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Live-in में रह रही शादीशुदा महिला को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, संरक्षण देने से कोर्ट का इनकार, इतने का लगाया जुर्माना

लिव इन रिलेशन (Live in Relation) में रह रही शादी शुदा महिला को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. अपने फैसले में हाईकोर्ट ने महिला को पहले संरक्षण देने से इनकार कर दिया. उसके बाद उसकी याचिका भी खारिज कर दी. यहीं नहीं, हाईकोर्ट ने याची पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया. Allahabad high court, UP News, live in relation refuse to provide security, High Court Decision.

  • लिव इन में रह रही शादीशुदा महिला को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिला को संरक्षण देने से किया इनकार

  • हाईकोर्ट ने याची पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया

लिव इन रिलेशन (Live in Relation) में रह रही शादी शुदा महिला को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. अपने फैसले में हाईकोर्ट ने महिला को पहले संरक्षण देने से इनकार कर दिया. उसके बाद उसकी याचिका भी खारिज कर दी. यहीं नहीं, हाईकोर्ट ने याची पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया.

यह फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस केजे ठाकर और जस्टिस दिनेश पाठक की खंडपीठ ने दिया है. कोर्ट ने कहा है कि, हम ऐसे लोगों को संरक्षण देने का आदेश कैसे दे सकते हैं जिसने कानून और हिन्दू मैरेज एक्ट का खुलेआम उल्लंघन किया है. कोर्ट का यह भी कहना है कि अनुच्छेद 21 सभी नागारिकों को जीवन की स्वतंत्रता का अदिकार देता है. लेकिन, यह स्वतंत्रता कानून के दायरे में होनी चाहिए, तभी संरक्षण मिल सकता है.

बता दें, यह मामला यूपी के अलीगढ़ की गीता से जुड़ा है. गीता ने कोर्ट में मामला दायर करते हुए कहा है कि वो अपनी मर्जी से अपने पति को छोड़कर लिव इन में दूसरे शख्स के साथ रह रही है. उसका आरोप है कि उसके पति और ससुराल के लोग उसकी शांतिमय जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं. इसको लेकर उसने कोर्ट में एक अर्जी दी थी. जिसपर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है.

महिला की याचिका पर हाई कोर्ट ने कहा कि याची वैधानिक रूप से शादीशुदा है. यदि किसी कारण वो अपने पति से अलग किसी और व्यक्ति के साथ रह रही है तो क्या ऐसी स्थिति में उसे अनुच्छेद-21 का लाभ मिल सकता है? कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि महिला के पति ने प्रकृति विरुद्ध अपराध किया है, तब ऐसी स्थिति में याची महिला को प्राथमिकी (377 आइपीसी के तहत) दर्ज करानी थी. लेकिन महिला ने ऐसा नहीं किया.

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Posted by: Pritish Sahay

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