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Baikunthpur Vidhan Sabha: बैकुंठपुर में चुनावी संग्राम, एनडीए बनाम राजद, छोटे दलों ने बढ़ाई टेंशन

Baikunthpur Vidhan Sabha: राजद के कब्जे से गोपालगंज के बैकुंठपुर सीट को एनडीए अपने पास लाने के लिए प्रयास कर रहा है. इधर, राजद सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में करने की जद्दोजहद कर रहा है. दोनों गठबंधनों का टेंशन छोटे दल बढ़ा रहे हैं. इन सबके बीच वहां के वोटरों की क्या राय है. इसको समझने के लिए गोपालगंज के संवाददाता ने लोगों ने बातचीत की और उने मन-मिजाज को भांपने का भी प्रयास किया और वहां के सामाजिक समीकरण व समस्याओं को भी जाना.

Baikunthpur Vidhan Sabha, संजय कुमार अभय: सुबह से हो रही बूंदाबांदी के बीच बैकुंठपुर विधानसभा क्षेत्र में चुनावी तपिश को महसूस किया जा सकता है. बारिश से होनेवाले नुकसान के साथ चौक-चौराहों पर चुनाव पर चर्चा हो रही थी. मैं महम्मदपुर पहुंचा, जहां पास में बैठे मनोहर श्रीवास्तव, हरेंद्र गुप्ता समेत अन्य लोग बैठे हैं और बातचीत कर रहे हैं. उनसे यह सवाल पूछने पर किया इस बार क्या होगा, किसका पलड़ा भारी है. इस पर मनोहर श्रीवास्तव ने कहा कि नीतीश सरकार ने काफी काम किया है. इसलिए आप खुद समझ जाइये कि यहां किसके पक्ष में वोट पड़ेंगे.

यह इलाका वैश्य, यादव व राजपूत बहुल है. यहां के लोग जात-पात नहीं, विकास को तरजीह देंगे. वहां से आगे निकले पर और दिघवा दुबौली बाजार मिलता है. बारिश के बीच चाय की दुकान पर विशाल कुमार सिंह मिलते हैं. चुनाव के सवाल पर कहते हैं, यहां कोई टक्कर नहीं है. इस पर पास खड़े राजेश कुमार व इंद्रासन गौड़ बताते हैं कि इस बार सामाजिक समीकरण में उलट-फेर हो सकता है. इसका असर रिजल्ट में भी दिखेगा.

राजापट्टी कोठी में चाय की दुकान पर बैठे अरविंद सिंह, वीरेंद्र सहनी, कमलेश्वर प्रसाद की मानें तो एनडीए के उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी 2015 में बैकुंठपुर से चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे थे. तब राजद, जदयू व भाजपा अलग-अलग चुनाव मैदान में थी. तब भाजपा के मिथिलेश तिवारी पर बैकुंठपुर की जनता से भरोसा किया और वे जीते. इन लोगों का कहना है कि एनडीए की सरकार ने काम किया है. डुमरिया नारायणी रिवर फ्रंट, शवदाह गृह से लेकर नारायणी नदी पर सेतु बनने से दियारे का विकास हुआ है.

एनडीए में भीतरघात के भरोसे राजद

स्थानीय लोगों का कहना है कि मंजीत सिंह का इस क्षेत्र से काफी लगाव था. एक तरह से वे ही टिकट के दावेदार थे, लेकिन उनको बरौली सीट से पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. इस कारण राजपूत वोटर नाराज हैं. इससे राजद को लाभ हो सकता है. राजद इसके भरोसे भी है. राजद के प्रत्याशी प्रेम शंकर यादव पांच वर्षों तक विधानसभा का नेतृत्व कर चुके हैं. चुनावी गणित की भली-भांती समझ है. राजद को अपने कोर वोटरों के साथ एनडीए में हो रही घात-प्रतिघात पर भी भरोसा है. इस बार अगर यदुवंशी व रघुवंशी एकजुट हुए तो चुनाव परिणाम बदल सकता है.

एनडीए-महागठबंधन में टक्कर, छोटे दल बिगाड़ सकते हैं खेल

राजद के विधायक प्रेमशंकर यादव प्रत्याशी है, तो दूसरी ओर एनडीए ने भाजपा के मिथिलेश तिवारी को उतारा है. मुकाबला तो भाजपा के मिथिलेश तिवारी व राजद के प्रेम शंकर यादव के बीच ही है. जन सुराज से अजय प्रसाद, बहुजन समाज पार्टी से प्रदीप कुमार व राष्ट्रवादी जन लोक पार्टी से रिटायर डीआइजी रामनारायण सिंह मैदान में हैं.

सभी अपना-अपना समीकरण को बनाने में जुटे हैं. यह भाजपा व राजद दोनों के लिए बड़ी चुनौती है. स्थानीय राजनीतिक जानकार चुन्नी लाल शर्मा कहते है कि यहां चुनावी जंग काफी रोचक हो गया है. सिर्फ जातीय समीकरण पर पार्टी के लोग जो हार- जीत तय करते थे, वह नहीं हो रहा. कल तक एक-दूसरे के राजनीतिक दुश्मन माने जाले वाले इस चुनाव में गहबलिया कर रहे हैं. इससे बड़े- बड़े दिग्गजों का मूड गड़बड़ा जा रहा है.

अब तक नौ बार राजपूत प्रत्याशी ने मारी है बाजी

आजादी से अबतक नौ बार राजपूत जाति के प्रत्याशी ने जीत हासिल की है. वहीं, तीन बार यादव व तीन बार ब्राह्मण जाति के विधायक बने. 1962 के बाद से कांग्रेस कमजोर पड़ने लगी. पंडित शिव बच्चन त्रिवेदी 1969 में दोबारा कांग्रेस से जीते. इसके बाद 1990 में कांग्रेस से अंतिम बार ब्रजकिशोर नारायण सिंह विजयी हुए थे. यहां यादव राजपूत वोटरों की संख्या अधिक है.

बैकुंठपुर की राजनीति में राजपूत जाति का वर्चस्व रहा है. इस बार यहां जदयू के मंजीत सिंह को बरौली से एनडीए के उम्मीदवार बनाये जाने के कारण यहां राजपूत दो खेमें में बंटे हुए हैं. महम्मदपुर बाजार के मुकेश सिंह व पंकज गुप्ता ने कहा कि अब लड़ाई को राजपूतों का एक खेमा नाराज है. एनडीए के ही कुछ बड़े नेता इसको हवा दे रहे हैं. नाम पूछने पर, वे मौन धारण कर लेते हैं. हालांकि, भाजपा ने कोर वोटर के बिखराव को रोकने में पूरी ताकत लगा दी है.

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गंडक नदी की तबाही व पलायन का दर्द

बैंकुठपुर को पर्व व उत्तर दिशा को नारायणी नदी घेरे हुए है. इस इलाके के एक तिहाई भाग तीन महीनों तक टापू में तब्दील हो जाता है. गांवों का संपर्क बरसात में पूरी तरह कट जाता था, जिससे ग्रामीणों को भारी परेशानी झेलनी पड़ती थी. यहां गंडक नदी की तबाही व पलायन सबसे बड़ा दर्द आज भी है. अब स्थिति बदलने की कोशिश हो रही है.

गंडक नदी के सभी तटबंधों का पक्कीकरण किया जा रहा है. डुमरिया घाट में बने नारायणी रिवर फ्रंट विकास की दिशा को भी तय कर रहा. यहां बेरोजगारी की ऐसी मार है कि किसी भी गांव में चले जाइए अधिकतर घरों के लोग दिल्ली, पंजाब, गुजरात, मुंबई में रोजी-रोजगार करने के लिए चले गये हैं. दिघवा दुबौली में राजेश सिंह कहते है कि उनके इलाके में तो आधे से अधिक घरों में ताला लटका हुआ मिलेगा.

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Paritosh Shahi
Paritosh Shahi
परितोष शाही डिजिटल माध्यम में पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में एक्टिव हैं. करियर की शुरुआत राजस्थान पत्रिका से की. अभी प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. देश और राज्य की राजनीति, सिनेमा और खेल (क्रिकेट) में रुचि रखते हैं.

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