सिधवलिया : गरीबी के कारण आइआइटीयन बनने का सपना टूट चुका था. किसान पिता के पास उतने पैसे नहीं थे कि वे आइआइटी कॉलेज की फीस भर सकें. लेकिन, उन्होंने सपना टूटने के बाद भी खुद को कभी टूटने नहीं दिया.
जीवन की सच्चई से सीख लेते हुए उन्होंने गरीबी को मात देने का संकल्प लिया. सामने कैरियर संवारने की चुनौती भी थी. इस कारण उन्होंने शिक्षा को ही कैरियर बनाया. आज पति-पत्नी दोनों शिक्षक हैं. पति-पत्नी के संकल्प ने आज सुदूर ग्रामीण इलाके में शिक्षा के मायने को बदल कर रख दिया है. पति-पत्नी कक्षा आठ से इंटर तक के बच्चों को सुबह और शाम आइआइटी की तैयारी कराते हैं.
वह भी नि:शुल्क. हम बात कर रहे हैं सिधवलिया प्रखंड के हरपुर कबीरपुर गांव के निवासी मो अलीशेर मियां के पुत्र मो मुसलिम खान तथा उनकी पत्नी रूबी खातून की, जो अपने गांव में दो बैचों में 60 बच्चों को नि:शुल्क तैयारी कराते हैं.
दो बैचों में करा रहे तैयारी
सुबह सात से साढ़े आठ बजे तक तथा शाम छह से आठ बजे तक बच्चों को मिशन आइआइटी के तहत गणित, रसायन शास्त्र, अंगरेजी तथा भौतिकी की तैयारी कराते हैं. बच्चों का प्रत्येक माह टेस्ट भी लेते हैं. बच्चों को इस तरह से तैयार करते हैं कि वे आइआइटी की परीक्षा में सफल हो सकें. मुसलिम 1998 में अपनी तैयारी पटना में रह कर रहा था.
परीक्षा पास भी की, लेकिन परिवार की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह आगे की पढ़ाई कर सके. खुद आइआइटीयन नहीं बन पाने के कारण मन में अफसोस जरूर हुआ, लेकिन 1999 में बिहार लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित परीक्षा पास कर शिक्षक बन गये. वह उत्क्रमित मध्य विद्यालय, सकला में पदस्थापित हुआ. इस बीच उनका निकाह रूबी खातून से हुआ. पत्नी भी 2006 में प्रखंड शिक्षक बन गयी.
मुसलिम खान के दिमाग में आगे की पढ़ाई नहीं कर पाने की बात खटक रही थी. पति-पत्नी ने वर्ष 2011 में संकल्प लिया कि क्यों नहीं गरीबी से जूझ रहे बच्चों का चयन कर उन्हें नि:शुल्क तैयारी करायी जाये, ताकि वे आगे चल कर आइआइटी, बीटेक या अन्य परीक्षाओं में सफल हो सकें. ऐसा सोच कर उन्होंने घर पर ही 60-60 बच्चों का बैच बना कर उन्हें नि:शुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया. आज उनके छात्र धनंजय तथा रूपलाल कोटा में आइआइटी की तैयारी कर रहे हैं. भरोसा है कि इलाके के युवक आनेवाले दो वर्षो के भीतर बेहतर करके दिखायेंगे.