ाम करते हैं. महज कुछ महीने तक जी पाने वाली बच्ची को किस तरह से वो लगभग दो दशक की ज़िंदगी देते हैं. इसी पर फ़िल्म की कहानी है.

जिस तरह फ़िल्म की कहानी में इमोशन डाले गए हैं वो काबिले तारीफ हैं. फ़िल्म आपको ना सिर्फ रुलायेगी बल्कि हंसाएगी भी. फ़िल्म की शुरुआत में ही आपको मालूम हो जाता है कि आएशा नहीं रही है लेकिन इसके बावजूद फ़िल्म आपको शुरुआत से आकर्षित करती है. फ़िल्म बीमारी या मौत की नहीं बल्कि ज़िन्दगी के जश्न की कहानी है.

फ़िल्म में आएशा अपने माता पिता के संघर्ष के साथ साथ उनकी प्रेम कहानी से लेकर सेक्स लाइफ तक की भी चर्चा करती है।फ़िल्म का यही हल्का फुल्का ट्रीटमेंट गंभीर विषय वाली इस फ़िल्म को गंभीर नहीं रहने देता है. यही फ़िल्म की खासियत है. फ़िल्म ज़िन्दगी के साथ साथ रिश्तों का भी जश्न मनाती है. परिवार और उसका साथ बहुत ज़रूरी है यह भी समझाती है.

आएशा अपनी कहानी को नरेट करते हुए अपने पापा को पांडा, मां को मूस और भाई को जिराफ कहना प्यारा सा लगता है. फ़िल्म को बॉलीवुड के प्रचलित मसालों के साथ ना परोसना इसे और खास बनाता है. फ़िल्म की खामियों की बात करें तो फ़िल्म थोड़ी लंबी बन गयी है.20 से 25 मिनट तक कम की जा सकती तो यह और कमाल की बन जाती थी.

अभिनय पर आए तो ये प्रियंका के कैरियर की अब तक की सबसे बेहतरीन फ़िल्म कही जा सकती है. एक खुशमिजाज लड़की,मस्तमौला प्रेमिका,बेहतरीन जीवन संगिनी से लेकर समर्पित मां इन सभी पहलुओं को अपने किरदार के साथ बखूबी जिया है. इसके साथ ही इस बात की भी तारीफ करनी होगी कि उन्होंने दो युवाओं की मां बनना स्वीकार किया है. फरहान भी बेहतरीन रहे हैं. जायरा वसीम ने एक बार फिर उम्दा तरीके अभिनय को जिया है. रोहित सराफ ने भी सधा हुआ अभिनय किया है. बाकी की सपोर्टिंग कास्ट भी अच्छी रही है.

गीत संगीत की बात करें तो दिल ही तो है गाना अच्छा बन पड़ा है. फ़िल्म के चुस्त और चुटीले संवाद कहानी को और प्रभावी बना जाते हैं. फ़िल्म के दूसरे पहलू भी उम्दा हैं. कुलमिलाकर यह फ़िल्म ज़िन्दगी और रिश्तों का जश्न मनाती है जो सभी को देखनी और जीनी चाहिए.

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