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झारखंड: आदित्य एल-1 मिशन की लॉन्चिंग में रांची के HEC की अहम भूमिका, बनाया था चंद्रयान का लॉन्चिंग पैड भी

चंद्रयान मिशन में एचइसी में अभी तक तीन तरह के लॉन्चिंग पैड का निर्माण किया गया. अभी भी इसरो का कार्य एचइसी में चल रहा है, जो देश में एचइसी के अलावा दूसरी कंपनी नहीं कर सकती है. इसरो सूर्य के अध्ययन के लिए दो सितंबर को आदित्य एल-1 मिशन लॉन्च कर रहा है. इसमें भी एचइसी (रांची) की महत्वपूर्ण भूमिका है.

रांची: इसरो सूर्य के अध्ययन के लिए दो सितंबर को आदित्य एल-1 मिशन लॉन्च करेगा. इस प्रोजेक्ट में देश की अन्य कंपनियों के साथ-साथ एचइसी (रांची) की भी महत्वपूर्ण भूमिका है. एचइसी के अधिकारी बताते हैं कि आदित्य एल-1 पूरी तरह स्वदेशी प्रयास है. इसकी लॉन्चिंग में इस्तेमाल होनेवाले कई उपकरणों का निर्माण एचइसी में किया गया है. आदित्य एल-1 सूर्य की सतह से ठीक ऊपरी सतह और सूर्य के बाहरी परत का अवलोकन करेगा. ये पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है. यह एक स्टडी प्रोजेक्ट है. आपको बता दें कि चंद्रयान मिशन के तहत एचइसी में अभी तक तीन तरह के लॉन्चिंग पैड का निर्माण किया गया है. चंद्रयान 1, चंद्रयान 2 और चंद्रयान 3 का लॉन्चिंग पैड एचइसी के कर्मचारियों ने मिलकर बनाया है.

वर्ष 2000 से ही इसरो के कई प्रोजक्ट्स को एचइसी करता रहा है पूरा

एचइसी वर्ष 2000 से ही इसरो के कई प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक पूरा करता आ रहा है. इसमें तीन मोबाइल लॉन्चिंग पैड शामिल हैं. इसरो की रॉकेट असेंबली बिल्डिंग के लिए 400/60 और 200/30 टन का इलेक्ट्रिक ओवरहेड ट्रैवलिंग क्रेन भी एचइसी ने बनाया है. फोल्डिंग कम वर्टिकल रिपोजिशनेबल प्लेटफॉर्म (एफसीवीआरपी), चक्रवात लॉक और वर्षा जल को रोकने के लिए स्लाइडिंग दरवाजे (एचएसडी), तीन में से एक मोबाइल लॉन्चिंग पैड (लगभग 810 टन वजनी) भी एचइसी द्वारा निर्मित है. यह अब तक का सबसे बड़ा लॉन्चिंग पैड है, जो 11 मॉड्यूल में बनाया गया है.

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वित्तीय संकट के बावजूद इसरो के नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहा एचईसी

एचइसी ने इसरो के लिए 10 टन हैमर हेड टरवर क्रेन, 80 मीटर ऊंचा टावर क्रेन, जो बहुत तेज हवा के दबाव में भी काम करता है, 6-एक्सिस सीएनसी डबल कॉलम और 3-एक्सिस सीएनसी सिंगल कॉलम वर्टिकल टर्निंग मशीन, 2.8 मीटर व्यास की फोर्ज्ड रिंग का भी निर्माण किया है. मौजूदा समय में गंभीर वित्तीय संकट के बावजूद एचइसी इसरो के नये प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहा है. पिछले दिनों इसरो के अधिकारियों ने निरीक्षण को लेकर एचइसी का दौरा भी किया था.

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आज भी देश को एचइसी की जरूरत

एचइसी में जीएम पद पर कार्यरत सह एचइसी ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेमशंकर पासवान ने कहा कि आज भी देश को एचइसी की जरूरत है. चंद्रयान मिशन में एचइसी में अभी तक तीन तरह के लॉन्चिंग पैड का निर्माण किया गया है. अभी भी इसरो का कार्य एचइसी में चल रहा है, जो देश में एचइसी के अलावा दूसरी कंपनी नहीं कर सकती है. इसके अलावा इसरो के लिए कई तरह के उपकरण, पानी जहाज के लिए उपकरण, स्टील कंपनियों के स्पेयर्स पार्ट्स (जो दूसरी कंपनी नहीं बना सकती है), विभिन्न तरह के शॉवेल, रेल के लिए व्हील-एक्सल और सेना के लिए उपकरण व उसके स्पेयर्स पार्ट्स का निर्माण एचइसी में ही संभव है. उन्होंने कहा कि कई ऐसे उपकरण हैं, जिनकी एचइसी में कम राशि में आपूर्ति की जाती है. विदेश या अन्य कंपनियों से बनाने पर दो से तीन गुना अधिक पैसा कंपनियों को भुगतान करना पड़ता है, इसलिए एचइसी की उपयोगिता आज भी है.

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आधुनिकीकरण के लिए पैसे दे केंद्र

एचइसी मजदूर संघ के महामंत्री रमाशंकर प्रसाद ने कहा कि एचइसी में स्थापना काल के बाद समयानुसार मशीनों का आधुनिकीकरण नहीं किया गया. इससे यहां की मशीनों में दिन प्रतिदिन कार्य करने की क्षमता घटती गयी. एचइसी के पास वर्तमान में लगभग 1356 करोड़ का कार्यादेश है, जिसे पूरा करने के लिए लागत पूंजी की आवश्यकता है. आधुनिकीकरण के लिए केंद्र पैसा दे. एचइसी के कर्मचारी आज भी अपने कार्य को करने में उतने ही निपुण और दक्ष हैं, जितना कंपनी को स्थापित करने के समय थे. कर्मचारी आज भी पुरानी तकनीक एवं अपने निपुणता के अनुरूप किसी भी क्षेत्र में काम करने के लिए निपुण हैं. चंद्रयान 1, चंद्रयान 2 और चंद्रयान 3 का लॉन्चिंग पैड एचइसी के कर्मचारियों ने मिलकर पुरानी तकनीकी मशीनों से ही बनाया है. आज भी एचइसी में इसरो के लिए लॉन्चिंग पैड का कार्य प्रगति पर है, लेकिन केंद्र एचइसी को बचाने की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

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15 नवंबर 1963 को हुआ था एचइसी का उद्घाटन

एचइसी का उद्घाटन दीपावली के दिन 15 नवंबर 1963 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था. HEC अपने जीवन काल के 60 वर्षों में समय-समय पर अपनी उपयोगिता साबित करती रही है. मुख्य रूप से देश के औद्योगिकीकरण के क्षेत्र में HEC ने अपनी महती भूमिका निभाते हुए बोकारो, दुर्गापुर, भिलाई, राउरकेला और विशाखापत्तनम जैसे बड़े स्टील प्लांटों की स्थापना की.

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