MP Assembly Election 2023: मध्यप्रदेश में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले सभी पार्टियों ने कमर कस ली है. भाजपा और कांग्रेस अपनी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. आपको बता दें कि विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस के 15 साल का वनवास खत्म हुआ था और देश की सबसे पुरानी पार्टी मध्य प्रदेश के सत्ता पर काबिज हुई थी, हालांकि यह बाद में गिर गयी.
पिछले चुनाव में कांग्रेस के कमलनाथ (Kamal Nath) और ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने मिलकर मध्य प्रदेश में कांग्रेस को जीत का स्वाद चखाया था. दोनों की जोड़ी का जादू ऐसा चला था कि कांग्रेस की सीटें 58 से 114 हो गयी थी जबकि भाजपा 165 से लुढ़ककर 109 पर पहुंच गयी थी. हालांकि पिछले चुनाव में खास बात ये रही कि भाजपा का वोट प्रतिशत 41% रहा जबकि कांग्रेस का वोट 40.9% रिकॉर्ड किया गया था. पिछले चुनाव में बसपा के खाते में दो जबकि अन्य के खाते में पांच सीट गयी थी.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बिना सरकार बनाना कितना मुश्किल
मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद के बिना सरकार बनाना असंभव बताया जाता है. आइए आपको बताते हैं आखिर क्यों ? मध्य प्रदेश की सियासत (MP Politics) इस बात की गवाह है. जब सिंधिया ने हाथ फैला कर कांग्रेस (Congress) के लिए वोट मांगे, तो जनता ने उनका पूरा साथ दिया. इसके बाद सूबे में कांग्रेस की सरकार बनी. वहीं जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से मुंह मोड़ा तो फिर भाजपा सत्ता पर कब्जा करने में कामयाब रही. इस बार फिर सत्ता की चाबी सिंधिया के हाथ में नजर आ रही है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया पकड़ लेते हैं प्रदेश की नब्ज
दो दशक तक कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की हर रणनीति को अच्छी तरह से समझते हैं. उनका जनता के बीच अच्छा प्रभाव भी नजर आता है. यही नहीं सिंधिया के खुद के समर्थक विधायकों की कमी नहीं है. यदि आपको याद हो तो उनके एक इशारे पर सूबे के एक दर्जन से ज्यादा विधायक अपनी कुर्सी छोड़ चुके हैं. ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताकत को कम आंकना गलत साबित हो सकता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की हर उस रणनीति का हिस्सा बन चुके हैं जिसके जरिए कांग्रेस ने सत्ता पाने में सफलता पायी.