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Corona warriors : बेंगलुरु में फंसे हजारों प्रवासी मजदूरों के लिए मददगार बने कर्नाटक आइजी सीमांत सिंह

लॉकडाउन के दौरान कई स्थानों पर जहां पुलिस की ज्यादतियों के आरोप लगे हैं, वहीं कई स्थानों पर पुलिस सेवा की मिसाल भी सामने आयीं हैं. ऐसे ही एक पुलिस अधिकारी हैं सीमांत सिंह. कर्नाटक स्टेट पुलिस के आइजी (एडमिनिस्ट्रेशन) सीमांत सिंह ऐसा भागीरथ कार्य कर रहे हैं, जो देश भर की पुलिस के लिए मिसाल बन रही है.

आनंद कुमार सिंह

कोलकाता : लॉकडाउन के दौरान कई स्थानों पर जहां पुलिस की ज्यादतियों के आरोप लगे हैं, वहीं कई स्थानों पर पुलिस सेवा की मिसाल भी सामने आयीं हैं. ऐसे ही एक पुलिस अधिकारी हैं सीमांत सिंह. कर्नाटक पुलिस के आइजी (एडमिनिस्ट्रेशन) सीमांत सिंह ऐसा भागीरथ कार्य कर रहे हैं, जो देश भर की पुलिस के लिए मिसाल बन रही है. यह प्रयास एक निरीह से फोन कॉल के जरिये शुरू हुआ. श्री सिंह ने बेंगलुरु में फंसे झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के हजारों मजदूरों को भोजन की व्यवस्था किये हैं.

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Corona warriors : बेंगलुरु में फंसे हजारों प्रवासी मजदूरों के लिए मददगार बने कर्नाटक आइजी सीमांत सिंह 2

दरअसल गत 30 मार्च को बेंगलुरु में फंसे 400 मजदूरों ने मदद के लिए हाथ-पांव मारना शुरू किया था. उनके पैसे खत्म हो गये थे. उनके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं था. उनके सामने जीने-मरने का सवाल आ गया था. मजदूरों में से कुछ ने पटना फोन किया. फोन करके उन्होंने अपनी व्यथा सुनायी. पटना में उनके लोगों ने इधर-उधर फोन करना शुरू किया और एक प्रभावशाली व्यक्ति के पास उनकी बात पहुंची. उस व्यक्ति ने सीमांत सिंह को फोन किया तथा उन मजदूरों की मदद करने का अनुरोध किया. श्री सिंह ने उन सभी 400 मजदूरों के भोजन की व्यवस्था की और सभी को 21-21 दिनों के राशन का पैकेट भी दे दिया. यह बात जल्द ही मजदूरों में फैल गयी. एक मजदूर से दूसरे मजदूर तक उनका फोन नंबर पहुंच गया. फिर क्या था, उनके पास मदद के लिए फोन आना शुरू हो गये.

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सीमांत सिंह ने पुलिस के जरिये मजदूरों की मदद करनी शुरू की. देखते ही देखते फोन की तादाद सैकड़ों में पहुंच गयी. अब रोजाना करीब 300 फोन श्री सिंह के प्राइवेट नंबर पर आते हैं. अधिकांश को यह पता तक नहीं रहता कि वह फोन किसे कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि यह एक हेल्पलाइन नंबर है. श्री सिंह बताते हैं कि दूसरे राज्यों से आये मजदूरों के लिए कुछ दिनों तक तो स्थानीय भोजन सही था, लेकिन वह इसके आदी नहीं थे. वह चाहते थे कि उन्हें राशन मिल जाये, तो उसे वह खुद ही पका लें. श्री सिंह ने उनकी यह इच्छा पूरी कर दी. अब श्री सिंह के इस अभियान में आइटी सेक्टर से लेकर अन्य संस्थान के अलावा आमलोग भी सामने आ रहे हैं. वह कहते हैं कि 14 वर्षीय एक बच्ची अपनी सोसाइटी से रोजाना राशन के 40 पैकेट इकट्ठा करके उन्हें सौंपती है.

हालत तो यह हो गयी है कि हेल्पलाइन नंबर समझ कर अब श्री सिंह के पास केरल, गुजरात, बिहार आदि से भी फोन आ रहे हैं. लोग अधिकारपूर्वक मदद की मांग कर रहे हैं, लेकिन श्री सिंह किसी को निराश नहीं करते. आइपीएस के अपने बैचमेट अधिकारियों के पास मदद की उन अनुरोध को वह भेज देते हैं. दूसरे राज्यों में भी अब मदद वह कर पा रहे हैं. श्री सिंह कहते हैं कि बेंगलुरु में मदद करने वालों की कमी नहीं है, लेकिन उन्हें नहीं पता कि मदद कहां करे. मजदूर इतने फैले हुए हैं कि उन्हें ढूंढ निकालना मुश्किल है. शहर में करीब एक लाख मजदूर हैं. अधिकतर निर्माण उद्योग के श्रमिक या सिक्योरिटी गार्ड हैं. उन्हें स्थानीय भाषा की भी समझ नहीं है. मदद करने वालों के लिए श्री सिंह का सिस्टम कारगर साबित हो रहा है. श्री सिंह विभिन्न पुलिस थानों की मदद से राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं. अब तक 40 हजार श्रमिकों तक वह मदद पहुंचा चुके हैं.

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