32.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

विश्व आदिवासी दिवस: चुनौती है हजारों वर्षों के अनुभव से परखे गये जनजातीय ज्ञान को सर्वमान्य बनाना

विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासी मानवशास्त्र और आदिवासी दर्शनशास्त्र विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. यह आयोजन झारखंड जनजातीय महोत्सव’ के तहत मोरहाबादी स्थित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान व हॉकी स्टेडियम के सभागार में मंगलवार से दो दिवसीय परिचर्चा शुरू हुई.

Ranchi news: विश्व आदिवासी दिवस (World Indigenous Day) के अवसर पर आयोजित ‘झारखंड जनजातीय महोत्सव’ के तहत मोरहाबादी स्थित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान व हॉकी स्टेडियम के सभागार में मंगलवार से दो दिवसीय परिचर्चा शुरू हुई. आदिवासी मानवशास्त्र और आदिवासी दर्शनशास्त्र विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. देश-विदेश से आये बुद्धिजीवी यहां आदिवासी मानव शास्त्र, आदिवासी इतिहास, आदिवासी साहित्य और आदिवासी दर्शन विषय पर चर्चा कर रहे हैं.

जनजातीय दर्शनशास्त्र विषय पर आयोजित सेमिनार

जनजातीय दर्शनशास्त्र विषय पर आयोजित सेमिनार में पद्मविभूषण प्रो मृणाल मिरि, प्रो सुजाता मिरि, डॉ संतोष किड़ो, डॉ गोमती बोदरा और डॉ आयशा गौतम ने जनजातीय ज्ञान को सर्वमान्य बनाना चुनौती बतायी. कहा कि आज तक मुख्यधारा आदिवासी ज्ञान को स्वीकार नहीं करती है. दुनिया भर में लिखित ज्ञान को ही मान्यता दी जाती है. जबकि, जनजातियों में प्रचलित मौखिक या बोल कर बताया जानेवाले पारंपारिक को लोग नहीं मानते हैं. विज्ञान की लेबोरेटरी में टेस्ट के बाद लिखी गयी बातों को ज्यादा सटीक माना जाता है. लेकिन, जनजातीय समाज द्वारा हजारों सालों के अनुभव से टेस्ट किये गये ज्ञान को मूल्यवान नहीं बताया जाता है. उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जंगली मशरूम खाकर मरनेवालों में जनजातीय समुदाय के लोग नहीं होते हैं. जहरीले मशरूम से संबंधित जनजातीय समाज के ज्ञान का अाधार सैकड़ों वर्ष का अनुभव है. परंतु, मुख्यधारा में इस जानकारी काे ठोस नहीं बताया जाता है.

आदिवासियों पर नाम, विचार और अवधारणा थोपना गलत

आदिवासी मानव शास्त्र विषय पर सुभद्रा चन्ना ने कहा कि मानवशास्त्री अक्सर आदिवासियों के लिए अपनी तरफ से नाम, विचार और अवधारणाएं थोपते हैं, उन्हें एक विषय भर बना देते हैं, उन्हें लेबल देते हैं, जो नहीं होना चाहिए. यह ज्ञान के उत्पादन का उपनिवेशी तरीका है. हमें अपनी गलतियों को सुधारने की जरूरत है. हमें उन्हें अपनी बात कहने देना चाहिए. ग्यात्सो लेपचा ने जोंगू सिक्किम के लेपचा, उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज और बड़े बांधों के खिलाफ उनके संघर्ष के बारे में जानकारी दी. डॉ कांटो जी छोफी ने आदिवासी आंदोलनों में रहस्योद्घाटन के पहलू पर ऑनलाइन विचार रखे.

आदिवासी पहचान व पारंपरिक ज्ञान : जिम्मेवारियां व चुनौतियां

सेमिनार में डॉ अविटोली जी ने भारतीय आदिवासी और सांस्कृतिक स्वायत्तीकरण, डॉ मीनाक्षी मुंडा ने आदिवासी पहचान व पारंपरिक ज्ञान : जिम्मेवारियां और चुनौतिया और डॉ अच मुंगलेंग ने हमारे हथकरघा, हमारी विरासत : लुइरिम कछोन विषय पर संबोधित किया. परिचर्चा के पहले दिन आदिवासी इतिहास पर प्रो विनीता दामोदरण, प्रो संगीता दासगुप्ता, डॉ विकास कुमार, डॉ राहुल रंजन, डॉ अंजू टोप्पो, प्रो वर्जीनियस खाखा, प्रो जोसेफ बाड़ा और प्रो भाग्य भुकया ने अपने विचार रखे. इससे पूर्व डॉ अंजना सिंह ने प्रतिभागियों का स्वागत किया.

आदिवासी साहित्य पर वाचिकता की सैद्धांतिकी और वाचिक परंपरा

लोककथा, लोकगाथा, आख्यान, लोकगीत, महाकाव्य विषयक परिचर्चा हुई. इसमें सुरेश जगन्नाथम, स्नेहलता रेड्डी, अरुण कुमार उरांव, डॉ जमुना बीनी, प्रो संतोष कुमार सोनकर ने विचार रखे. इस सत्र का संचालन पार्वती तिर्की ने किया. वाचिकता : लोक में इतिहास और दर्शन (सृष्टि कथा, ज्ञान मीमांसा, ज्ञान तत्व ) विषय पर प्रो जनार्दन गोंड, प्रो दीपक कुमार, रुद्र चरण मांझी, विनोद कुमरे, कविता कर्मकार, कमल कुमार तांती, देवमाइत मिंज, लक्ष्मण कुमार तांती ने विचार रखे. सत्र का संचालन प्रवीण बसंती खेस ने किया. डाॅ संतोष किड़ो ने प्रतिभागियों का स्वागत किया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें