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पिता -पुत्र के झगड़े पर बीजेपी की कड़ी निगाह, नफा होगा या नुकसान?

नयी दिल्ली : सपा परिवार में जारी गतिरोध को बीजेपी एक अवसर व चुनौती दोनों के रूप में देख रही है. अब जब चुनाव आयोग ने साइकिल चुनाव चिह्न अखिलेश को दिया है तो यूपी की राजनीति एक दिलचस्प मोड़ पर आकर खड़ी हो गयी है. सत्ताधारी पार्टी सपा दो फाड़ में बंट चुकी है. […]

नयी दिल्ली : सपा परिवार में जारी गतिरोध को बीजेपी एक अवसर व चुनौती दोनों के रूप में देख रही है. अब जब चुनाव आयोग ने साइकिल चुनाव चिह्न अखिलेश को दिया है तो यूपी की राजनीति एक दिलचस्प मोड़ पर आकर खड़ी हो गयी है. सत्ताधारी पार्टी सपा दो फाड़ में बंट चुकी है. माना जा रहा है कि असली लड़ाई अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच होगी. हालांकि अखिलेश को परिवार के बाहर और अंदर भी लड़ाई करनी होगी. बेशक अखिलेश की छवि अच्छी है लेकिन क्या वह यादव वोटों के बीच उस तरह का पैठ बना पायेंगे जैसी पैठ मुलायम सिंह यादव की थी?

भाजपा मुलायम समर्थक वोटों व नेताओं को अपने खेमे में लाने की पूरी कोशिश कर सकती है. ध्यान देने वाली बात है कि अब भाजपा की नजर अखिलेश यादव द्वारा जारी उम्मीदवारों पर होगी. इन उम्मीदवारों को हराने के लिए भाजपा मुलायम गुट के स्थानीय नेैताओं का तलाश में हैं. अखिलेश अगर कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करते हैं तो मुसलिम वोट अखिलेश के पक्ष में हो सकते हैं. इस स्थिति में अखिलेश की जीत की संभावना बढ़ सकती है.

2002 के चुनाव में भाजपा को88 सीट हासिल हुई थी वहीं 20 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे. 2012 आते -आते भाजपा के वोटों का प्रतिशत 15 प्रतिशत हो गया. यूपी मेंयादव सबसे बड़े वोट बैंक हैं. वहीं अल्पसंख्यकों का वोट 19.3 प्रतिशत है. भाजपा की नजर अगड़ी जाति की वोटों पर होगी. यूपी में अगड़ी जाति को वोटरों की संख्या 22 प्रतिशत है. वहीं हिन्दू ओबीसी वोटों की संख्या करीब 21 प्रतिशत है.

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