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झारखंड हाईकोर्ट का प्राइवेट अस्पतालों पर टिप्पणी, कहा- प्राइवेट हॉस्पिटल धन उगाही के केंद्र, जानें पूरा मामला

एेसा नहीं होना चाहिए कि परिजन अपने प्रियजन के स्वस्थ होने का इंतजार करें आैर अस्पताल प्लास्टिक में लपेट कर उन्हें डेड बॉडी लौटा दें. झारखंड हाइकोर्ट ने गुरुवार को ब्लैक फंगस पीड़ित महिला के इलाज को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की.

Jharkhand high court news today रांची : रिम्स गरीब मरीजों की आशा का एकमात्र केंद्र है. रिम्स की व्यवस्था में कोई कमी है, तो उसे हर हाल में दूर करना होगा. गरीब मरीजों का इलाज प्राइवेट हॉस्पिटल में संभव नहीं है. सारे प्राइवेट हॉस्पिटल धन उगाही के केंद्र बन गये हैं. मरीज के पहुंचने के साथ ही धन वसूलने का प्रयास शुरू हो जाता है. मरीज के परिजनों का आर्थिक शोषण होता है. अस्पताल सिर्फ पैसा बनाने की मशीन नहीं बनें आैर चिकित्सक मरीज को सब्जी न समझें.

एेसा नहीं होना चाहिए कि परिजन अपने प्रियजन के स्वस्थ होने का इंतजार करें आैर अस्पताल प्लास्टिक में लपेट कर उन्हें डेड बॉडी लौटा दें. झारखंड हाइकोर्ट ने गुरुवार को ब्लैक फंगस पीड़ित महिला के इलाज को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की.

चीफ जस्टिस डॉ रविरंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले की सुनवाई कर रही थी. खंडपीठ ने ब्लैक फंगस पीड़िता उषा देवी का समय पर इलाज नहीं होने पर कड़ी नाराजगी जतायी. माैखिक रूप से कहा कि हम जानते हैं कि चिकित्सकों ने कोरोना काल में प्रशंसनीय कार्य किया है. चिकित्सक कोरोना वाॅरियर्स हैं.

उनमें क्षमता है. सब कुछ रहते हुए आखिर समय पर मरीज को इलाज की सुविधा क्यों नहीं मिली. जब महिला एक महीने से रिम्स में भर्ती थी, तो उनका ऑपरेशन पहले क्यों नहीं किया गया. रिम्स ने समय रहते उषा देवी ( Usha Devi Treatment Case ) का स्वत: इलाज शुरू क्यों नहीं किया. यदि मरीज का परिजन उन्हें चिट्ठी नहीं लिखता, हाइकोर्ट हस्तक्षेप नहीं करता, तो क्या रिम्स मरीज का इलाज नहीं करता. आखिर किस बात का इंतजार किया जा रहा था. खंडपीठ ने कहा कि हर एक व्यक्ति का जीवन बहुमूल्य है.

इलाज में विलंब के कारण ही मरीज की मौत हो गयी. रिम्स में इस मामले में मरीज की अनदेखी की गयी है. कोर्ट इस मामले की जांच कराना चाहता हैं. रिम्स निदेशक ने कहा कि उन्होंने इसकी जांच कराने का मौखिक आदेश दिया है. इस पर खंडपीठ ने कहा कि आप माैखिक नहीं आंतरिक जांच करायें तथा जांच रिपोर्ट शपथ पत्र के माध्यम से प्रस्तुत करें. हम आपकी जांच रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं होंगे, तो एम्स की टीम से जांच करा सकते हैं.

खंडपीठ ने यह भी कहा कि चिकित्सक सेवा करने के बजाय पैसा कमाने की मशीन बन गये हैं. ऐसा लगता है कि अब उनमें संवेदना ही नहीं रही. स्थिति को देखते हुए मेडिकल कॉलेजों में नये छात्रों को मेडिकल एथिक्स पढ़ाये जाने की जरूरत है, ताकि चिकित्सक मनुष्यों व समाज के प्रति अपनी जिम्मेवारी को समक्ष सके तथा उसे निभा सकें. इससे पूर्व महाधिवक्ता राजीव रंजन ने खंडपीठ को बताया कि राज्य में ब्लैक फंगस महामारी पर नियंत्रण के लिए सरकार की अोर से कई कदम उठाया गया है.

ब्लैक फंगस पीड़ित मरीजों को सरकार नि:शुल्क दवा उपलब्ध करा रही है. राज्य में ब्लैक फंगस के 160 मामला सामने आया है, जिसमें 101 मामला कंफर्म है, जबकि 59 मामले संदिग्ध हैं. उल्लेखनीय है कि ब्लैक फंगस पीड़ित महिला उषा देवी का रिम्स में इलाज नहीं होने को लेकर लिखी गयी चिट्ठी को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.

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