Emergency Fund: आर्थिक प्लानिंग अक्सर नियमित खर्चों के आसपास घूमती है, लेकिन असली परेशानी तब शुरू होती है जब कोई अनदेखा खर्च सामने आ जाए. नौकरी चली जाना, परिवार में मेडिकल इमरजेंसी या कोई बड़ा जरूरी भुगतान ऐसे मौके पर बिना तैयारी इंसान सीधे फाइनेंशियल दबाव में आ जाता है.
बिना बैकअप पैसे के फैसले मजबूरी में होते हैं
जब जेब खाली होती है, तब फैसले सोच-समझकर नहीं बल्कि मजबूरी में लिए जाते हैं. क्रेडिट कार्ड या लोन उस वक्त आसान लगते हैं, लेकिन यही विकल्प आगे चलकर ब्याज और तनाव दोनों बढ़ा देते हैं. इमरजेंसी फंड इस मजबूरी को विकल्प में बदल देता है.
इमरजेंसी फंड सिर्फ पैसा नहीं, सुरक्षा है
यह फंड आपको समय देता है सोचने का, सही फैसला लेने का और खुद को संभालने का. अचानक आय रुकने की स्थिति में यही फंड घर चलाने में मदद करता है और आपकी बाकी बचत को छूने से बचाता है.
हर कमाने वाले को क्यों चाहिए इमरजेंसी फंड
चाहे आपकी सैलरी अच्छी हो या बैंक बैलेंस मजबूत दिखता हो, अनिश्चितता किसी को नहीं छोड़ती. इमरजेंसी फंड आपको मानसिक सुकून देता है कि मुश्किल समय में खर्चों की चिंता सबसे पहले सामने नहीं आएगी.
कितना फंड रखना समझदारी है
एक तय रकम सभी पर लागू नहीं होती. आमतौर पर 3 से 6 महीने के जरूरी खर्चों के बराबर राशि को सुरक्षित माना जाता है. अगर आपकी आय अस्थिर है या जिम्मेदारियां ज्यादा हैं, तो यह सीमा और बढ़ाई जा सकती है.
इमरजेंसी फंड बनाने का आसान तरीका
इमरजेंसी फंड रातों-रात तैयार नहीं होता. इसके लिए सही रणनीति और नियमित आदत की जरूरत होती है. इस दिशा में 67:33 का नियम एक व्यावहारिक रास्ता दिखाता है, जो बिना ज्यादा दबाव के मजबूत फाइनेंशियल बैकअप बनाने में मदद करता है. इस फॉर्मूले में आपकी हर महीने मिलने वाली इन-हैंड सैलरी को दो हिस्सों में बांटा जाता है. कुल आय का करीब 67 प्रतिशत हिस्सा रोजमर्रा की जरूरतों पर खर्च किया जाता है. इसमें घर का किराया, राशन, बिजली-पानी के बिल, बच्चों की पढ़ाई, ट्रांसपोर्ट और सामान्य जीवनशैली से जुड़े खर्च शामिल होते हैं.
बाकी बचे 33 प्रतिशत हिस्से को बचत और निवेश के लिए अलग कर दिया जाता है. यही हिस्सा धीरे-धीरे आपका इमरजेंसी फंड तैयार करता है. नियमित रूप से इस नियम का पालन करने पर कुछ ही समय में आपके पास ऐसा फाइनेंशियल कुशन बन जाता है, जो किसी भी अचानक आने वाली परेशानी में काम आता है.
सही लक्ष्य ऐसे तय करें
पहले यह तय करें कि बिना किन खर्चों के आप नहीं चल सकते. इन्हीं खर्चों का मासिक आंकड़ा निकालें और उसे कई महीनों के हिसाब से गुणा करें. यही आपकी वास्तविक जरूरत का इमरजेंसी फंड है. एक साथ बड़ी रकम जोड़ने की कोशिश अक्सर अधूरी रह जाती है. छोटी लेकिन नियमित बचत ज्यादा कारगर होती है. समय के साथ यही छोटी रकम बड़ा सुरक्षा कवच बन जाती है.
इमरजेंसी फंड वहां रखें, जहां जोखिम न हो और जरूरत पड़ते ही पैसा मिल जाए. बहुत ज्यादा रिटर्न के चक्कर में इसे फंसा देना समझदारी नहीं है.
अतिरिक्त आमदनी को मौका न गंवाने दें
कोई एक्स्ट्रा पैसा मिले तो पहले अपने इमरजेंसी फंड को देखें. यह छोटी-सी प्राथमिकता भविष्य की बड़ी परेशानी को टाल सकती है. इमरजेंसी फंड का मतलब ही है आपात स्थिति. इसे रोजमर्रा की इच्छाओं से दूर रखें, तभी यह सही वक्त पर काम आएगा.
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