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सिंगूर मामले में राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका

सिंगूर मामले में राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से भी झटका लगा है.

सिंगूर में नैनो कार का कारखाना लगाना चाह रहा था टाटा समूह, पर विरोध के कारण कारखाना नहीं लग सका

संवाददाता, कोलकाता

सिंगूर मामले में राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से भी झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थ के फैसले को बरकरार रखते हुए राज्य सरकार को टाटा को भारी भरकम मुआवज़ा देने का निर्देश दिया है. यह मामला शुक्रवार को न्यायमूर्ति पी नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया. राज्य के वकील कपिल सिब्बल को अपनी दलीलें देते हुए न्यायाधीशों ने कड़ी फटकार लगायी. अंत में टाटा समूह को मुआवज़ा देने का विरोध करनेवाली राज्य सरकार की अर्जी खारिज कर दी गयी. यानी, राज्य को न्यायाधिकरण के आदेश के अनुसार टाटा समूह को 766 करोड़ रुपये मुआवज़ा देना होगा. 2006 में तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने लखटकिया कार नैनो के निर्माण के लिए एक कारखाना बनाने के लिए सिंगूर में लगभग एक हज़ार एकड़ कृषि भूमि का अधिग्रहण किया था. राज्य की तत्कालीन विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने सिंगूर में बहु-फसलीय भूमि को कारखानों के निर्माण के लिए सौंपे जाने का विरोध करते हुए भूमि आंदोलन चलाया था. इस आंदोलन के कारण बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार को पीछे हटना पड़ा था. टाटा समूह को सिंगूर छोड़ना पड़ा, क्योंकि वे कारखाना नहीं बना सके. इसी सिंगूर आंदोलन के आधार पर 2011 में तृणमूल कांग्रेस भारी जनसमर्थन के साथ बंगाल की सत्ता में आयी और वामपंथियों के 34 साल के शासन का अंत हुआ.

इस आंदोलन के परिणामस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सिंगूर की ज़मीन किसानों को वापस कर दी गयी. इसके बाद टाटा समूह ने मुआवज़े की मांग करते हुए एक मुकदमा दायर किया. 2023 में टाटा मोटर्स और पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड के बीच चल रहे मामले के समाधान के लिए अदालत ने एक मध्यस्थ नियुक्त किया. राज्य के वकील कपिल सिब्बल ने तीन सदस्यीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण के एक सदस्य पर पक्षपात का आरोप लगाया. उन्होंने दावा किया कि तीन सदस्यीय मध्यस्थों में से एक को टाटा के निमंत्रण पर 15 बार नागपुर जाते देखा गया था. हालांकि मध्यस्थता समाप्त होने के बाद निमंत्रण मिलने के बाद भी वह नहीं गये.

टाटा समूह की ओर से वकील मुकुल रोहतगी ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि एक न्यायाधीश पर इस तरह के आरोप कैसे लगाये जा सकते हैं? ” उन्होंने मांग की कि याचिका तुरंत खारिज की जाये और राज्य को जुर्माना देने का निर्देश दिया जाये. इसके बाद कपिल सिब्बल ने अपने दावे के समर्थन में अदालत में कुछ दस्तावेज़ पेश किये.

न्यायाधीशों ने सख्ती से कहा कि अगर किसी भी तरह से यह समझा जाता है कि यह दावा अनुचित है, तो राज्य पर भारी जुर्माना लगाया जायेगा. तब राज्य के वकील ने दस्तावेज़ वापस ले लिया. खंडपीठ ने उन्हें फटकार लगाने के बाद राज्य की याचिका खारिज कर दी. अब राज्य को टाटा को 766 करोड़ रुपये का मुआवज़ा देना होगा.

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