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संकट में है उत्तर बंगाल की पारंपरिक मूर्ति निर्माण कला

मालदा : बंगाल के दुर्गोत्सव के शुरु होने में अब दो सप्ताह ही रह गये हैं. संपूर्ण राज्य इस उत्सव के लिये बेसब्री से इंतजार कर रहा है. लेकिन दूसरी ओर इस उत्सव के मूल कारीगर मूर्तिकारों के जीवन में वह उत्साह और उमंग देखने में नहीं आ रहा है. बल्कि तेज होती महंगाई और […]

मालदा : बंगाल के दुर्गोत्सव के शुरु होने में अब दो सप्ताह ही रह गये हैं. संपूर्ण राज्य इस उत्सव के लिये बेसब्री से इंतजार कर रहा है. लेकिन दूसरी ओर इस उत्सव के मूल कारीगर मूर्तिकारों के जीवन में वह उत्साह और उमंग देखने में नहीं आ रहा है. बल्कि तेज होती महंगाई और पर्याप्त दाम नहीं मिलने के चलते मूर्तिकारों के जीवन में घोर निराशा छा रही है. यह निराशा इतनी ज्यादा है कि मूर्तिकार अपने पारंपरिक पेशे को छोड़कर फास्ट फुड और वाहन परिचालन जैसे पेशे अपना रहे हैं.
इन मूर्तिकारों का कहना है कि महंगाई के चलते प्रतिमा निर्माण के लिये जरूरी सामग्रियों की कीमत काफी बढ़ गयी है. लेकिन उस अनुपात में उन्हें मूर्तियों के दाम नहीं मिल रहे हैं. पूजा कमेटियां उन्हें पर्याप्त दाम देना नहीं चाह रहे हैं. इसलिये अब वे घाटे का सौदा करना नहीं चाहते हैं.
जिले के मूर्तिकारों का कहना है कि विभिन्न क्लब और पूजा कमेटियां मूर्तियों के लिये अधिक दाम देने को तैयार नहीं हैं.
जबकि मूर्ति निर्माण के लिये जरूरी मिट्टी, सोला की सजावटी सामग्री और रंग आदि के मूल्य बहुत ज्यादा बढ़ गये हैं. तीन माह तक हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी अगर उन्हें मूर्तियों की उचित कीमत नहीं मिलती है तो फिर उनका निर्वाह कैसे होगा. इसलिये वे अब फास्ट फुड या टोटो चलाने लगे हैं.
उल्लेखनीय है कि मालदा थानांतर्गत साहापुर के विख्यात मूर्तिकार राजू पाल फास्ट फुड चला रहे हैं. इनके अलावा शहर के निवासी परेश बर्मन, बापी दास, उत्तम राजवंशी जैसे मूर्तिकारों ने भी मूर्ति निर्माण छोड़कर अब अन्य पेशों को अपना चुके हैं. यहां तक कि बाचामारी की गृहिणियां जैसे कुंतीपाल, राधारानी पाल और प्रतिमा पाल ने मूर्ति निर्माण का काम छोड़कर अपने घर संसार में ध्यान दे रही हैं.

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