दो घंटे से भी अधिक समय तक कादा-मिट्टी के अंदर फंसे हुए थे. हालांकि मूसलाधार बारिश की वजह से ही वह आज जीवित बचे हैं. पानी के स्रोत में उनका सिर उपर उठ गया और उन्हें बचा लिया गया. लगातार बारिश व भूस्खलन के बाद लिंबूधूरा ग्राम प्राय: विलुप्त के कगार पर है. भरत का मकान भी पूरी तरह उजड़ चुका है और भूस्खलन के भेंट चढ़ चुका है. उनकी पत्नी रेवती, छोटे लड़के की पत्नी रोदा व पोता तनिश भी फिलहाल उनके साथ नहीं हैं. उनका ठिकाना इस समय मिरिक का राहत शिविर है. वहीं, भरत का ठिकाना इन दिनों मिरिक अस्पताल है. कालरात्रि बनकर आयी उस मंगलवार की रात को याद कर भरत कंपकंपा उठते हैं.
कई घंटे वह अचेत पड़े थे यह उन्हें नहीं मालूम. केवल यह याद है कि वह कैसे भूस्खलन के बाद मलबे फंसते चले जा रहे थे. उस रात भयंकर बारिश की वजह से उनकी और परिवार के सभी सदस्यों की नींद उड़ी हुई थी. किसी भी समय आफत आने की आशंका से भरत सबों को साथ लेकर घर में रात तीन बजे बातचीत कर रहे थे. कई बार घर से बाहर निकलकर आकाश की परिस्थिति देखने की कोशिश करते. किसी भी कीमत पर बारिश रुकने का नाम नहीं ले रहा था. बाद में सुबह की अपेक्षा करते हुए घर से सटे दूकान की चौकी पर ही वह सौ गये. इसके बाद की भरत व उनके परिवार पर क्या आफत गिरी उन्हें याद नहीं. अस्पताल के बेड पर पड़े वयोवृद्ध भरत आज अपनी स्थिती पर केवर रोने को विवश हैं. हाथ-पांव, पिठ व शरीर के कई जगहों पर गंभीर चोटे के निशान भी हैं. कई जगहों पर सिलाई भी पड़ी है. इसी अवस्था में उन्होंने कहा कि एक ही रात में सब आफत उनपर एक साथ गिरी. चौकी के साथ ही वह और उनकी पत्नी एक साथ भूस्खलन के कारण मलबे में फंसते चले जा रहे थे.
तभी एक अलग तरह के आतंक से वह कंपकंपा उठे. इसके बाद उन्हें कुछ भी याद नहीं रहा. अस्पताल में उन्हें स्थानीय ग्रामीण एवं राहत दल के लोगों ने भरती कराया था. भरत के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा दो लड़का और एक लड़की है. लड़की की शादी हो गयी है. बड़ा लड़का और उसकी पत्नी पोते की परीक्षा के लिए बाहर गये हुए हैं. आफत की रात के समय छोटा लड़का नहीं था. घर में केवल चार जन ही थे. सौभाग्यवश चारों जन ही बच गये हैं. अस्पताल में इस अधेड़ को देखकर सबों के जुबान पर केवल एक ही बात है ‘जाके राखो साईयां, मार सके न कोय’.