सरायकेला.
कुड़मी को एसटी में शामिल करने के विरोध में सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग को लेकर मांझी परगना महाल, सिंह दिशोम परगना के नेतृत्व में जिला मुख्यालय में प्रदर्शन किया गया. आदिवासियों ने हाथ में तख्ती लेकर नारे लगाये और राष्ट्रपति के नाम डीसी को ज्ञापन सौंपा. ज्ञापन में कहा कि कुड़मी के एसटी में शामिल करने की मांग निराधार है. कहा कि कुड़मी कभी आदिवासी नहीं थे. कुड़मी का आदिवासी समाज की परंपरा, रीति-रिवाज, पूजा पद्धिति, धर्म संस्कृति से मेल नहीं खाता है. जनजाति शोध संस्थान रांची ने शोध के बाद कुड़मी महतो समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने से इनकार किया है. संस्थान के मुताबिक, कुड़मियों का रहन-सहन, खान-पान, परंपरा से लेकर पूजा-पाठ करने का तरीका सब अलग है. इनकी भाषा कुरमाली है, जो आर्य भाषा से मिलती है. कुड़मी संप्रदाय के लोग शिवाजी महाराज के वंशज होने का दावा करते हैं. कुड़मी महतो समुदाय द्वारा पेसा कानून 1996 का विरोध किया गया व ओबीसी आरक्षण के पक्षधर हैं. कुड़मी आदिवासी अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल होने का आंदोलन राजनीतिक लाभ के लिए हैं. इनका मूल मकसद आदिवासियों के जल, जंगल व जमीन को कब्जा करना, संवैधानिक अधिकार के तहत प्राप्त शैक्षणिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं अन्य क्षेत्रों में आरक्षण पाना है. आंदोलन में फकीर महोन टुडू, दिवाकर सोरेन, राजेश टुडू, पिथो मार्डी, सावित्री मार्डी, वीरमल बास्के, सुंदर मोहन हांसदा, सावन सोय, गणेश गागराई, श्यामल मार्डी, बबलू मुर्मू, दुर्गाचरण मुर्मू, भागवत बास्के सहित काफी संख्या में लोग शामिल थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

