रांची: मेकन के रिसर्च एंड डेवलपमेंट विभाग ने स्टील प्लांट के लिए अत्याधुनिक इंफ्रारेड कैमरा विकसित किया है.उक्त कैमरे से इस्पात उद्योग में लैडल का तापमान निर्धारित सीमा से अधिक बढ़ने का पता लगाया जा सकता है. इससे लैडल में होनेवाले विस्फोट व मैन पावर सहित अन्य प्रकार के नुकसान से बचा जा सकता है. मेकन के अधिकारी ने बताया कि इंफ्रारेड कैमरा को लैडल के पास लगाया जाता है, जो पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड है.
इंफ्रारेड कैमरा के माध्यम से लैडल का तापमान सहित अन्य जानकारियां मिलती है. लैंडल का तापमान अगर अपने निर्धारित मापदंड से बढ़ जाता है, तो कंप्यूटर अलार्म के साथ इसकी सूचना देता है. इस्पात उद्योग में पिघले हुए पदार्थ को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए लैडल का इस्तेमाल किया जाता है, जो रिफ्रेक्टरी मटेरियल से ढका होता है. रिफ्रेक्टरी मटेरियल हीट प्रुफ होता है. अगर इसको सही समय पर नहीं बदला जाये, तो लैडल फट सकता है, जिससे 1600 डिग्री के तापमान पर पिघला हुआ स्टील फैक्टरी की फर्श पर फैल जायेगा. इससे जान-माल सहित करोड़ों रुपये का नुकसान होगा. अब तक अनुभव के आधार पर ही रिफ्रेक्टरी मटेरियल के तापमान का पता लगाया जाता था. रिफ्रेक्टरी मटेरियल के सही तापमान का पता लगा कर लैडल को विस्फोट से बचाने के लिए आवश्यक तरीके की तलाश की जा रही थी.
पेटेंट के लिए आवेदन दिया
मेकन ने रिफ्रेक्टरी मटेरियल के तापमान का पता लगाकर उसे विस्फोट से बचाने के लिए इंफ्रारेड कैमरे का इस्तेमाल करने का तरीका तलाशा है. इसे प्रयोग के तौर पर राउरकेला स्टील प्लांट में स्थापित किया गया है, जो सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है. मेकन ने इंफ्रारेड कैमरा के पैटेंट के लिए आवेदन दिया है.
वर्ष 2011 में हुई है दुर्घटना
लैडल के लिकेज विशाखापट्टनम स्टील प्लांट में वर्ष 2011 में हुआ था. हालांकि दुर्घटना में मैन पावर की क्षति नहीं हुई थी, लेकिन तरल पदार्थ के बहाने से स्टील प्लांट को भारी नुकसान हुआ था.