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1962 की जंग में भी गलवान घाटी बनी थी लड़ाई का मैदान

1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान भी गलवान घाटी लड़ाई का मैदान बन गयी थी. चीन ने 20 अक्तूबर को सुबह 5.30 बजे गलवान पोस्ट पर हमला बोल दिया था. पहले उन्होंने तोपखाने और मोर्टार से गोले बरसाने से शुरू किये

1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान भी गलवान घाटी लड़ाई का मैदान बन गयी थी. चीन ने 20 अक्तूबर को सुबह 5.30 बजे गलवान पोस्ट पर हमला बोल दिया था. पहले उन्होंने तोपखाने और मोर्टार से गोले बरसाने से शुरू किये. करीब एक घंटे की गोलाबारी के बाद, चीनी सेना ने लगभग एक बटालियन की ताकत से धावा बोला. खाइयों में मोर्चा लिये भारतीय सैनिक लोहा लेते रहे. लेकिन, शाम होने तक चीन ने गलवान पोस्ट पर कब्जा कर लिया.

वहां मौजूद भारत के 68 फौजियों में से 36 अपनी सीमाओं की रक्षा करते हुए शहीद हो गये. पोस्ट के आधे से ज्यादा अफसरों व जवानों की शहादत बताती है कि लड़ाई कितनी जोरदार हुई होगी. भारत के कई फौजियों को युद्ध बंदी भी बना लिया गया था. इस लड़ाई के बाद से ही चीन का अक्साई-चिन पर पूरी तरह कब्जा हो गया है.

1962 युद्ध के एलान से चंद महीने पहले भी गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाएं जुलाई में आमने-सामने आ गयी थीं. तब भारत के गोरखा सैनिकों ने घाटी के रास्ते में एक पोस्ट बनायी थी. इस पोस्ट से एक चीनी पोस्ट का रास्ता कट गया था. इसे चीन ने अपने ऊपर हमला बताया था. इसके बाद चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों की घेराबंदी कर दी. इसके बाद भारत ने चार माह तक इस पोस्ट पर हेलीकॉप्टर के जरिये खाद्य और सैन्य आपूर्ति की.

उस पार है अक्साई-चिन : गलवान नदी की यह घाटी लद्दाख और अक्साई-चिन के बीच, एलएसी के नजदीक स्थित है. यह घाटी भारत की तरफ लद्दाख से लेकर चीन के दक्षिणी शिनजियांग तक फैली है. यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह पाकिस्तान और चीन के शिनजियांग दोनों के साथ लगा हुआ है. गलवान नदी का नाम गुलाम रसूल गलवान के नाम पर पड़ा था. वह लेह के रहनेवाले थे और ट्रेकिंग गाइड थे. 1900 के आसपास उन्होंने इस नदी को खोजा था.

भारत बना रहा है पुल : गलवान नदी काराकोरम रेंज के पूर्वी छोर में समांगलिंग से निकलती है, फिर पश्चिम में बहते हुए श्योक नदी में मिल जाती है. भारतीय सैनिक इस नदी की घाटी में गश्त करते रहते हैं, ताकि उसके अतिक्रमण को रोका जा सके. अब इस नदी पर भारत की ओर से पुल बनाया जा रहा है. मौजूदा तनाव के हालात को देखते हुए भारत ने पुल का निर्माण कार्य तेज कर दिया है. इसके लिए बीआरओ ने बड़ी संख्या में मजदूर लगाये हैं.

भारतीय सेना ने 1962 का बदला 1967 में लिया : 1962 की जंग में भारत को हार का मुंह देखना पड़ा था. लेकिन इसके पांच साल बाद ही भारत ने इसका बदला ले लिया था. 1967 में 11से 15 सितंबर के बीच सिक्किम के नाथुला और अक्तूबर में चोला में दोनों देशों के सैनिकों में जोरदार झड़पें हुई थीं. भारत के अनुसार, इसमें चीन के लगभग 350 सैनिक मारे गये थे, जबकि भारत के 88 जवान शहीद हुए थे. चीन के सैनिकों ने अगस्त महीने में नाथुला में भारतीय सीमा से सटे इलाकों में खंदकें बनानी शुरू कीं. कुछ खंदकें भारतीय सीमा में खोदी जाती देख भारतीय सैनिकों ने इसका विरोध किया. इस टकराव ने बद में हिंसक झड़पों का रूप ले लिया.

सीमा पर नहीं चली गोली, कंटीले तार वाले लाठी-डंडों से किया चीनी सैनिकों ने हमला : गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने कीलें लगी लाठी से भारतीय जवानों पर हमला किया है. सूत्रों की मानें, तो जब बॉर्डर कमांडर की बैठक हुई, तो उसमें तय हुआ कि पेट्रोलिंग प्वांइट 14-15-17 पर चीन एलएसी के उस ओर जायेगा, लेकिन चीनी सैनिकों ने इसे मानने से इंकार कर दिया. ने बार-बार चीन को समझाया, लेकिन चीन ने इस दौरान हमला कर दिया. चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर पत्थरबाजी की, उनके पास लोहे के नाल, कीलें और लठ से भारत के सेना पर हमला किया. जो अफसर इस मामले को लीड कर रहे थे, उन्हें इसी पथराव-झड़प में काफी गहरी चोट आयी है. बता दें कि दोनों देशों के बीच सीमा पर गोलीबारी नहीं किये जाने का समझौता है.

एलएसी पर फायरिंग नहीं करने का है समझौता : साल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव चीन के दौरे पर गये थे. इस दौरान दोनों देशों के बीच एलएसी पर शांति बनाये रखने के लिए एक समझौता किया गया. इसमें तय हुआ कि भारत-चीन सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल किया जायेगा. दूसरे पक्ष के खिलाफ बल या सेना प्रयोग की धमकी नहीं दी जायेगी. दोनों देशों की सेनाओं की गतिविधियां एलएसी से आगे नहीं बढ़ेंगी. अगर एक पक्ष के जवान एलएसी को पार करते हैं, तो उधर से संकेत मिलते ही तत्काल एलएसी में वापस चले जायेंगे. कम से कम सैन्य बल रखे जायेंगे.

दरबुक-डीबीओ रोड से चीन को खतरा : गलवान घाटी में भारत सड़क बना रहा है, जिसे रोकने के लिए चीन ने यह हरकत की है. दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड (डीबीओ) भारत को इस पूरे इलाके में बड़ा एडवांटेज देगी. यह रोड काराकोरम पास के नजदीक तैनात जवानों तक आपूर्ति पहुंचाने के लिए बेहद अहम है. डीबीओ सेक्टर अक्साइ-चिन पठार पर भारतीय मौजूदगी की नुमाइंदगी का प्रतीक है, अन्यथा ये पठार अधिकतर चीनियों की ओर से नियंत्रित है. इस क्षेत्र में डीबीओ को दरबुक और थेंस से जोड़ने के लिए बीआरओ सड़क बना रहा था, जो लेह से जुड़ता.

पैंगोंग के फिंगर पर चीन ने लगाये कैंप : पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर में चीन ने फिंगर-8 से 4 के बीच 50 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा भूमि पर कब्जा कर रखा है. चीन ने फिंगर-4 के बेस के पास कैंप लगाये हैं. इसके आगे भारत की पेट्रोलिंग टीम को नहीं जाने दिया जा रहा, जबकि फिंगर 8 तक भारत का इलाका है. चीन फिंगर-4 तक ही भारत की सीमा मानता है. मई के पहले हफ्ते में शुरू हुए तनाव को दूर करने के लिए कई दौर की बातचीत हो चुकी है, मगर ताजा घटना के बाद तनाव बढ़ता नजर आ रहा है. पांच मई को इसी झील के किनारे भारत-चीन की सेना में झड़प हुई थी.

गलवान घाटी पर चीन का इंफ्रास्ट्रक्चर : सेटेलाइट की तस्वीरों से पता चलता है कि 2016 तक, चीन ने गलवान नदी घाटी के मध्य बिंदु तक पक्की सड़क का निर्माण कर लिया था. यह माना जा सकता है कि मौजूदा समय में, चीन इस सड़क को सेक्टर में एलएसी के पास स्थित किसी बिंदु तक बढ़ा चुका होगा. इसके अलावा, चीन ने नदी घाटी में छोटी-छोटी चौकियों का निर्माण किया है, जो कि संभवत: चीनी सैनिकों के गश्त करने के लिए फॉरवर्ड पोजीशंस का काम करती हैं. सबसे बड़ा चीनी बेस हेविएटन में है, जो 48 किलोमीटर नॉर्थ-ईस्ट है. यहां पर चीन ने हथियार भी तैनात किये हैं.

गलवान घाटी

  • लद्दाख और अक्साइ- चिन के बीच भारत-चीन सीमा के नजदीक स्थित

  • चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली

विवाद की वजह : चीन गलवान घाटी में भारत के निर्माण को गैर-कानूनी कह रहा है, क्योंकि भारत-चीन के बीच एक समझौता हुआ है कि एलएसी को मानेंगे और उसमें नये निर्माण नहीं करेंगे. लेकिन, चीन वहां पहले ही जरूरी सैन्य निर्माण कर चुका है और अब वह मौजूदा स्थिति बनाये रखने की बात कर रहा है. अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अब भारत भी वहां पर सामरिक निर्माण करना चाहता है.

मौजूदा विवाद

तीन बार सैनिक आमने-सामने आये चार बार वार्ता हुई, फिर हिंसक झड़प : पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच 41 दिनों से सीमा पर तनाव बना हुआ है. इसकी शुरुआत पांच मई को पैंगोंग झील के पास दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प से हुई थी. भारत के सड़क निर्माण का चीनी सैनिकों ने विरोध किया था. इसके बाद सीमा पर दोनों देशों की सेना तीन बार आमने-सामने आयी और चार बार बातचीत कर मामला शांत करने की कोशिश की गयी, लेकिन अब मामला हिंसक झड़प तक पहुंच गया है. आइए जाने कब क्या हुआ.

कब-कहां हुई झड़पें

पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील के फिंगर-5 के पास : झील के उत्तरी किनारे पर फिंगर-5 इलाके में भारत-चीन के करीब 200 सैनिकों के बीच झड़प हो गयी. इसमें दोनों तरफ से सैनिकों को चोट आयी. पूरी रात टकराव के हालात बने रहे. अगले दिन तड़के फिर सैनिक भीड़ गये. बाद में अधिकारियों के बीच बातचीत के बाद मामला शांत हुआ.

सिक्किम के 16 हजार फुट ऊंचे नाकू ला सेक्टर : सिक्किम में 16 हजार फुट की ऊंचाई पर मौजूद नाकू ला सेक्टर में भारत और चीन के 150 सैनिक आमने-सामने आ गये थे. गश्त के दौरान आमने-सामने हुए सैनिकों ने एक-दूसरे पर वार किये. इस झड़प में 10 सैनिक घायल हुए. अधिकारियों के बीच बातचीत के बाद झड़प रुकी.

एलएसी पर दिखे चीनी हेलीकॉप्टर, भारत ने दिये जवाब : लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी के पास चीन के हेलीकॉप्टर देखे गये. जवाब में भारत ने लेह एयरबेस से अपने सुखोई-30 एमकेआइ फाइटर प्लेन का बेड़ा और बाकी लड़ाकू विमान रवाना कर दिये. इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बरकरार है.

चार बार हुई बातचीत, पर मामला सुलझा नहीं : लद्दाख के चुसूल सेक्टर में एलएसी से 20 किमी दूर मालदो में लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत हुई. दोनों सैन्य अधिकारियों के बीच शांतिपूर्ण तरीके से विवाद सुलझाकर रिश्ते आगे बढ़ाये जाने पर सहमति बनी.

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