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कोटा डोरिया साडि़यां बनाने का जीवंत प्रदर्शन कर रही महिलाएं

अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला – 2014एजेंसियां, नयी दिल्लीराजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला में राजस्थान मंडप आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. विशेष कर मंडप में हथकरघा लूम्स पर महिलाओं द्वारा कोटा डोरिया साडियां बनाने का जीवंत प्रदर्शन दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.पवेलियन में कोटा डोरिया की साडियों […]

अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला – 2014एजेंसियां, नयी दिल्लीराजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला में राजस्थान मंडप आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. विशेष कर मंडप में हथकरघा लूम्स पर महिलाओं द्वारा कोटा डोरिया साडियां बनाने का जीवंत प्रदर्शन दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.पवेलियन में कोटा डोरिया की साडियों को लूम्स पर तैयार करने का जीवंत प्रदर्शन कर रही कैथून गांव कोटा की मोहसिना बानो एवं नजमूल अहमद ने बताया कि उच्च गुणवत्ता की कोटा डोरिया मार्का की साडि़यों का निर्माण करना हमारा पुश्तैनी काम है और कई पीढि़यों से हम बुनाई का काम करते आ रहे हैं.कोटा डोरिया की पहचानहथकरधा पर ताना-बाना से निर्मित की जाने वाली इन साडि़यों को तैयार करने में बुनकर विशेषरूप से सिल्वर गोल्डन जरी, रेशम, सूत, कॉटन के धागों का उपयोग करते हैं. ये उच्च गुणवत्ता के धागे मुख्यत: बेंगलुरू, कर्नाटक, सूरत, गुजरात, कोयंबटूर, तमिलनाडु से मंगवाये जाते हैं. कोटा डोरिया की साडि़यों की कीमत 5000 से 70000 तक है. मोहसिना बताती हैं कि यह व्यवसाय कोटा के मांगरोल एवं कैथुन के आसपास के गांवों और कस्बों में विशेषरूप से बुनकर परिवारों की आजीविका का प्रमुख साधन है. अकेले कैथुन में लगभग चार हजार लूम्स कार्यरत हैं. उन्होंने बताया कि हाडौती अंचल की विश्व प्रसिद्ध कोटा डोरिया से बने वस्त्र जैसे साडि़यां, सूट और दुपट्टों की प्रगति मैदान में चल रहे भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में खासी मांग है.समस्याएं और निबटने के उपायमोहसिना आगे बताती हैं कि कोटा डोरिया की नकली साडि़यों का उत्पादन आज सबसे बड़ी समस्या और चुनौती बन कर उभर रही है. वर्तमान में देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी नकली साडि़यां भी बाजार में सस्ते दामों पर उपलब्ध हो रही हैं. इससे हमारे पुश्तैनी व्यवसाय को थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि कोटा डोरिया के नकली उत्पादों से बचने के लिए रूडा संस्था काफी प्रयास कर रही है एवं बुनकरों को प्रशिक्षण और वित्तीय सहयोग दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि नकली उत्पादों से बचने के लिए बुनाई के दौरान कोटा डोरिया मार्का को बुनाई में ही बना दिया जाता है, जिससे इन वस्त्रों एवं साडि़यों की वास्तविकता को पहचाना जा सकता है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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