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Rupali Dixit Exclusive Interview: रूपाली दीक्षित को तीन मिनट में कैसे मिला टिकट? सुनिए उन्हीं की जुबानी

रूपाली दीक्षित को सपा ने आगरा की फतेहाबाद सीट से अपना प्रत्याशी बनाया है. रूपाली ने विदेश में पढ़ाई की हुई है. साल 2016 में उन्होंने राजनीति में कदम रखा. प्रभात खबर उत्तर प्रदेश ने रूपाली दीक्षित से खास बातचीत की है. पेश हैं उसके प्रमुख अंश...

UP Election 2022: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए समाजवादी पार्टी ने आगरा जिले की फतेहाबाद सीट से रूपाली दीक्षित को टिकट दिया है. रूपाली दीक्षित ने इंग्लैंड से एमबीए किया है और कई नामी कंपनियों में नौकरी भी की है, जिसके बाद 2016 में उन्होंने राजनीति में कदम रखा. रूपाली के सपा प्रत्याशी बन कर विधानसभा चुनाव में खड़े होने से इस सीट पर मुकाबला कड़ा हो गया है. खास बात यह रही कि उन्होंने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से तीन मिनट बातचीत की और इस तीन मिनट में ही उन्हें टिकट मिल गया. प्रभात खबर उत्तर प्रदेश ने रूपाली दीक्षित से चुनाव को लेकर खास बातचीत की है. यहां देखें बातचीत के प्रमुख अंश…

किस तरह से आप समाज में जा रही हैं? युवाओं से किस तरह से वोट मांग रही हैं?

देखिए, योजनाएं हर सरकार देती है. लेकिन क्या वह योजनाएं लोगों को मिल रही है, यह विधायक का काम होता है. ऐसा नहीं है कि सरकार कोशिश नहीं करती, लेकिन आपका विधायक वह माध्यम होता है जो छोटे समाज या जो निचला समाज है या जो आपका वोटर है, उन सबसे कनेक्ट होता है लखनऊ से यानी आपकी सरकार से, लेकिन कितनी ऐसी चीजें हैं, कितनी ऐसी सुविधाएं हैं, जो उन तक पहुंच रही है. मैं वोट मांग रही हूं और वहां पर बैनर्स लगे हैं कि वोट नहीं क्यों कि यहां पर कोई वोट नहीं मिलेगा क्यों कि रोड नहीं है हमारे यहां. आप यह समझ लीजिए कि 70 सालों में रोड ही नहीं बनी है. आपको इतना पैसा आता है. सत्ता पक्ष के भी ऐसे विधायक हैं, जो यहां रहे हैं. जो कहीं न कहीं सत्ता के सपोर्टिव में हैं, कहीं न कहीं बहुत ऐसे चैंजेस करा सकते थे. अगर बात करें न.. तो हम जीरो पर चल रहे हैं. अगर मैं कल विधायक बनती हूं तो मुझे जीरो से शुरुआत करनी होगी. मुझे बना बनाया कुछ नहीं मिल रहा है.

आपके लिए लग रहा है कि फतेहाबाद में संघर्ष ज्यादा है क्योंकि लोग पहले से परेशान हैं. जीरो काम हुआ है यहां पर. विकास है ही नहीं.. आपको क्या लगता है कि आप किस तरह काम कराएंगी?

किसी व्यक्ति का विश्वास आप कितनी बार तोड़ सकते हैं वोट मांग मांगकर. वह भी वह विश्वास, जो हर पांच साल बाद आता है. आप समझ सकते हैं कि इस विधानसभा का विश्वास कितनी बार टूटा है. उस विश्वास को पाना कितना मुश्किल होता है. विश्वास तोड़ने में एक सेकेंड लगता है. मैं एक पढ़ी लिखी महिला हूं. जातिवाद के समीकरण को सीधे आपको इस बेस पर तोड़ना है कि आपको जातिवाद की बात न करके पूछना यह है कि काम क्या होना है. जातिवाद की बात तब आती है जब हम यह पूछे आपके समाज का कितना वोट है? आपकी जाति का कितना वोट है? हम यह बात पूछ ही नहीं रहे हैं. हमें तो यह बताइए काम क्या होना है. हमें नहीं जानना है कि आप कौन सी जाति के हैं. आप हमें यह बताइए कि आपके किस गांव में क्या काम होना है. अगर उस हिसाब से देखा जाए तो मेरी विधानसभा में लगभग 700 गांव हैं. मुझे तो आज के समय में 700 करोड़ रुपये चाहिए ताकि उनको संतुष्ट कर सकूं. लेकिन आप समझ लीजिए कितना मुश्किल होगा लोगों को एक-एक चीज करके समझाना, वो भी 12 दिन के अंदर. जो मेरे सामने प्रत्याशी हैं बीजेपी के, वह छोटेलाल वर्मा हैं. वह यहां 15 साल से विधायक रहे हैं. यह वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने जातिवाद को लेकर अभी तीन से चार महीने पहले एक बयान दिया था. अब आप समझ लीजिए, जो व्यक्ति अभी भी जातिवाद की बात कर रहा है और आपकी तुलना जातिवाद से ही तुलना करना चाह रहा है तो वह विकास क्या करेगा.

बीजेपी क्या दिखानी चाहती हैं ऐसे प्रत्याशियों को टिकट देकर, जो क्षेत्र के ही लोगों के बारे में अनर्गल बातें कर रहा है?

बीजेपी प्रत्याशी नहीं देखती है. बीजेपी जाति देखती है. जाति समीकरण देखती है. बीजेपी प्रत्याशी देख ही नहीं पाती है.

जाति समीकरण की बात करें तो बीजेपी के अलावा कई पार्टियां ऐसी हैं, जो कही न कहीं जाति समीकरण देखती हैं.

ठीक है. मान लेते हैं, लेकिन छोटेलाल वर्मा ही क्यों. जानते हुए भी कि जिसने सीधी टिप्पणी की. उनको छोड़कर उन्हीं के समाज के किसी और व्यक्ति को टिकट दिया जा सकता था

क्या लगता है आपको, बीजेपी के लिए छोटेलाल वर्मा को दोबारा मैदान में उतारना भूल हो सकती है?

भूल. वो तो उनको 10 तारीख के बाद ही पता चल जाएगा कि भूल थी कि क्या था?

आपने विदेश से पढ़ाई की है, अब आप क्षेत्र में, गांव में, छोटी-छोटी गलियों में घूम रही हैं. जनता कितना समर्थन कर रही है आपका?

देखिए, मैं अपने पिता जी के साथ कभी नहीं रही, मैंने उनका चुनाव भी नहीं देखा. मैं जानती भी नहीं थी कि मेरे पिता जी चुनाव लड़ते हैं. मुझे यह बात तब पता चली, जब मैं 2016 में वापस आयी. जहां तक मेरी बात है, मैंने जब लोगों को बताया कि मैं पंडित अशोक दीक्षित की बिटिया हूं तो जिस तरह से अखिलेश यादव ने तीन मिनट में टिकट दिया, उसी तरीके से तीन मिनट में मुझे लोगों का प्यार भी मिलने लगा.

तीन मिनट की चर्चा बहुत हो रही है. ऐसा क्या किया आपने कि जो अखिलेश यादव ने तीन मिनट में टिकट दे दिया?

युवा, एजुकेशन, महिला.. बहुत अच्छा कॉम्बिनेशन है. आप राजनीति कर रहे हैं न,.. जब इन तीनों की बात करते हैं तो जातिवाद अलग हो जाता है. सिर्फ आता है विकास… तीन प्वाइंटस… तीन मिनट

क्या लगता है आपको? यूथ युवा एजुकेशन और विकास की बातें करके आप इस विधानसभा पर काबिज होंगी

मेरी कोशिश पूरी है. मैं यूथ को अंडरस्टूड कर रही हूं. एक बात समझ लीजिए. पहले दो हमारी लड़ाई होती थी, वह कहीं ना कहीं जाति पर अटकी हुई थी. अब आप समझ लीजिए कि आधे लोग तो गांव में खेतों में पशुओं से अपनी फसल की रखवाली कर रहे हैं. जो आधे घर के बच्चे हैं, वह नौकरी में अपना जीवन निकाल रहे हैं. मैं चाहती हूं कि जो जीवन वह जी रहे हैं, मैं उन्हे कनेक्ट करने की कोशिश कर रही हूं कि अगर हम संगठित नहीं हुए तो अंधकार सुनिश्चित है.

क्षेत्र में तमाम समस्याएं हैं. उनको आप कैसे पूरा करेंगी?

देखिए बड़ी बात यह है कि मुझे ग्रामसभा लेवल पर टीम बनानी पड़ेगी. सिर्फ एक आदमी को जिम्मेदारी नहीं देना है. क्योंकि कहीं ना कहीं दिक्कत और होती है. तो मेरा मन यह है कि जैसे 1 ग्राम सभा में 10 गांव है तो 10 लड़के 1 ग्राम सभा के इंचार्ज होंगे. वहीं उनके बेस पर मीटिंग हुआ करेगी. मेरी कोशिश हुआ करेगी कि मेरे यहां दो ब्लॉक हैं. शमशाबाद और फतेहाबाद तो हर 15 दिन में उसको रखेंगे. महिलाओं को मीटिंग में शामिल होना जरूरी है. क्योंकि महिलाएं अपनी बात नहीं बता पाती हैं और कहीं ना कहीं आदमी बस अपनी बातें कर महिलाओं को पीछे छोड़ देता है.

प्रियंका गांधी ने ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का नारा दिया है. क्या लगता है. आपकी उनसे क्या टक्कर है?

बात टक्कर की नहीं है. वह लोगो अच्छा है. वह मोटो अच्छा है, लेकिन जमीनी लेवल पर वह कितना है. लोगो पर कितना काम होता है. लड़की हू लड़ सकती हूं. मैं भी एक लड़की हूं. लड़ रही हूं. बात यह है कि क्या मैं इतनी मजबूत हूं. क्या बाकी लड़कियों को वह मजबूती मिल रही है. अगर आप खुद मजबूत नहीं है तो आप लोगों से कैसे लड़ेंगे.

समाजवादी पार्टी पर हमेशा आरोप लगते रहे हैं कि यह गुंडों की, बदमाशों की पार्टी है. अब तो विपक्षी पार्टियां यह भी कह देती हैं कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष आतंकवादियों का समर्थन करते हैं. इन सभी को कैसे खत्म करेंगी?

वह छवि जब मुझे टिकट मिली, तभी से खत्म होनी शुरू हो गई थी. आप भी इस बात को समझने की कोशिश कीजिए. फिर से आपको याद दिला दूं. जब छोटे लाल वर्मा लगभग उनकी उम्र 70 साल है, आज तक जातिवाद की लड़ाई लड़ रहे हैं, उनकी चेंजिंग नहीं. इसी तरीके से जब समाजवादी पार्टी की बात हम करते हैं तो इस बार उन्होंने हर एक कैंडिडेट्स का इंटरव्यू लिया है. हां, कुछ जगह ऐसा है, जहां जाति समीकरण हमें करना पड़ता है. हर व्यक्ति कहीं ना कहीं चाहता है कि उसे अपना समाज का नेता मिले. लेकिन अगर आप देखें तो इस चीज को खुद समझ लीजिए कि अगर हमें जाति समीकरण में भी टिकट दी गई है तो आप यह देखे जो बेस्ट है, जो सबसे बढ़िया व्यक्ति रहेगा उस जाति का, उसकी फिटिंग की जाए वह समाजवादी पार्टी कर रही है. इसी की जरूरत है.

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