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तलाक की अनुमति देते हुए हाईकोर्ट ने कहा-अदालत के फैसले से शादी को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता…

याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता की पत्नी वर्ष 2003 से उसके साथ नहीं रह रही है और कथित तौर पर वह आम सहमति से विवाद को सुलझाने को तैयार नहीं है जबकि व्यक्ति तलाक चाहता है और एकमुश्त गुजारा भत्ता देने को भी तैयार है

अगर शादी स्थायी रूप से टूट गयी है और उसके बने रहने की संभावना बिलकुल भी नहीं है तो ऐसे में तलाक नहीं देना विनाशकारी फैसला होगा. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने आज एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की.

हाईकोर्ट ने गुरुग्राम परिवार अदालत के फैसले के खिलाफ दाखिल एक व्यक्ति की याचिका स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की. पीटीआई न्यूज के अनुसार इस व्यक्ति की तलाक के लिए दाखिल याचिका को परिवार अदालत ने अस्वीकार कर दिया था, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का रुख किया.

जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस अर्चना पुरी की पीठ ने 20 दिसंबर 2021 को आदेश पारित करते हुए कहा, -इस केस में शादी टूट चुकी है उसके दोबारा बहाल होने के कोई आसार नहीं हैं. ऐसी स्थिति में तलाक को मंजूरी नहीं देना दोनों पक्ष के लिए खतरनाक और विनाशकारी प्रतीत होता है.

याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता की पत्नी वर्ष 2003 से उसके साथ नहीं रह रही है और कथित तौर पर वह आम सहमति से विवाद को सुलझाने को तैयार नहीं है जबकि व्यक्ति तलाक चाहता है और एकमुश्त गुजारा भत्ता देने को भी तैयार है ताकि जिंदगी को आगे बढ़ाया जा सके लेकिन पत्नी उसे स्वीकार नहीं कर रही है.

तलाक को अनुमति देते हुए हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जिसमें यह कहा गया था कि शादी जो सभी मायनों में मृत प्राय हो चुकी है और अगर पक्षकार नहीं चाहते तो अदालत के फैसले से उसे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता. विवाह में मानवीय भावनाएं शामिल हैं अगर वह सूख गयी है तो अदालत के फैसले से कृत्रिम तरीके से साथ रखने पर उनके जीवन में वसंत आने की शायद ही कोई संभावना है.

अदालत ने पति को यह आदेश दिया कि वह पत्नी के नाम पर 10 लाख रुपये की फिक्स डिपोजिट कर दे, इसके साथ ही कोर्ट ने पति को तलाक की अनुमति दी और 2015 में परिवार न्यायालय द्वारा दिये गये फैसले को निरस्त किया.

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