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दिन भर नींद या सुस्ती बढ़ा सकती है गंभीर बीमारियों का खतरा

डॉ नवनीत सूद सीनियर पल्मनोलोजिस्ट, धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नयी दिल्ली अनिद्रा आज एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है. आंकड़ों की मानें, तो आज विश्व की लगभग एक तिहाई जनसंख्या अनिद्रा की शिकार है, लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं, जिनकी नींद 8-10 घंटे सो लेने के बाद भी पूरी नहीं […]

डॉ नवनीत सूद

सीनियर पल्मनोलोजिस्ट, धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नयी दिल्ली
अनिद्रा आज एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है. आंकड़ों की मानें, तो आज विश्व की लगभग एक तिहाई जनसंख्या अनिद्रा की शिकार है, लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं, जिनकी नींद 8-10 घंटे सो लेने के बाद भी पूरी नहीं होती. सारा दिन उन पर सुस्ती छायी रहती है और किसी काम में मन नहीं लगता. अगर आपके साथ भी यह समस्या है, तो समझिए कि आप हाइपरसोमनिया के शिकार हैं. ब्रिटेन के स्लीप फाउंडेशन के अनुसार, दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत आबादी जीवन में कभी-न-कभी हाइपरसोमनिया की शिकार होती है.
कि सी भी इंसान के लिए उतनी नींद पर्याप्त होती है, जब वह सुबह उठे़, तो तरोताजा महसूस करे और उसे दिनभर काम करते समय ध्यानकेंद्रण की समस्या न आए. विशेषज्ञों का मानना है कि एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए 6 से 8 घंटे की नींद पर्याप्त होती है, लेकिन कुछ लोग ओवर स्लीपिंग की समस्या से पीड़ित होते हैं. इसे ही मेडिकल टर्म में हाइपरसोमनिया कहते हैं.
यह एक स्लीप डिसऑर्डर है, जिसमें सामान्य से अधिक नींद आती है, लेकिन रात को भरपूर सोने के बाद भी पीड़ित तरोताजा महसूस नहीं करता है. जिन लोगों को हाइपरसोमनिया होता है, उन पर पूरे दिन सुस्ती छायी रहती है. उनकी ध्यानकेंद्रण की क्षमता प्रभावित होती है और वे कोई भी काम ठीक प्रकार से नहीं कर पाते, जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
गंभीर बीमारियों का खतरा
हाइपरसोमनिया कोई घातक रोग नहीं है, लेकिन यह कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा सकता है. इससे पीड़ित कई लोग दोपहर में भी कुछ देर सो जाते हैं, फिर भी फ्रेश महसूस नहीं करते, लेकिन हाइपरसोमनिया, नैक्रोलेप्सी के समान नहीं है, जो एक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है.
नैक्रोलेप्सी में दिन में कभी भी स्लीप अटैक आ जाता है. जैसे गाड़ी चलाते हुए, खाना खाते समय या किसी से बात करने के दौरान, इसे रोकना संभव नहीं होता. कई बार नैक्रोलेप्सी के कारण होने वाले स्लीप अटैक घातक भी हो सकते हैं, पर हाइपरसोमनिया में ऐसा नहीं होता है.
हाइपरसोमनिया के दो प्रकार
प्राइमरी हाइपरसोमनिया : यह स्लीप पैटर्न गड़बड़ाने के कारण होता है. मस्तिष्क का वह भाग, जो सोने और जागने के चक्र को नियंत्रित करता है, उसमें खराबी आने से यह समस्या हो जाती है.
सेकंडरी हाइपरसोमनिया : जब किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण नींद की गुणवत्ता और अवधि प्रभावित होती है, तो उसे सेकंडरी हाइपरसोमनिया कहते हैं. स्लीप एपनिया सेकंडरी हाइपरसोमनिया का सबसे प्रमुख कारण है.
इसके अलावा, क्लिनिकल डिप्रेशन, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, एनसिफेलाइटिस, हाइपरथायराइडिज्म, एनीमिया और किडनी संबंधी समस्याओं के कारण गहरी नींद नहीं आती और घंटों सोने के बाद भी सुबह बिस्तर से उठने का मन नहीं करता और दिनभर थकान व सुस्ती बनी रहती है. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की खराबी के कारण भी यह समस्या हो सकती है. इसके अलावा, कई दवाइयां, कैफीन और एल्कोहल का अधिक मात्रा में सेवन भी हाइपरसोमनिया का कारण बन सकता है.
इसका असर तो बहुत बड़े स्तर पर होता है, पर शुरुआती प्रभावों की बात करें, तो सबसे पहले आंखों के नीचे डार्क सर्कल हो जाते हैं. फिर एकाग्रता में कमी आती है, तो निर्णय लेने की क्षमता भी कम होती है. इसके अलावा थका-थका रहना भी हाइपरसोमनिया की निशानी है. इसके नतीजे के तौर पर डायबिटीज और मोटापा, सिरदर्द आदि शरीर में घर कर सकता है.
ये हैं लक्षण
हाइपरसोमनिया से पीड़ित लोगों को सारा दिन नींद के झोंके आते रहते हैं, चाहे खाना खा रहे हों, काम कर रहे हों या बात कर रहे हों. इसके अलावा निम्न लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं.
लगातार थकान बना रहना.
सुबह उठने में परेशानी होना.
सारा दिन उनींदापन और सुस्ती महसूस होना.
ऊर्जा की कमी महसूस होना.
उत्तेजना और बैचेनी.
सोचने और बोलने में काफी परेशानी होना.
चीजों को याद न रख पाना.
किसी काम में मन न लगना.
कैसे करें बचाव
सोने व उठने का एक नियत समय बना लें और उसका पालन करें.
प्रतिदिन आठ घंटे से अधिक न सोएं.
शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, योग और एक्सरसाइज करें.
बिना कारण के तनाव न पालें, मानसिक शांति के लिए ध्यान करें.
गैजेट्स का इस्तेमाल कम-से-कम करें.
रात को सोने से दो घंटा पहले गैजेट्स का इस्तेमाल न करें.
चाय व कॉफी का कम मात्रा में सेवन करें, क्योंकि कैफीन गहरी नींद में जाने से रोकता है.
संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें.
तीन मेगा मील की जगह छह मिनी मील खाएं.
हाइपरसोमनिया के साइड इफेक्ट्स
सिरदर्द : नेशनल स्लीप फाउंडेशन के अनुसार, अत्यधिक सोने से मस्तिष्क के कई रसायनों का संतुलन गड़बड़ा जाता है और न्यूरोट्रांसमीटर्स की कार्यप्रणाली भी प्रभावित होती है, जिससे सिरदर्द ट्रिगर हो सकता है.
अवसाद : अमेरिकन स्लीप एसोसिएशन के अनुसार, नियत समय पर सोने तथा उठने की आदत, अवसाद से उबरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन अत्यधिक सोने से अवसाद के लक्षण और गंभीर हो सकते हैं.
कमर दर्द : लंबे समय तक, लगातार 9-10 घंटे सोने से पीठ पर काफी दबाव पड़ता है, जिससे कमर दर्द की समस्या हो सकती है.
मोटापा : कई अध्ययनों में यह बात सामने आयी है कि जो लोग लगातार कई वर्षों तक हर रात 9 से 10 घंटे की नींद लेते हैं, उनमें मोटापे का खतरा उन लोगों की तुलना में 21 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, जो 7-8 घंटे की नींद लेते हैं.
डायबिटीज : अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (एनआइएनडीएस) के अनुसार हाइपरसोमनिया के कारण डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है. जो लोग हर रात में नौ घंटे से अधिक सोते हैं, उनमें डायबिटीज होने की आशंका उन लोगों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक होती है, जो सात घंटे की नींद लेते हैं.
क्या है उपचार
उपचार इस पर निर्भर करता है कि हाइपरसोमनिया का प्रकार क्या है. प्राइमरी हाइपरसोमनिया में मस्तिष्क के स्लीप सिस्टम की गड़बड़ी को ठीक करने का प्रयास किया जाता है, इसके लिए दवाइयों और विभिन्न थेरेपियों का सहारा लिया जाता है. अगर सेकंडरी हाइपरसोमनिया है, तो उस समस्या का उपचार किया जाता है, जिसके कारण मरीज गहरी नींद नहीं ले पाता है.
डाइग्नोसिस : लगातार कई दिनों तक रात में 9 से 10 घंटे से अधिक सोने के बावजूद अगर आप दिन में उनींदापन महसूस करें, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं, इसका कारण हाइपरसोमनिया हो सकता है. डॉक्टर आपके सोने-उठने के समय, अवधि, खानपान की आदतों, भावनात्मक समस्याओं और स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पूछेंगे. अगर उन्हें लगता है कि समस्या गंभीर है, तो कुछ जरूरी टेस्ट कराने के लिए कहेंगे.
ब्लड टेस्ट
कम्प्यूटेड टोमोग्राफी स्कैन (सीटी स्कैन)
पोलीसोमनोग्रॉफी (स्लीप टेस्ट)
अत्यधिक गंभीर मामलों में जिनमें मस्तिष्क की विद्युतीय गतिविधियां जानना जरूरी होता है. इसके लिए इलेक्ट्रोइन्सेफैलोग्राम (इइजी) कराने की सलाह दी जाती है.
इसके अलावा नींद के दौरान हृदय की धड़कनों, सांसों और मस्तिष्क की गतिविधियों पर भी नजर रखी जाती है.

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