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एसआइआर की समय-सीमा बढ़ते ही गरमायी राज्य की सियासत

तृणमूल ने आयोग को भाजपा का हथियार कहा, वामो व कांग्रेस ने क्षमता पर उठाये सवाल

तृणमूल ने आयोग को भाजपा का हथियार कहा, वामो व कांग्रेस ने क्षमता पर उठाये सवाल

संवाददाता, कोलकाता

चुनाव आयोग द्वारा एसआइआर प्रक्रिया की समय-सीमा सात दिन बढ़ाये जाने के फैसले ने राज्य की राजनीति को गर्म कर दिया है. तृणमूल कांग्रेस ने सबसे तीखी प्रतिक्रिया दी. पार्टी प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने आरोप लगाया कि आयोग भाजपा के दबाव में काम कर रहा है और समय-सीमा बढ़ाने का फैसला भाजपा की विफलता को छिपाने का प्रयास है. उन्होंने कहा कि भाजपा के लक्ष्य पूरे नहीं हुए, इसलिए आयोग को दिशा बदलनी पड़ी. मीडिया से बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग को भाजपा का राजनीतिक औजार बना दिया गया है.

वहीं, माकपा के प्रदेश सचिव मोहम्मद सलीम ने भी आयोग की योजना और क्षमता पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह निर्णय आयोग की तैयारी और निगरानी तंत्र की कमजोरी दिखाता है. उनके अनुसार आयोग जमीनी हालात समझने में नाकाम रहा और नेतृत्व देने में भी विफल है. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि बंगाल जैसे जटिल भूगोल वाले राज्य में इतनी कम समय-सीमा अ व्यावहारिक थी. उन्होंने इसे आयोग की कागजी समझदारी करार दिया. वहीं, भाजपा ने आयोग के फैसले का समर्थन किया है. केंद्रीय मंत्री डॉ सुकांत मजूमदार ने कहा कि आयोग ने जो उचित समझा, वही किया. उन्होंने यह भी कहा कि जरूरत पड़ने पर समय-सीमा दो साल तक बढ़ायी जा सकती है और यदि इस दौरान चुनाव न हो सकें और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो, तो भाजपा को आपत्ति नहीं होगी. इसी बीच, आयोग ने नयी समय सीमाएं जारी की हैं.

अब एनुमरेशन फॉर्म अपलोड करने की अंतिम तिथि चार दिसंबर से बढ़ाकर 11 दिसंबर कर दी गयी है. नौ दिसंबर को जारी होने वाली ड्राफ्ट वोटर लिस्ट अब 16 दिसंबर को आयेगी. दावे और आपत्तियां 15 जनवरी तक स्वीकार किए जायेंगे. इनकी जांच सात फरवरी तक पूरी कर अंतिम मतदाता सूची 14 फरवरी को प्रकाशित की जायेगी. हालांकि आयोग ने समय बढ़ाने की वजह स्पष्ट नहीं की, लेकिन सूत्रों के अनुसार 12 राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों में एसआइआर कार्य बेहद असमान गति से चल रहा है.

कई राज्यों में डिजिटाइजेशन धीमा है. कर्नाटक और पुडूचेरी में चक्रवात से बीएलओ बाधित हुए हैं, जबकि केरल में पंचायत चुनावों ने प्रशासनिक संसाधनों पर दबाव डाला है. उत्तर प्रदेश में 100 प्रतिशत फॉर्म वितरण के बावजूद डिजिटाइजेशन काफी पीछे है. इसके मुकाबले पश्चिम बंगाल में कार्य अपेक्षाकृत तेज बताया जा रहा है. बीएलओ संघ का कहना है कि वे काम के बढ़ते बोझ और डिजिटल प्रक्रियाओं की जटिलता को देखते हुए समय बढ़ाने की मांग कर रहे थे. अब उनकी मांग आंशिक रूप से पूरी हुई है. आयोग ने राज्यों को बूथ स्तर पर नियमित कार्य जारी रखने को कहा है. सभी की निगाह इस पर है कि नयी समय-सीमा के भीतर धीमे राज्यों में कार्य गति पकड़ता है या एसआइआर प्रक्रिया फिर किसी देरी की ओर बढ़ती है.

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