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B Positive : कामकाजी जीवन में ज्यादातर इंसान के व्यवहार/मनःस्थिति का आकलन नीचे दिए गए दो केस स्टडी के माध्यम से किया जा सकता है.
केस स्टडी 1- नौकरी करने वाले लोगों का संवाद/व्यवहार
काम का बहुत दबाव है. टारगेट का काफी प्रेशर है. मुझे तो अपने शौक, निजी कार्यों एवं पारिवारिक जिम्मेवारियों को पूरा करने के लिए बिल्कुल ही समय नहीं मिल पाता है. अगर आप किसी संस्थान में नौकरी करते हैं तो फिर इस तरह की चर्चा आप रोज ही सुनते होंगे. लोग कहते हुए नजर आते हैं कि मैंने संस्थान को अपने जीवन का बहुत बड़ा समय दे दिया, लेकिन मुझे क्या हासिल हो रहा है ? अपना कोई काम करता तो शायद जीवन ज्यादा सुखमय होता. जितना काम करता, उतनी आमदनी तो होती.
केस स्टडी 2 -स्वरोजगार करने वाले लोगों का संवाद/व्यवहार
इससे भला तो मैं कहीं नौकरी-चाकरी ही करता. कम से कम महीने के अंत में एक निश्चित राशि पगार के रूप में आती. जीवन सुख-चैन से कटता. अपना काम करने में इतना रिस्क है, लेकिन लगता है हासिल कुछ भी नहीं होता है.
दोनों ही केस स्टडी में आपने अनुभव किया होगा कि इंसान अपने कामकाजी जीवन से असंतुष्ट है. उसे लगता है कि उसे जो मिल रहा है वो कम है या उसकी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं हो रहा है.
संभव है कुछ मामलों में इंसान को अपनी प्रतिभा-काम के आधार पर जो हासिल हो रहा है या हुआ है वो उसकी मेहनत-प्रतिभा के हिसाब से नहीं हो, लेकिन अपवाद को छोड़ दें और ज्यादातर लोगों के काम करने के तरीके का आकलन करें तो ऐसा लगेगा कि जिस तरह के रिजल्ट की उम्मीद वो रखते हैं या तो वो उसके काबिल नहीं हैं या अगर काबिल हैं भी तो जिस तरह के समर्पण और मेहनत की जरूरत है, उसमें कमी है. इंसान जिस भी मुकाम पर होता है उसकी चर्चा तो जरूर करता है, लेकिन आत्ममंथन करने से परहेज करता है.
वस्तुतः जब हम कहीं नौकरी करते हैं, तो हममें से ज्यादातर लोगों को ऐसा लगता है कि मुझे दूसरों से ज्यादा काम को लेकर इन्वॉल्व क्यों होना. शायद हम भूल जाते हैं कि हम जब कहीं काम करते हैं तो हम अपने लिए भी काम करते हैं. इसलिए रोज जो व्यक्ति अपने को ज्यादा खपाता है, वो रोजाना समय के साथ दूसरों से एक बड़ी लकीर खींचता जाता है और यही लकीर एक दिन बहुत बड़ी नजर आने लगती है.
मेरा मानना है कि इंसान अपने सुनिश्चित कामकाजी समय का ही सही से इस्तेमाल कर ले, तो उसे और ज्यादा वक्त अपने काम को पूर्ण करने में नहीं लगाना होगा और इसकी वजह से उसे अपने पारिवारिक और कामकाजी जीवन में बेहतर समन्वय बनाने में काफी मदद मिलेगी. अमूमन इंसान अपने काम के दबाव को लेकर जितना चिंतित दिखता है, चर्चा करता है, उतना समय वो चिंतन कर काम में लगा दे, तो उसकी चिंता का निवारण भी हो जाएगा.
हमारे बीच से ही जब कोई व्यक्ति अपने जीवन में बेहतर कर जाता है, तो हम उसे एक केस स्टडी के रूप में देखते हैं, लेकिन इसे भी देखने की जरूरत है कि वो व्यक्ति भी कमोबेश इसी व्यवस्था के बीच से ही अपने लिए बेहतर मुकाम बनाता है और अगर कोई दूसरा ये काम कर सकता है तो एक इंसान के रूप में हम भी बेहतर कर सकते हैं, इसे मानने और विश्वास नहीं करने का कोई कारण नहीं है.
Posted By : Guru Swarup Mishra