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नयी तकनीक और नयी वाली हिंदी की नयी चाल

शैलेश भारतवासी संपादक, हिंद युग्म हिंदी साहित्यिक प्रकाशन जगत का परिदृश्य पिछले छह-सात वर्षों में बहुत सकारात्मक तरीके से बदला है. हिंदी लिखाई और छपाई में बहुत सारी नयी आवाजों को जगह मिली है. और यह सब भारत में ई-कॉमर्स के लगातार पैर पसारने की वजह से हुआ है. इंटरनेट ने जिस तरह से अभिव्यक्ति […]

शैलेश भारतवासी
संपादक, हिंद युग्म
हिंदी साहित्यिक प्रकाशन जगत का परिदृश्य पिछले छह-सात वर्षों में बहुत सकारात्मक तरीके से बदला है. हिंदी लिखाई और छपाई में बहुत सारी नयी आवाजों को जगह मिली है. और यह सब भारत में ई-कॉमर्स के लगातार पैर पसारने की वजह से हुआ है.
इंटरनेट ने जिस तरह से अभिव्यक्ति की तमाम विधाओं को लोकतांत्रिक बनाया है, उसी तरह ई-कॉमर्स ने प्रकाशन की दुनिया में एक किस्म का लोकतंत्र स्थापित किया है. हम अपने प्रकाशन की बात करें, तो साल 2010 में हम जहां अपनी किताबों की सालभर में पांच-दस प्रतियां तक नहीं बेच पाते थे, वहीं आज 25,000 प्रतियां तक बेच लेते हैं. पाठकों तक पहुंच अब आसान हुई है.
कमाई के नये दरवाजे भी खुले हैं. हिंद युग्म की सालाना आया का कम-से-कम 25 प्रतिशत हिस्सा केवल और केवल ई-बुक की बिक्री से आता है.
भारत में भी ई-बुक का इकोसिस्टम बन गया है और यह भारतीय भाषाओं की किताबों के लिए बहुत अच्छे संकेत हैं. स्टोरीटेल और ऑडिबल (अमेजॉन की एक ऑडियो बुक निर्माता कंपनी) भी भारत में कूद चुके हैं. मुझे लगता है कि किताबों के ऑडियो (श्रवणीय रूप) में बदल जाने से भारतीय भाषाओं की किताबों की, विशेषरूप से हिंदी किताबों की पाठकीय पहुंच में गुणात्मक वृद्धि होगी.
एक समय में हमें लगता था कि जब किसी हिंदी किताब की चंद प्रतियां बेचना मुश्किल है, तो हम अपने लेखकों को लाखों की रॉयल्टी कहां से देंगे.
लेकिन, बीते पांच सालों में माहौल इतना बदला कि हिंद युग्म अपने शीर्ष पांच लेखकों को सालाना दो लाख रुपये से अधिक की रॉयल्टी देता है. और यह सब नये लेखकों और नयी लिखाइयों के आने तथा ई-कॉमर्स की मौजूदगी में एक नये किस्म के पाठकों के या यूं कहिए कि नयी वाली हिंदी के पाठकों के उदय के कारण हुआ है.
यही नहीं, अब हम थोड़ा और आगे बढ़ गये हैं. हिंद युग्म आज हिंदी दिवस के अवसर पर अपने शीर्ष लेखकों को उनकी मौजूदा किताबों के ऑडियो अधिकारों के लिए एडवांस रॉयल्टी के तौर पर 11 लाख रुपये की राशि दे रहा है. क्या यह सूचना आज से पांच साल पहले कोई हिंदी प्रकाशक दे सकता था? बिल्कुल नहीं. यह सब नयी तकनीक के साथ कदमताल करते नयी वाली हिंदी से ही संभव हुआ है. मुझे पूरी उम्मीद है, यह सिलसिला बहुत आगे तक जायेगा.

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