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Gyanvapi Case: ज्ञानवापी सर्वे रिपोर्ट पक्षकारों को उपलब्ध कराने पर सुनवाई टली, वकील रहे कार्य से विरत

वाराणसी में जिला जज की अदालत के आदेश से ज्ञानवापी में एएसआई ने बीते 24 जुलाई को सर्वे शुरू किया था. एएसआई की ओर से सर्वे रिपोर्ट के साथ ही जिलाधिकारी को सुपुर्द किए गए साक्ष्य की सूची भी अदालत में दाखिल की गई है. प्रार्थना पत्र में यह बताया गया है कि एएसआई ने सर्वे का काम कैसे किया है.

Varanasi News: वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) सर्वे रिपोर्ट वादी महिलाओं और उनके वकील को देने की मांग के प्रार्थना पत्र पर गुरुवार को आदेश आने की संभावना है. वहीं मस्जिद पक्ष की ओर से सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करने की मांग के प्रार्थना पत्र पर भी सुनवाई जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में होगी. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 18 दिसंबर को रिपोर्ट दाखिल की थी. एएसआई ने ज्ञानवापी परिसर में चार अगस्त से दो नवंबर तक किए गए सर्वे की रिपोर्ट अदालत में दाखिल की है. प्रकरण में वादी महिलाएं सीता साहू, रेखा पाठक, मंजू व्यास की ओर से अदालत में प्रार्थना पत्र देकर सर्वे रिपोर्ट उनके वकील को ई मेल के जरिए देने की मांग की गई है. हिंदू पक्ष ने जहां सर्वे रिपोर्ट की प्रति तत्काल दिए जाने का अनुरोध किया है, वहीं मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति जताई है. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि रिपोर्ट की प्रति यह शपथ पत्र लेकर दी जाए कि वह लीक नहीं की जाएगी. रिपोर्ट की मीडिया कवरेज पर भी रोक लगाने की मांग रखी गई है.

जिला अदालत के आदेश पर 24 जुलाई को सर्वे हुआ शुरू

वाराणसी में जिला जज की अदालत के आदेश से ज्ञानवापी में एएसआई ने बीते 24 जुलाई को सर्वे शुरू किया था. सर्वे, रिपोर्ट तैयार करने और उसे अदालत में दाखिल करने में 153 दिन लग गए. एएसआई की ओर से सर्वे रिपोर्ट के साथ ही जिलाधिकारी को सुपुर्द किए गए साक्ष्य की सूची भी अदालत में दाखिल की गई है. साथ ही एक प्रार्थना पत्र भी अदालत में दिया गया है, जिसमें यह बताया गया है कि एएसआई ने सर्वे का काम कैसे किया है. प्रकरण में अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद की ओर से प्रार्थना पत्र देकर सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करने की मांग की गई है. दोनों प्रार्थना पत्रों के निस्तारण के लिए जिला जज ने 21 दिसंबर की तिथि तय की है.

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हिंदू पक्ष ने बैठक में की मांग

इस बीच राजमाता अहिल्या बाई सेवा संस्थान की बैठक ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मुकदमे के पैरोकार सोहन लाल आर्य की अध्यक्षता में हुई. इसमें ज्ञानवापी परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सर्वे की रिपोर्ट की काफी व फोटोग्राफ वादी महिलाओं व उनके वकीलों को देने की मांग की गई. बैठक में वक्ताओं ने कहा कि ज्ञानवापी हो या मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर सभी जगहों पर साक्ष्य मौजूद हैं. सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना करते हुए कहा कि ज्ञानवापी के वजुखाना में मिले शिवलिंग के भी वैज्ञानिक सर्वे की याचिका का शीघ्र निस्तारण हो.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन दलीलों वाली याचिकाओं को किया खारिज

काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के संबंध में वाराणसी सिविल कोर्ट में दायर एक प्रतिनिधि मुकदमे को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच को इलाहाबाद हाईकोर्ट खारिज कर चुका है. हाईकोर्ट ने इसे लेकर कहा कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 किसी धार्मिक संरचना के कैरेक्टर की घोषणा के लिए अदालत जाने वाले पक्षों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाता है. इस टिप्पणी के साथ, न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकल न्यायाधीश पीठ ने वाराणसी में सिविल जज को हिंदू पक्ष द्वारा उस भूमि पर अपने अधिकार का दावा करते हुए दायर प्रतिनिधि मुकदमे की सुनवाई शुरू करने की अनुमति दी, जहां ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है. पूजा स्थल अधिनियम अधिसूचित होने के बाद अक्टूबर 1991 में ट्रायल कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया था. हाई कोर्ट का फैसला 15 साल बाद सुनाया गया जब अंजुमन इंतजामिया मस्जिद–ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधन समिति ने ट्रायल कोर्ट में सुनवाई पर रोक लगा दी थी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, लखनऊ ने अधीनस्थ अदालत के दो आदेशों को चुनौती दी थी.

दोनों पक्षों ने दी अपनी दलील

मस्जिद प्रबंधन समिति और यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ के अनुसार, अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद पूजा स्थल अस्तित्व में रहेगा और इसके रिलीजियस कैरेक्टर में परिवर्तन पर पूर्ण प्रतिबंध है. हालांकि, न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि चूंकि अधिनियम के तहत रिलीजियस कैरेक्टर को परिभाषित नहीं किया गया है, इसलिए विवादित स्थान की पहचान आवश्यक है, क्योंकि यह 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था और दोनों पक्षों के नेतृत्व में दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य द्वारा निर्धारित किया जा सकता है. यह देखते हुए कि वर्तमान मामले में, दोनों पक्षों द्वारा इस पर प्रति-दावा करने के मद्देनजर धार्मिक संरचना की पहचान अस्पष्ट बनी हुई है, न्यायाधीश ने कहा कि जब तक अदालत फैसला नहीं सुना देती, विवादित पूजा स्थल को मंदिर या मस्जिद नहीं कहा जा सकता.

मामले को लेकर हाईकोर्ट ने क्या कहा

पीठ ने यह भी कहा कि 1991 के अधिनियम की धारा 4 की उपधारा 3 में कुछ ऐसे मामलों का जिक्र है जिनमें पक्ष अपनी शिकायत के निवारण के लिए अदालत का रुख कर सकते हैं. उप-धाराओं में से एक-उप-धारा 3 (डी)-अधिनियम के तहत अपवादों में से एक है जो अदालत को ऐसे मामले की सुनवाई करने की अनुमति देती है जहां अधिनियम के शुरू होने से बहुत पहले धार्मिक रूपांतरण हुआ हो. यदि किसी पक्ष ने अधिनियम के प्रारंभ होने से पहले ऐसे रूपांतरण को अदालत में चुनौती नहीं दी है, तो वे भविष्य में भी ऐसा कर सकते हैं.अदालत ने कहा कि 1991 का अधिनियम इसके लागू होने के बाद पूजा स्थल पर अपना अधिकार मांगने या किसी पूजा स्थल के रिलीजियस कैरेक्टर को परिभाषित करने के लिए अदालतों में जाने वाले पक्षों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है.

काशी-ज्ञानवापी विवाद में सुनवाई होना जरूरी

न्यायाधीश ने महसूस किया कि काशी-ज्ञानवापी विवाद में सुनवाई होना आवश्यक है क्योंकि किसी स्थान का दोहरा धार्मिक पहचान नहीं हो सकता. अदालत ने कहा कि या तो वह स्थान मंदिर है या मस्जिद. इसलिए धार्मिक पहचान का निर्धारण करते समय संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर का साक्ष्य लिया जाना आवश्यक है. पीठ ने ट्रायल कोर्ट को मामले के महत्वपूर्ण महत्व को देखते हुए जल्द से जल्द छह महीने के भीतर मामले का फैसला करने का निर्देश दिया.

ट्रायल कोर्ट को किसी भी पक्ष को नहीं देना चाहिए अनावश्यक स्थगन

अदालत ने आदेश दिया कि मुकदमे में उठाया गया विवाद अत्यंत राष्ट्रीय महत्व का है. यह दो अलग-अलग पार्टियों के बीच का मामला नहीं है. इसका असर देश के दो प्रमुख समुदायों पर पड़ता है. 1998 से चल रहे अंतरिम आदेश के कारण मुकदमा आगे नहीं बढ़ सका. राष्ट्रीय हित में, यह आवश्यक है कि मुकदमा तेजी से आगे बढ़े और बिना किसी टाल-मटोल की रणनीति का सहारा लिए दोनों प्रतिस्पर्धी पक्षों के सहयोग से अत्यधिक तत्परता से निर्णय लिया जाए. इसमें आगे कहा गया कि ट्रायल कोर्ट को किसी भी पक्ष को अनावश्यक स्थगन नहीं देना चाहिए. अदालत ने कहा कि यदि स्थगन मांगा गया तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.

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