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Azadi ka Amrit Mahotsav: बिठूर से फूटी थी आजादी की क्रांति, 1857 की क्रांति का सच दिखाती है ये जगह

Azadi ka Amrit Mahotsav: बता दें कि सन 1818 में नाना साहब ने अंग्रेजों से सीधा मोर्चा लेने के लिए यहाँ पर आए और उन्होंने अपनी सेना को बल के साथ खड़ा करना शुरु कर दिया था. इतिहासकार बताते है कि नाना राव पेशवा ने 1857 की क्रांति का बिगुल यही से फूंका था.

Azadi ka Amrit Mahotsav: पूरा देश आजादी के अमृत महोत्सव को बड़े ही धूम धाम से मना रहा है. देश को आजाद हुए 75 साल हो गए हैं. वहीं आज हम आपको बताएंगे देश की आजादी में क्रांतिकारियों के अहम योगदान को. कानपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर बिठूर स्थित है जो कि क्रांतिकारियों की धरती और रानी लक्ष्मी बाई की जन्मस्थली से भी जाना जाता है. बिठूर में ही रानी लक्ष्मी बाई ने युद्ध कौशल और घुड़सवारी सीखी. यह वही बिठूर है जहाँ पर नाना साहब ने अंग्रेजों को खूब तंग किया था. बता दें की बिठूर अपने आप में धार्मिकस्थल के साथ ही साथ क्रातिकारियों के इतिहास को भी समेटे है.

1818 में लिया था नाना साहब ने मोर्चा

बता दें कि सन 1818 में नाना साहब ने अंग्रेजों से सीधा मोर्चा लेने के लिए यहाँ पर आए और उन्होंने अपनी सेना को बल के साथ खड़ा करना शुरु कर दिया था. इतिहासकार बताते है कि नाना राव पेशवा ने 1857 की क्रांति का बिगुल यही से फूंका था.1 जुलाई 1857 को नाना साहब ने खुद को पेशवा भी घोषित किया था. और अंग्रेजो को कानपुर से खदेड़ कर भगाया था. इसमें उनका साथ वीर योद्धा तात्या टोपे और अजीमुल्ला खा ने दिया था.

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बिठूर में आज भी क्रातिकारियों के क़िले के अवशेष

बता दें कि बिठूर में नाना राव पेशवा के किले के अवशेष आज भी है वही बिठूर में तात्या टोपे संग्रहालय में पुराने हथियार भी है साथ ही गणेश मंदिर के पास में तात्या टोपे का किला है और नाना राव पेशवा की याद में बना स्मारक पार्क भी है जिसमें क्रातिकारियों के समय का एक कुआं भी मौजूद है इसी कुए में जब बिठूर में अंग्रेजों ने आक्रमण किया था उस समय महिलाए बच्चों के साथ कुए में कूद गई थीं. इसी कुए के पास रानी लक्ष्मीबाई ने घुड़सवारी,तीरंदाजी और तलवारबाजी सीखी थी.

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