भ्रष्टाचार के खिलाफ एक देशव्यापी माहौल है. लगभग डेढ़ दशक बाद देश में ऐसी स्थिति बनी है. यह किस तरह के बदलाव का सूचक है?
देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बन रहा है. यह बहुत अच्छी बात है. युवा महिला एवं पुरुष जागरूक हो रहे हैं. लोग यह समझ रहे हैं कि आगे बढ़ना है तो भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिए. उन्हीं के चलते यह स्थिति बनी है. उन्हें आगे बढ़ना चाहिए. मैं हर कार्यक्रम में कहता हूं कि आप आगे बढ़ें तो भ्रष्टाचार खत्म होगा. जिनके कंधों पर भार है उन्हें आगे बढ़ना ही चाहिए.
झारखंड में मौजूदा लोकायुक्त कानून की कौन-सी सीमाएं हैं, जो उसे ज्यादा प्रभावी नहीं होने देतीं?
झारखंड का मौजूदा लोकायुक्त कानून 41 साल पुराना है. 1973 में यह बिहार में बना था. झारखंड गठन के बाद भी इसी कानून को अपनाया गया. जबकि बिहार ने 2011 में अपना नया कानून नयी परिस्थितियों के अनुरूप बना लिया. भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार के नये-नये रास्ते खोज रहे हैं. वे खुद को होशियार समझते हैं, जबकि दूसरों को बेवकूफ समझते हैं. वे व्यावहारिक सोच के होते हैं. उनके अंदर भी कहीं न कहीं अपराध बोध होता है. इसलिए वे स्वयं को जायज (जस्टिफाइ) ठहराने की कोशिश करते नजर आते हैं. ऐसे में नयी परिस्थितियों के अनुरूप कानून बनाना ही होगा. ऐसा नहीं करने पर भ्रष्टाचार रोकने में सक्षम नहीं होंगे.
झारखंड में आप एक मजबूत लोकायुक्त कानून होने की जरूरत पर लंबे समय से जोर देते रहे हैं. हाल में इस दिशा में केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने पहल की है. उन्होंने सरकार को कुछ सुझाव भी दिया है. इससे क्या उम्मीद कर सकते हैं कि राज्य में एक मजबूत लोकायुक्त कानून निकट भविष्य में बन जायेगा?
केंद्रीय मंत्री की पहल कहां तक रंग लाती है, यह आगे देखने वाली बात है. इस तरह की सूचना पब्लिक फोरम से आती है तो सरकार को अपनी कथनी-करनी में फर्क नहीं करना चाहिए. इस तरह की पहल की जानी चाहिए. अगर नहीं सोच रहे हैं, तो सोचें. केंद्र ने अभी जन लोकपाल कानून पास किया है, वह बहुत मजबूत है. राज्यसभा में एक लोकायुक्त विधेयक पेश किया गया था (जो पास नहीं हो सका), झारखंड में उसी की तर्ज पर लोकायुक्त कानून बनाने की बात चल रही है. मेरा कहना है कि जब तक आप लोकायुक्त कानून को सशक्त नहीं बनायेंगे, उन्हें (लोकायुक्त को) मामलों की सुनवाई, कार्रवाई व जांच एजेंसी की सुविधा नहीं देंगे और सिर्फ अनुशंसा की शक्ति देंगे तो कैसे भ्रष्टाचार कम होगा?
निचले स्तर का भ्रष्टाचार आम आदमी को सबसे ज्यादा परेशान करता है. जैसे ब्लॉक ऑफिस में किसी सर्टिफिकेट को बनवाने के लिए रिश्वत देना, थाने में कोई शिकायत दर्ज करवाने के लिए रिश्वत देना या किसी कार्यालय से कोई महत्वपूर्ण कागज प्राप्त करने के लिए पैसे देना. इस तरह के भ्रष्टाचार से कैसे निजात मिले?
हमारे यहां उसी तरह के भ्रष्टाचार के ज्यादा मामले आते हैं. मनरेगा में गड़बड़ी, अमीन के खिलाफ शिकायत, जन वितरण प्रणाली में गड़बड़ी, फसल बीमा योजना में अनियमितता जैसी शिकायतें ज्यादा मिलती हैं. हमने कई मामलों में अनुशंसा की है. प्राथमिकी को कहा है. निचले स्तर पर इसे रोकना होगा, क्योंकि इसके आम लोग ज्यादा शिकार हैं.
हाल में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकपाल विधेयक संसद में पारित हुआ. एक सशक्त लोकपाल आने से केंद्र से लेकर राज्य और राज्य से लेकर जिले व प्रखंड तक किस तरह के बदलाव की उम्मीद हम कर सकते हैं? ऐसी संस्थाएं आम आदमी को कितनी ताकत देती हैं?
एक सशक्त कानून के पास होने के बाद अगर सरकार उस पर पूरी तरह अमल करती है तो बहुत हद तक भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकता है. जबतक लोगों में भय नहीं होगा, तब तक भ्रष्टाचार नहीं कमेगा. भ्रष्टाचार रोकने वाली संस्थाओं को यह शक्ति मिले की वे भ्रष्टाचार के माध्यम से कमायी गयी संपत्ति को जब्त कर सकती है तो बदलाव आयेगा. अभी होता यह है कि जब भ्रष्टाचार का खुलासा होता है तो भ्रष्ट तरीके से अजिर्त संपत्ति-धन का प्रयोग वह व्यक्ति मुकदमा लड़ने में खर्च करता है.
लोकायुक्त के रूप में आपके पास किस तरह की शिकायतें आती हैं. ये शिकायतें गांवों-कस्बों के आमलोगों से जुड़े ज्यादा होते हैं या बड़े घोटालों से ज्यादा?
हमारे यहां बड़े घोटाले का मामला नहीं आता है. कुछ बड़े अधिकारियों के खिलाफ शिकायत आयी, जिस पर हमने कार्रवाई की है. अभी ज्यादा शिकायतें आमलोगों के दैनिक जीवन से जुड़े भ्रष्टाचार व परेशानियों की आती हैं.
आप भ्रष्टाचार को रोकने में महिलाओं की बड़ी भूमिका पर जोर देते रहे हैं. क्या लगता है हमारे देश में महिलाएं भ्रष्टाचार को लेकर जग चुकी हैं? उन्हें और सक्रिय कैसे किया जाये?
महिलाओं के भ्रष्ट होने का प्रतिशत काफी कम है. वे बहुत कुशलतापूर्वक कार्य का संचालन करती हैं. जनोन्मुखी कार्यो में महिलाओं की भूमिका होनी चाहिए. अभी जो योजनाएं चलायी जाती हैं, उसमें अगर महिलाओं की भूमिका तय करें तो लोगों को ज्यादा बेहतर उसका लाभ होगा.
भ्रष्टाचार की समस्या नैतिकता की समस्या है. लोग पढ़ लेते हैं. इंजीनियर, डॉक्टर, आइएएस अफसर बन जाते हैं या फिर किसी अन्य सम्मानित पेशे में चले जाते हैं. शानदान एकेडमिक रिकॉर्ड वाले लोग भी भ्रष्ट हो जाते हैं. हमारे समाज व शिक्षा के मौजूदा ढांचे में वह कौन-सी रिक्तियां हैं, जिससे ऐसे खोखले लोग देश-समाज को मिल रहे हैं?
मोरल प्वाइंट (नैतिक विषय या बिंदु) शिक्षा में होना चाहिए. बच्चों को शुरू से बताया जाना चाहिए कि उनकी समाज या राष्ट्र के प्रति क्या जिम्मेवारी है. उन्हें ऐसी शिक्षा दें कि उनमें देश प्रेम की भावना हो. बच्चों के दिमाग में नैतिकता, सामाजिक जिम्मेवारी व देशप्रेम की भावना बैठानी होगी. वर्तमान में तो ये चीजें ही पाठ्यक्रम से हट गयी हैं.
पंचायत व प्रखंड स्तर पर भ्रष्टाचार को रोकना जरूरी है. उसके लिए आपका क्या सुझाव एक न्यायविद व लोकायुक्त के रूप में है? पंचायत प्रतिनिधि कैसे इसमें अपना योगदान दें?
महिलाएं अपने अधिकारों का प्रयोग खुद नहीं करतीं. उनके पति, पिता या परिवार का कोई और सदस्य उनकी जगह काम करता है. मेरे पास ऐसे मामले आये हैं, जिसमें यह शिकायत की गयी है कि मुखिया के पति पैसे वसूल रहे हैं. हमने उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. लोगों को इंदिरा आवास तक मिलने में बहुत सारी दिक्कतें आती हैं अगर मिलता है तो कोई काम का नहीं. इन सब गड़बड़ियों को रोकने के लिए पंचायत प्रतिनिधियों, खास कर महिलाओं प्रतिनिधियों को सक्रिय करना चाहिए. महिला प्रतिनिधि अपने पॉवर का उपयोग अपने परिवार को रहीं करने दें. उन्हें अपना अधिकार व कर्तव्य समझना होगा. इसके लिए शिक्षित होना जरूरी है. एक महिला शिक्षित होगी तो पूरा परिवार शिक्षित होगा और पूरा परिवार शिक्षित होगा तो समाज शिक्षित होगा.
भ्रष्टाचार रोकने में मीडिया से किस तरह भूमिका की अपेक्षा रखते हैं?
मीडिया की भूमिका ज्यादातर नकारात्मक है. उसे सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए. अगर भ्रष्टाचार के मामले में किसी पर कार्रवाई या सजा होती है, तो उस खबर को प्रमुखता देना चाहिए. वे सकारात्मक विचार रखते हुए रचनात्मक कार्य करें. उसकी भी समाज के प्रति बड़ी जिम्मेवारी है. ध्यान रखें कि लोग सुबह सबसे पहले अखबार ही पढ़ते हैं.
अरमेश्वर सहाय
लोकायुक्त, झारखंड