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मुकुल के तृणमूल में जाने की वजह और भाजपा का भविष्य, राजनीतिक विशेषज्ञों की राय में

मुकुल रॉय की तृणमूल में वापसी के बाद उनके साथ भाजपा का दामन थामने वाले कई नेता घरवापसी करेंगे.

कोलकाताः भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय के अपनी पुरानी पार्टी तृणमूल कांग्रेस में लौटने के बाद सवाल उठने लगे हैं कि बंगाल में अब भाजपा का भविष्य क्या होगा. राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि मुकुल रॉय की तृणमूल में वापसी के बाद उनके साथ भाजपा का दामन थामने वाले कई टीएमसी नेता घरवापसी करेंगे. इससे भाजपा कमजोर होगी.

विशेषज्ञों का कहना है कि बंगाल में भाजपा के 77 विधायक हैं. इनमें से 33 ऐसे हैं, जो मुकुल रॉय के बेहद खास हैं. इन सभी के बारी-बारी से तृणमूल कांग्रेस में वापसी के आसार नजर आ रहे हैं, जिससे विधानसभा में भी भाजपा की ताकत घटेगी. पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव से लेकर बहुचर्चित विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अहम रणनीतिकार रहे मुकुल रॉय ने पार्टी को शुक्रवार को जोरदार झटका दिया और टीएमसी में लौट गये.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मौजूदगी में उन्होंने तृणमूल भवन में जाकर पार्टी की सदस्यता ली. उनके साथ उनके बेटे शुभ्रांशु रॉय भी थे. अब जबकि वह भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं, तो कई ऐसी बातें हैं, जिन पर जोर-शोर से चर्चा होने लगी हैं. उनमें से मुख्य यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि मुकुल ने भाजपा से दूर हो गये.

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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वर्ष 2017 में मुकुल रॉय ने भाजपा का दामन थामा. इसके बाद से पार्टी को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने जीतोड़ मेहनत की. वह अपने समर्थक कई विधायकों और ममता बनर्जी की पार्टी के बड़े नेताओं को तोड़कर भाजपा में शामिल कराने में अहम भूमिका निभा रहे थे.

राज्य में राजनीतिक तौर पर हाशिये पर रहने वाली भाजपा को मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर स्थापित करने में मुकुल रॉय की भूमिका बहुत बड़ी थी. लेकिन, प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने हमेशा उनकी उपेक्षा की. पार्टी में महत्वपूर्ण पद देने से लेकर कार्यक्रम और बड़े फैसले तक में रॉय को किनारे रखा गया.

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प्रदेश भाजपा ने नहीं दिया सम्मान

राजनीति के जानकार कहते हैं कि बंगाल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष ने विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक कई बार मुकुल से खुलेआम टकराव वाली बातें की. मीडिया में कई ऐसे बयान दिये, जो मुकुल रॉय को खटकने वाले थे.

दो दशक तक ममता बनर्जी के विश्वास पात्र रहे मुकुल ने काफी भरोसा करके भाजपा का दामन थामा था. लेकिन, क्षेत्रीय राजनीति से ऊपर उठकर प्रदेश नेतृत्व ने उन्हें कभी वह सम्मान नहीं दिया, जो उनके जैसे धाकड़ रणनीतिकार और जमीनी पकड़ रखने वाले नेता को मिलनी चाहिए थी. इसलिए उन्हें पार्टी से किनारा करना पड़ा.

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Posted By: Mithilesh Jha

Prabhat Khabar Digital Desk
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