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‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ लिखने वाले एड गुरु ने खामोशी से कहा अलविदा, सिखा गये विज्ञापन में भाषा को बरतने का सबक

जिनके बनाये विज्ञापनों को टेलीविजन पर देखते हुए एक पूरी पीढ़ी बढ़ी हुई, वो लीजेंडरी एड गुरु पीयूष पांडे नहीं रहे. लेकिन विज्ञापन की दुनिया में उनका योगदान युवाओं के लिए हमेशा भाषा को विज्ञापन में कैसे बरता जाता है, इस सबक के साथ मौजूद रहेगा...

भारत में विज्ञापनों का चलन 20वीं सदी में प्रिंट मीडिया के विस्तार के साथ शुरू हुआ. इसी दौर में पहली भारतीय एड एजेंसी स्थापित हुई, इसके बाद कई और एड एजेंसियां शुरू हुईं. आकाशवाणी एवं दूरदर्शन की शुरुआत और इसके बाद रेडियो व टेलीविजन चैनलों के बढ़ते दायरे ने विज्ञापनों को एक खास स्पेस और माध्यम मुहैया कराया. प्रिंट में प्रकाशित विज्ञापनों के साथ दृश्य और श्रृव्य माध्यमों के लिए विज्ञापन बनाये जाने लगे और इस तरह विज्ञापनों की एक अलग दुनिया बनी और इस दुनिया से आम बोल चाल की हिंदी भाषा में बेहद अनूठे तरीके से लोगों को जोड़ने में प्रसिद्ध एड गुरु पीयूष पांडे ने अहम भूमिका निभायी.

विज्ञापन की दुनिया को दिये जिंदगी के चालीस साल

अक्तूबर की 24 तारीख की सुबह 70 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले एड मेकर पीयूष पांडे ने अपनी जिंदगी के 40 से अधिक साल एड इंडस्ट्री को दिये. नब्बे के दशक में टीवी में आये उनके कभी न भुलाये जा सकने वाले विज्ञापनों को देखते हुए एक पूरी पीढ़ी बड़ी हुई. इनमें कैडबरी से लेकर फेविकोल और लूना मोपेड तक बेहद लोकप्रिय विज्ञापनों की एक लंबी फेहरिस्त शामिल हैं. वर्ष 1982 में एड मेकिंग कंपनी ओगिल्वी में ग्राहक सेवा कार्याकारी के तौर पर विज्ञापन की दुनिया कदम रखने वाले पांडे ने करियर की शुरुआत एक चाय कंपनी बतौर टी टेस्टर की थी. दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद उन्होंने यह जॉब शुरू की थी, जहां उनके दोस्त मशहूर क्रिकेटर अरुण लाल पहले से काम कर रहे थे. उन्होंने ही एक बार पीयूष से कहा कि तुम दिन भर जैसी लाइनें बोलते हो, तुम्हे विज्ञापन की दुनिया में हाथ आजमाना चाहिए. इसके बाद पीयूष पांडे ने ओगिल्वी में ग्राहक सेवा कार्यकारी के तौर पर जॉब शुरू की और मुख्य रचनात्मक अधिकारी और कार्यकारी अध्यक्ष बने.

देश के लिए लिखा ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’

वर्ष 1988 में 15 अगस्त को लाल किले पर ध्वजारोहण और प्रधानमंत्री के भाषण के बाद दूरदर्शन पर भारत की अनेकता में एकता की संस्कृति और विचार को प्रदर्शति करने वाला एक गीत प्रसारित किया गया. यह गीत था- ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा.’ दूरदर्शन और संचार मंत्रालय के सहयोग से लोक सेवा संचार परिषद की ओर से निर्मित इस गीत के लेखक पीयूष पांडे थे. यह गाना कई वर्षों तक दूरदर्शन में दिखाया जाता रहा और आज भी लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है. यह गीत हिंदी समेत 14 भारतीय भाषाओं में तैयार किया गया था.

भाषा पर पकड़ और जन्मजात रचनात्मकता ने बढ़ाया आगे

राजस्थान के जयपुर में पीयूष पांडे का जन्म एक रचानात्मक परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता दोनों हिंदी साहित्य के शिक्षक थे. घर में साहित्यिक माहौल था और अच्छी हिंदी बोली जाती थी. बचपन में बोली गयी यही अच्छी हिंदी बाद में उनके विज्ञापनों की प्रभावी भाषा बनी. पीयूष पांडे जितना प्रभावी लिखते थे, उनकी आवाज भी उतनी ही असरदार थी. मशहूर गायिका इला अरुण, जो पीयूष की बहन भी हैं, जयपुर में विविध भारती के लिए रेडियो जिंगल्स बनाया करती थीं और पीयूष उनमें अपनी आवाज दिया करते थे, जिसके एवज में उन्हें 50 रुपये मिलते थे.

बदली विज्ञापनों की भाषा और परिभाषा

भारतीय विज्ञापनों में जब पश्चिमी दुनिया की नकल हावी थी, उस दौर में पीयूष ने आम जन के बीच बोली जाने वाली हिंदी, छोटे शहरों के जीवन, हास्य बोध को विज्ञापनों में पेश किया. उनके कई विज्ञापन एक तरह से राष्ट्रीय मुहावरा बन गये, इनमें कैडबरी का ‘कुछ खास है’, फेविकोल का ‘मजबूत जोड़’, एशियन पेंट का ‘हर घर कुछ कहता’ है, पोलियो जागरूकता अभियान का ‘दो बूंद जिंदगी के’ के जैसे विज्ञापन शामिल हैं.

फिल्म लेखन और अभिनय में भी रहा दखल

वर्ष 2013 में 80 के दशक के अंत और 90 के दशक के शुरुआती वर्षों के श्रीलंकाई गृहयुद्ध और उसमें भारतीय हस्तक्षेप एवं भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के समय पर आधारित एक फिल्म आई थी मद्रास कैफे’. शूजित सरकार निर्देशित और जॉन अब्राहम अभिनीत इस एक्शन फिल्म में पीयूष पांडे ने भारत सरकार के कैबिनेट सचिव का किरदार निभाया था. इसके अलावा उन्होंने अपने भाई प्रसून पांडे के साथ मिलकर ‘भोपाल एक्सप्रेस’ की पटकथा भी लिखी थी. महेश मथाई निर्देशित यह फिल्म वर्ष 1984 में भारत के भोपाल में हुई गैस त्रासदी पर आधारित है और इसमें नसीरुद्दीन शाह, के के मेनन, नेत्रा रघुरामन, जीनत अमान और विजय राज ने अहम भूमिकाएं निभायी हैं.

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Preeti Singh Parihar
Preeti Singh Parihar
Senior Copywriter, 15 years experience in journalism. Have a good experience in Hindi Literature, Education, Travel & Lifestyle...

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