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चक्रवाती तूफान अम्फान से जूट की फसल बर्बाद, करीब 300 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान

चक्रवाती तूफान अम्फन (Cyclone Amphan) ने उत्तर 24 परगना, हुगली, नादिया, मुर्शिदाबाद, पूर्वी मेदिनीपुर और पश्चिम के हावड़ा जिलों के कुछ हिस्सों में पटसन की फसल (Jute crop) को तबाह कर दिया है.

कोलकाता : चक्रवाती तूफान अम्फन (Cyclone Amphan) ने उत्तर 24 परगना, हुगली, नादिया, मुर्शिदाबाद, पूर्वी मेदिनीपुर और पश्चिम के हावड़ा जिलों के कुछ हिस्सों में पटसन की फसल (Jute crop) को तबाह कर दिया है. पश्चिम बंगाल में लगभग 5 लाख हेक्टर में पटसन की खेती होती है. तूफान के दौरान 155 किमी प्रति घंटे रफ्तार से चली तूफानी हवा और 200 से 230 मिमी की बारिश ने 15 से 20 फीसदी फसल का नुकसान हुआ है. इनकी अनुमानित लागत लगभग 300 करोड़ रुपये है. चक्रवात ने पटसन की फसल को बुरी तरह प्रभावित किया, विशेषकर जो 0.5 से 1.5 मीटर की ऊंचाई तक के थे.

केंद्रीय पटशन एवं समवर्गीय रेशा अनुसंधान संस्थान (क्रिजेफ)के निदेशक डॉ गौरांग कर ने बताया कि चक्रवात तूफान के बाद पटसन कि उचित देखभाल न की जाये, तो जमीन पर गिरे पौधों और जलभराव की स्थिति के कारण रेशा उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. उन्होंने पटसन कृषकों को भरोसा देते हुए कहा कि संकट के इस घड़ी में संस्थान सभी प्रकार की तकनीकी सहायता के लिए किसानों के साथ खड़ा है.

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डाॅ कर ने बताया कि इस प्रतिकूल स्थिति में उत्पादन में होनेवाले नुकसान को कम करने के लिए किसानों को कुछ सुधारात्मक उपाय अपनाना चाहिए जैसे- खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था कर जमे हुए पानी को बाहर निकालना, जल निकासी नाली को नीचे की तरफ (ढलान) की ओर बनाना तथा 10 मीटर के अंतराल पर 20 सेंमी चौड़ी और 20 सेंमी गहरी नाली बनाना.

उन्होंने बताया कि फसल की सही बढ़वार के लिए, पौधों को सीधा करने के लिए, एक मीटर से अधिक ऊंचाई वाली पौधों को एक साथ (8-10 पौधों) बांधा जाना चाहिए, ताकि सीधी लंबाई में उनकी सही बढ़वार हो. चक्रवात की अवधि के बाद उच्च आर्द्रता और तापमान के कारण कीट और रोग की समस्या बढ़ सकती है.

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फसल सुरक्षा विभागाध्यक्ष डॉ एस सत्पथी ने किसानों को कीट और रोग की घटनाओं को रोकने के लिए सतर्क रहने को कहा है. यदि पटसन फसल में तना सड़न रोग दिखाई देता है, तो किसानों को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी प्रति 5 ग्राम / लीटर का छिड़काव करना चाहिए.

संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एके सिंह ने बताया कि ये संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के जलवायु प्रतिरोधक क्षमता पूर्ण कृषि कार्यक्रम के तहत ऐसे प्रतिकूल जलवायु प्रभावों के कारण उपज और फसल के नुकसान की भरपाई के लिए अनुकूलन विकल्पों की दिशा में काम कर रहा है.

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साथ ही ये संस्थान बुवाई के समय में बदलाव, फसल किस्मों की उन्नतिकरण,ब्लू वाटर फूट प्रिंट को कम करके जल उत्पादकता में वृद्धि, उर्वरक उपयोग दक्षता और अतिरिक्त इनपुट्स देकर फसलों को नुकसान से बचाने कि दिशा में कार्यरत है. पूर्वी भारत में खासकर, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, असम में पटसन एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है और लगभग 50 लाख लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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