चक्रधरपुर.चक्रधरपुर प्रखंड की होयोहातु पंचायत के दाड़कादा में ऐतिहासिक दुनुब(सभा) का आयोजन किया गया. दुनुब में में बोंगा-बुरु (पारंपरिक प्रथा), दोस्तूर (स्वशासन प्रणाली, नेग-नियम) और हो भाषा (वारंग क्षिति लिपि ) संरक्षण और संवर्धन पर गहन चर्चा की गयी. जिसमें 14 मौजा (गांवों) के प्रतिनिधि, हो समाज के बुद्धिजीवी, दियुरी-पहणा, मानकी-मुंडा, कानूनविद समेत 500 से अधिक हो समुदाय के लोग शामिल हुए. हो समाज के इस दुनुब में हो की स्वशासन प्रणाली (मनकी-मुंडा सिस्टम) और भारतीय संविधान के सामंजस्य पर भी गहन चर्चा हुई. मौके पर आदिवासी हो समाज के विद्वान दामोदर सिंह हिसदा ने हो समाज की सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए युवाओं को आगे आने का आह्वान किया. साहित्यकार डोबरो बुड़ीउली ने दोस्तूर की नैतिकता और आधुनिक संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला. हो भाषा को शिक्षा और दैनिक जीवन में बढ़ावा देने पर जोर दिया. ,
मानकी-मुंडा प्रणाली लोकतंत्र का मूल रूप
सुरेश चंद्र सोय ने कहा कि हमारी मानकी-मुंडा प्रणाली लोकतंत्र का मूल रूप है. इसे संविधान के साथ जोड़कर ही हम आदिवासी अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं. वहीं, लादुरा सुम्बरूई ने बोंगा-बुरु की परंपराओं को निभाने में समुदाय की सक्रिय भूमिका की आवश्यक बतायी. दुनुब में अंततः हो भाषा को स्कूली पाठ्यक्रम और डिजिटल माध्यमों से जोड़ने, दोस्तूर प्रणाली को स्थानीय स्वशासन में मजबूती से लागू करने, प्रत्येक मौजा में सांस्कृतिक जागरूकता अभियान चलाने का निर्णय लिया. कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों ने “हमारी विरासत, हमारी पहचान ” के सिद्धांत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया.
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