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West Bengal: पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा में काली पूजा से मकर सक्रांति तक तैयार किए जाते हैं खजूर का गुड़

पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले में लगातार तीन माह तक गुड़ तैयार किया जाता है. यह सिलसिला काली पूजा से लेकर मकर सक्रांति तक चलता है. वहीं, हर साल खजूर गुड़ के लिए बंगाल के कारीगर द्वारा अलग-अलग कैंप भी लगाए जाते हैं.

West Bengal: पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा से आने वाले खजूर गुड़ के कारीगर काली पूजा से लेकर मकर सक्रांति तक लगातार तीन माह तक गुड़ तैयार करने का यह सिलसिला जारी रहता है. खजूर गुड़ के लिए बंगाल के कारीगर द्वारा अलग-अलग कैंप लगाए जाते हैं. प्रत्येक कैंप में लगभग 4 से 5 टीना तक गुड तैयार किया जाता है. प्रत्येक कैंप में 4 से 5 लोगों का दल होता है. इन लोगों द्वारा खजूर पेड़ पर चढ़कर हड्डी में रस निकालने से लेकर, बड़े बड़े बैग में रस डालकर खजूर गुड तैयार करने तक का कार्य जारी रहता है. खजूर गुड तैयार करने के बाद विभिन्न क्षेत्रों में टीना एवं कार्टून में पैक कर व्यापारी तक गुड़ पहुंचाने का कार्य भी किया जाता है.

कैंप लगाने से 15 दिनों पूर्व ही पहुंच जाते हैं कारीगर

कैंप तैयार करने से 15 दिनों पूर्व ही पश्चिम बंगाल के कारीगर मौके पर पहुंचकर आसपास स्थित खजूर पेड़ों की साफ-सफाई करते हैं. पेड़ों की साफ-सफाई के बाद खजूर पेड़ के डाल एवं घास पास से अपने झोपड़ी नुमा घर तैयार करते हैं. गुड़ तैयार करने के लिए बड़े-बड़े भट्टी तैयार किए जाते हैं. सब कुछ तैयार होने के बाद वे लोग घर परिवार छोड़कर 3 माह के लिए कैंप में चले आते हैं, जिसके बाद खजूर गुड तैयार करने का दिनचर्या शुरू हो जाती है. कैंप खत्म होने के बाद गुड बनाने वाले कारीगर यह तो अपने गांव लौट जाते हैं या फिर दूसरे राज्यों में जाकर कुआं आदि निर्माण के कार्य में मजदूरी करते हैं जिससे उनका परिवार का भरण पोषण चलता है.

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पश्चिम बंगाल सहाय कारीगर

पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले से जाफर खान, सद्दाम खान, सत्तार मंडल, नवाब अली नवाज, अब्दुल बारी खान, कलीउद्दीन खान, अब्दुल खान, अब्दुल रहमान मंडल, लुलु मंडल, सुकूदिन खान, नूर इस्लाम खान, गुलाम महमूद आदि शामिल है.

पहले मिट्टी के हड्डी पर अब प्लास्टिक के लगाए जाते हैं

जाफर खान, पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिला अंतर्गत सातसौ गुड़िया गांव निवासी जाफर खान ने बताया कि 15 वर्षों पूर्व खजूर पेड़ पर मिट्टी की हांडी तांगे जाते थे, जिससे टूटने फूटने का डर लगा रहता था, पर अब प्लास्टिक के हड्डी टांगे जाते हैं जिस पर बच्चे पत्थर बरसाने पर भी नहीं टूटते. उन्होंने बताया कि खजूर पेड़ पर चढ़ने की गांव में प्रैक्टिस की जाती है, जिसके बाद पूरे तैयारी के साथ पेड़ पर चढ़ने का काम किया जाता है. खजूर पेड़ पर टांगे गए हड्डी 18 से 20 घंटे बाद उतारे जाते हैं. प्रत्येक ठंडी में 3 से 4 किलो पेड़ का रस इकट्ठा होते हैं. उस रस को खोला कर खजूर का गुड़ तैयार किए जाते हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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