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फिल्म रिव्यू सिटीलाइट्स:मुंबई जितना लुभाती है उतना ही डराती भी है

फिल्म : सिटीलाइट्सकलाकार : राजकुमार राव, प्रतिलेखानिर्देशक : हंसल मेहतारेटिंग : 3 स्टार मुंबईःमुंबई शहर को लेकर लोगों के मन में जितनी महत्वकांक्षा होती है. उतना ही डर भी होता है. मुंबई जितना लुभाती है. उतना ही डराती भी है. चूंकि चकाचौंध के बीच कहीं एक अंधकार है और उस अंधकार में न जाने कितनी […]

फिल्म : सिटीलाइट्स
कलाकार : राजकुमार राव, प्रतिलेखा
निर्देशक : हंसल मेहता
रेटिंग : 3 स्टार

मुंबईःमुंबई शहर को लेकर लोगों के मन में जितनी महत्वकांक्षा होती है. उतना ही डर भी होता है. मुंबई जितना लुभाती है. उतना ही डराती भी है. चूंकि चकाचौंध के बीच कहीं एक अंधकार है और उस अंधकार में न जाने कितनी जिंदगियां तबाह हो रही हैं. इसी तबाही के मंजर को तलाशती है हंसल मेहता की फिल्म सिटीलाइट्स. फिल्म अपनी शुरुआत से ही इस बात को लेकर स्पष्ट है कि मुंबई शहर की किसी सकारात्मकता को दर्शकों तक नहीं पहुंचाना है. हां, यह बेहद जरूरी पहलू भी है. चूंकि मुंबई को लेकर कई फिल्में बनती रहती हैं और हर बार अलग कहानियां होती हैं.

लेकिन कहीं न कहीं अंत में जाकर सब ठीक हो जाता है. सिटीलाइट्स अंत को भला नहीं होने देती. यह आपको झकझोरती है. राजस्थान के एक छोटे से गांव के दीपक पहले फौज से निकाला जाता है फिर अपने गांव में व्यवसाय में वह नाकाम रहता है. फिर सिर्फ एक गांव वाले के नाम के भरोसे वह मुंबई आ जाता है. आने के साथ ही मुंबई के सच से सामना होता है. वह घर के नाम पर ठगा जाता है. दस हजार का चूना उसे लग चुका है और अब उसके पास कुछ भी नहीं. वह कोशिशें कर रहा. कामयाब नहीं हो रहा. इसी बीच मजबूरन उसकी पत् नी राखी को वह सब करना पड़ता है. जिसे करना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था. लेकिन हालात के हाथों मजबूर होती है राखी. दीपक को एक सेक्योरिटी कंपनी में नौकरी मिलती है और वही नयी गुत्थी शुरू होती है.

इस फिल्म के माध्यम से हंसल मेहता ने सेक्योरिटी सर्विस में काम कर रहे लोगों की जिंदगी को खूबसूरती से दर्शाया है. उनकी परेशानियों और किस तरह उन्हें जिल्लत की जिंदगी झेलनी पड़ती है और सिस्टम यह है कि कुछ गड़बड़ हुई तो जान भी खुद की ही जाती है. दीपक की तरह ही सेक्योरिटी सर्विस में काम रहा उसका बॉस भी इस जिंदगी से तंग आ चुका है. और वह भी पैसे कमाना चाहता है. मुंबई शहर महत्वकांक्षाओं के साथ किस तरह खुशियों की बली चढ़ाती है. फिल्म में इस कड़वे सच को दिखाया गया है. यह निर्देशक का अपना पहलू हो सकता है कि उन्हें फिल्म में सिर्फ डार्क पहलू ही दिखाने थे. लेकिन मुंबई शहर किस तरह हालातों से जूझते हुए लोगों को तेज तर्रार भी बना देती है. यह भी शहर का ही पहलू है.और दीपक अंत में कुछ ऐसे ही अवतार में अवतरित होगा. ऐसा अनुमान था. लेकिन अंत कुछ और होता है.

हां , यह सच है कि बड़े शहर का यह सच है. और इसे स्वीकारना होगा. लेकिन छोटे गांव से मन में सपने बुन कर आनेवाले लोग कहीं न कहीं इस फिल्म को देख कर थोड़े नर्वस जरूर हो जायेंगे. यह फिल्म यह भी सीख देती है कि आप जब किसी बड़े शहर में जा रहे हैं तो किसी के भरोसे न जायें. खुद अपनी तैयारी से जायें और दिमाग से काम लें. तैयारी के बगैर जाने का हश्र क्या होता है. यह कहानी में संजीदगी से दिखाया गया है.

राजकुमार राव को फिल्म शाहिद के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. राजकुमार इस फिल्म की जान हैं और उन्होंने साबित कर दिया है कि आनेवाले समय में बॉलीवुड में वे चमकते सितारे के रूप में उभरेंगे. नवोदित अभिनेत्री प्रतिलेखा पहली बार अभिनय कर रही हैं. लेकिन उनके अभिनय में कहीं कोई चूक नजर नहीं आयी. वे बेहद संजीदा अभिनय कर रहीं. और उन्हें आनेवाले समय में बेहतरीन फिल्में मिलनी ही चाहिए. हिंदी सिनेमा को ऐसे प्रतिभाशाली कलाकारों की जरूरत है.

हंसल मेहता ने अपनी इन दो फिल्मों से साबित कर दिया है कि वे बॉलीवुड के उन फिल्मकारों में अपनी पहचान बना चुके हैं, जो वाकई केवल ग्लॉसी दुनिया को नहीं देखना चाहता. वह जिंदगी के डार्क पहलुओं को न सिर्फ देख रहा. उसे फिल्मों के माध्यम से लोगों तक पहुंचा भी रहा.

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