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लोकतंत्र पर मंडरा रहा है खतरा : लवासा

विचार गोष्ठी में अपनी राय रखते वक्ता. साथ में अन्य.

संवाददाता, कोलकाता संस्कृति सौरभ द्वारा शनिवार को भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता में आयोजित विचार गोष्ठी लोकतंत्र का भविष्य : सवालों के घेरे में देश के पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे. अपने संबोधन में उन्होंने भारत सहित विश्व के कई देशों के लोकतंत्र पर मंडरा रहे खतरे की ओर ध्यान आकर्षित किया. श्री लवासा ने कहा कि दुनिया भर में लोकतंत्र की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है, और भारत भी इससे अछूता नहीं है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भारत की स्थिति अब भी कई विकसित देशों से बेहतर है, क्योंकि यहां अब तक 18 आम चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुए हैं और सत्ता का हस्तांतरण लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से हुआ है. उन्होंने देश के चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर चिंता जताते हुए कहा : आज देश में लोगों का चुनाव आयोग पर पहले जैसा भरोसा नहीं रहा. एक समय था जब जनता का सबसे अधिक विश्वास इसी संस्था पर था. पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा कि आजादी के बाद भारत में जब पहली बार चुनाव हुए, तब सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार दिया गया था. उन्होंने बताया कि जहां ब्रिटेन में महिलाओं को मतदान का अधिकार पाने में लगभग 150 वर्ष लगे और अमेरिका में भी यह प्रक्रिया लंबी रही, वहीं भारत ने पहले ही आम चुनाव से यह अधिकार सभी नागरिकों को दे दिया था, जबकि उस समय साक्षरता दर मात्र 15 प्रतिशत थी. श्री लवासा ने कहा कि सरकारी नौकरी या सिविल सेवा के लिए पढ़ाई आवश्यक है, लेकिन जो लोग देश का कानून बनाते हैं, उनके लिए शिक्षा की कोई शर्त क्यों नहीं है? उन्होंने डॉ भीमराव आंबेडकर के लेखों का उल्लेख करते हुए कहा कि अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में चुनाव सुधारों की बात नहीं की है. उन्होंने सवाल उठाया कि देश के राजनीतिक दल आखिर हैं क्या- ट्रस्ट, कंपनी या सोसाइटी? इस संबंध में कानून में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है. साथ ही, उन्होंने इलेक्ट्रोरल बॉन्ड योजना पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी राजनीतिक पार्टी को दिया गया चंदा टैक्स फ्री हो जाता है, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं. श्री लवासा ने यह भी कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून के दायरे में राजनीतिक दल नहीं आते, इसलिए उनसे कोई जानकारी मांगी जाये, तो वे देने से इनकार कर सकते हैं. उन्होंने देश की विचार व्यवस्था और राजनीतिक पारदर्शिता पर भी गंभीर प्रश्न उठाये. इस सत्र में विजय कानोड़िया, बिमल नौलखा समेत कई गणमान्य व्यक्ति श्री लवासा के साथ मंच पर उपस्थित थे.

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