27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

नए साल 2022 में भी महंगाई से राहत मिलने की उम्मीद नहीं, कोविड के पूर्व स्तर पर आ सकती है अर्थव्यवस्था

कोरोना महामारी के कारण महीनों तक रहे लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों में ठहराव रहा. इसका बड़ा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि अक्तूबर, 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था में निरंतर गिरावट (टेक्निकल रिसेशन) जारी थी.

नई दिल्ली : नया साल 2022 दस्तक देने के लिए दहलीज पर खड़ा है और भारत में कोरोना महामारी की तीसरी लहर का भी ऐलान कर दिया गया है. पहली लहर के देशव्यापी लॉकडाउन और दूसरी लहर की पाबंदियों की मार से देश अभी पूरी तरह से उबरा नहीं है. फिर भी, देश की आबादी और सरकार को नए साल से ढेर सारी उम्मीदें हैं. लोग-बाग दो सालों के दौरान बीते भयावह स्थिति से निजात पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, मगर तीसरी लहर और कोरोना के नए वेरिएंट के बढ़ते प्रकोप की वजह से फिलहाल भारत के लोगों और आर्थिक विशेषज्ञों को महंगाई और बेरोजगारी से राहत मिलती नजर नहीं आ रही है.

देश के आर्थिक विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि वित्त वर्ष 2021-22 के अंत भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) कोविड-पूर्व स्तर पर वापस लौट आएगा और सामान्य आर्थिक गतिविधियां पटरी पर लौट आएंगी. इससे अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव आने की भी उम्मीदें हैं. हालांकि, उपभोक्ता मांग में रुखापन, महंगाई, रोजगार की चिंता और असंगठित क्षेत्र की महामारी जनित समस्याओं का स्थायी राहत कहीं दिखाई नहीं दे रही है.

लॉकडाउन ने भारत की अर्थव्यवस्था पर डाला गहरा असर

कोरोना महामारी के कारण महीनों तक रहे लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों में ठहराव रहा. इसका बड़ा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि अक्तूबर, 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था में निरंतर गिरावट (टेक्निकल रिसेशन) जारी थी. जीडीपी में वृद्धि दर न्यूनतम स्तर पर आ गई. हालांकि, उम्मीद की जा रही थी कि 2021 के शुरू होते ही भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार दर्ज होने लगेगा और धीरे-धीरे सामान्य गतिविधियां बहाल हो जाएंगी. माना जा रहा था कि कोविड-19 संक्रमण में गिरावट का रुख आ जाएगा और धीरे-धीरे इसका प्रभाव कम होता चला जाएगा, लेकिन अप्रैल-मई महीने में कोरोना की दूसरी लहर ने ऐसा कहर बरपाया कि सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया. हालांकि, वैक्सीनेशन के चलते संक्रमण में कमी आई. अनुमान है कि वित्त वर्ष 2021-22 के अंत तक भारत का जीडीपी कोविड-पूर्व के स्तर पर आ जाएगा और अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर आने लगेगी. कोरोना की दूसरी लहर में जो तबाही मची है, उसे देखते हुए यह अनुमान राहत देने वाला है.

अर्थव्यवस्था में हो रहा तेजी से सुधार

कोरोना की दूसरी लहर से मची उथल-पुथल के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हो रहा है, लेकिन चिंता की बात यह है कि यह सुधार असमान तरीके से हो रहा है. इसका अर्थ यह कि आर्थिक क्षेत्र के श्रेणियों में एक साथ सुधार नहीं हो रहा है. अर्थव्यवस्था में सुधार के इस पैटर्न को ‘के-शेप्ड रिकवरी’ कहा जाता है. इस पैटर्न ने अर्थव्यवस्था के ताने-बाने को पूरी तरह से बदल दिया है. एक ओर जहां कई क्षेत्र बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, वहीं कुछ क्षेत्रों को अभी भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

औपचारिक क्षेत्रों की हिस्सेदारी बढ़ी

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर जिन फर्मों ने बेहतर प्रदर्शन किया है, वे फर्म पहले से ही औपचारिक क्षेत्र के तहत आती थीं. उनके पास बार-बार लगने वाले लॉकडाउन व व्यवधानों से बचने के लिए वित्तीय संसाधन मौजूद थे. कोरोना महामारी के दौरान औपचारिक क्षेत्र की कई बड़ी फर्मों की बाजार में हिस्सेदारी बढ़ गई. वास्तव में, यह सब अनौपचारिक क्षेत्र की अधिकांश छोटी और कमजोर फर्मों की कीमत पर हुआ. अर्थव्यवस्था में हुए ऐसे असमान सुधार का देश पर व्यापक प्रभाव पड़ा है, क्योंकि भारत का लगभग 90 फीसदी रोजगार अनौपचारिक क्षेत्र ही सृजित करता है. औपचारिक क्षेत्र के अपने समकक्षों के आगे अनौपचारिक क्षेत्र के मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यमों ने दम तोड़ दिया. हालांकि, उनका सकल घरेलू उत्पादन अनौपचारिक क्षेत्र जितना ही है, लेकिन उसके मुकाबले इसमें रोजगार सीमित है.

रोजगार के क्षेत्र में बनी रही चुनौती

आंकड़ों से स्पष्ट है कि देश की जीडीपी में सतत सुधार दर्ज हो रहा है. अगले वर्ष उसके कोविड-पूर्व स्थिति में लौटने का अनुमान भी लगाया जा रहा है, पर रोजगार की स्थिति के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता. आंकड़े बताते हैं कि देश में रोजगार को लेकर अभी भी चुनौती बनी हुई है. अगस्त, 2021 तक देश में नियोजित लोगों की कुल संख्या अगस्त, 2019 के स्तर से भी कम रही. यह इसलिए भी चिंता वाली बात है, क्योंकि अगस्त, 2019 में कुल नियोजित लोगों का स्तर अगस्त, 2016 के स्तर से भी कम था. यह स्थिति बीते कई वर्षों से नियोजन में आ चुके ठहराव की ओर संकेत कर रही है. इस स्थिति में इतनी जल्दी बदलाव आने की उम्मीद भी नहीं है, क्योंकि बीते कुछ वर्षों में लाखों लोग बेरोजगार हो चुके हैं. नियोजन में आ चुके ठहराव को गति देने और कोविड के कारण जो रोजगार कम हुए हैं, लोगों की नौकरियां गयी हैं, उसमें परिवर्तन लाने के लिए सरकार को जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता है.

दुनियाभर में महंगाई से निपटने का प्रयास जारी

उपभोक्ता मांग की बढ़ोतरी को पूरा करने के लिए जहां इंडस्ट्री संघर्षरत रही हैं, वहीं बंदरगाहों पर भीड़, अपर्याप्त शिपिंग कंटेनर और श्रमिकों की कमी से विश्व व्यापार बाधित हुआ है. लॉकडाउन खुलने के बाद भी कई सेक्टरों को श्रमिकों की कमी से जूझना पड़ा है. फोन से लेकर वीडियो गेम कंसोल और कारों के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम में इस्तेमाल होनेवाली चिप यानी सेमीकंडक्टर की कमी की समस्या बनी रही. अनेक तरह की वस्तुओं और उपकरणों की कमी के चलते कई ऑटो कंपनियों को अपनी कई फैक्ट्रियों में महीनों तक उत्पादन को अस्थायी रूप से रोकना पड़ा.

बैंक और बाजारों के सामने चुनौती बरकरार

केंद्रीय बैंक महीनों तक यह मानते रहे कि महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों में आये ठहराव के चलते मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ा है. सामान्य गतिविधियों के शुरू होते ही यह दबाव कम हो जायेगा. हालांकि, साल के अंत तक इसमें बदलाव आ गया. यूएस फेडरल अब महामारी राहत उपायों को रोकने जा रहा है और उम्मीद की जा रही है कि 2022 में वह ब्याज दरों में कम से कम दो बार बढ़ोतरी कर सकता है. स्टॉक मार्केट इस साल नयी ऊंचाईयों को छूने में कामयाब रहा, यह मानकर चला जा रहा था कि केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति उपायों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. हालांकि, अभी इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि इस संकट का अंत कब तक होगा. लिहाजा, बाजार में अनिश्चितता बनी हुई है. इस बीच अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 4.9 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है.

निजी खर्चों में दर्ज की गई कमी

निजी उपभोग के लिए खरीदी जानेवाली वस्तुओं पर व्यय करना भारत की जीडीपी वृद्धि का सबसे महत्वपूर्ण घटक है. यह व्यय कुल जीडीपी का 55 प्रतिशत से भी अधिक है. इस घटक के कमजोर बने रहने से जीडीपी में निरंतर सुधार संभव नहीं है. काफी हद तक इस व्यय में कमी आने का कारण नौकरी और आय का खत्म हो जाना है. कोरोना महामारी ने लाखों लोगों की नौकरी ली और रोजगार को प्रभावित किया है, इससे क्रय शक्ति का प्रभावित होना स्वाभाविक है. लेकिन कुछ हद तक, इस व्यय में कमी का उन लोगों से भी लेना-देना है जो अभी कुछ और दिनों तक अपने खर्चे को रोक कर रखना चाहते हैं. ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि तीसरी लहर भी दूसरी की तरह गंभीर हुई तब क्या होगा?

Also Read: अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दे रहा एडवांस टैक्स कलेक्शन, अब तक सरकार को मिले 9.45 लाख करोड़ रुपये
आर्थिक असमानता की बढ़ी खाई

ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट ने बताया कि किस तरह कोरोना ने पहले से विद्यमान असमानता की खाई को और गहरा कर दिया. वहीं वर्ष के अंत में आयी विश्व असमानता रिपोर्ट में भारत को एक निर्धन और बहुत असमानता वाला देश बताया गया. इस रिपोर्ट के अनुसार, देश के शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 और शीर्ष एक प्रतिशत के पास 22 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि हाशिए के 50 प्रतिशत लोगों के पास इस राष्ट्रीय आय का मात्र 13 प्रतिशत ही है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें