II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म: लैला मजनूं
निर्देशक: साजिद अली
निर्माता: एकता कपूर
कलाकार; अविनाश तिवारी,तृप्ति डिमरी,परमीत सेठी,बेंजमीन गिलानी,सुमित कौल
रेटिंग: ढाई
कुछ प्रेम कहानियां कभी मिटती नहीं है. सदियों पुरानी प्यार की ऐसी ही दास्तान का नाम ‘लैला मजनूं’ है जो समाज और परिवार की वजह कभी एक नहीं हो पाए. इसी कहानी को इम्तियाज़ अली और उनके भाई साजिद अली मौजूदा दौर में लेकर आए हैं. फ़िल्म की कहानी का बैकड्रॉप कश्मीर है. लैला (तृप्ति डिमरी) ज़िन्दगी के हर पल को पूरी शिद्दत के साथ जीना चाहती है. वह लड़कों से फ़्लर्ट भी करती है.
वह शादी अपने अब्बा की मर्जी से करना चाहती है लेकिन उससे पहले लड़कों को टहलाने से उसे कोई परहेज नहीं है. उसकी मुलाकात कैश भट्ट(अविनाश तिवारी) से होती है. शहर का सबसे बड़ा रईसजादा और बिगड़ैल.
इस रिश्ते को शुरुआत में टाइमपास की तरह लेने वाली लैला का यह टाइमपास प्यार उसकी जिंदगी से भी बड़ा बन जाता है लेकिन लैला और कैश के प्यार के खिलाफ दुनिया और उससे जुड़ी दुनियादारी भी है जो उन्हें कभी एक नहीं होने देगी. दशकों पुराने इस प्रेमकहानी को साजिद अली ने मौजूदा दौर में जीवंत किया है. फ़िल्म की कहानी में एक संवाद है प्यार का प्रॉब्लम क्या है ना जब तक उसमें पागलपन न हो वह प्यार नहीं है.
प्यार के पागलपन को इस फ़िल्म की कहानी में जोड़ा गया है. लैला मजनूं की प्रेम कहानी का सबसे अहम पहलू त्रासदी है जो इस मॉडर्न लैला मजनूं में भी है लेकिन यहां समस्या सिर्फ परिवार और समाज न होकर यह भीतरी है. परिवार और समाज की पाबंदियां इस लैला मजनूं में फ़िल्म के मध्य तक खत्म हो जाती है लेकिन फिर भी ये एक नहीं हो पाते हैं या मजनूं से लैला कभी अलग हुई ही नहीं. जिस तरह से खुदा हर वक़्त हर जगह मौजूद है क्या उसी तरह कैश की खुदा लैला भी उसके साथ हमेशा है.
यह पहलू खास है लेकिन आम दर्शक इससे जुड़ाव कर पाएंगे यह कहना मुश्किल होगी.फ़िल्म का फर्स्ट हाफ एंगेजिंग और एंटरटेनिंग है. दूसरा भाग बहुत गंभीर हो गया है. फ़िल्म प्यार की कहानी है लेकिन फ़िल्म में प्रेमियों की केमिस्ट्री और जुड़ाव ज़्यादा परदे पर नज़र नहीं आता है. फ़िल्म का स्क्रीनप्ले कमज़ोर रह गया है. लैला मजनू की कहानी न होकर सेकंड हाफ में यह मजनूं की कहानी सी लगती है एक तरफा प्यार सी.
अभिनय की बात करें तो अविनाश तिवारी बेहतरीन रहे हैं. कैश भट्ट और मजनूं परदे पर उन्होंने जैसे दो किरदार जिए हैं. कैश में वह आत्मविश्वास से भरपूर एक युवा है तो मजनू के किरदार में उन्होंने प्यार के जुनून और पागलपन को बखूबी जिया है. वह परदे पर कैसे दिखते हैं अविनाश ने उसकी परवाह भी नहीं की जिसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए कम होगी. लैला के किरदार में तृप्ति डिमरी का काम सहज है.
सुनील कौल कश्मीरी के किरदार में बखूबी जमे हैं. बाकी के किरदार भी अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ पूरी तरह से न्याय करते हैं. फ़िल्म का संगीत कश्मीर की खूबसूरत वादियों की तरह ही दिल को छू जाता है ये दोनों फ़िल्म की सबसे बड़ी यूएसपी हैं. कुलमिलाकर कमज़ोर स्क्रीनप्ले इस अमर प्रेम कहानी के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं कर पाया है.